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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का एक वीडियो शेयर कर दावा किया जा रहा है कि वो इस वीडियो में मुगल शासक औरंगजेब के बेटे की कब्र पर सिर झुकाते दिख रहे हैं. ये दावा ऐसे वक्त पर किया जा रहा है जब हाल में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित औरंगजेब के मकबरे को 19 मई से 5 दिनों के लिए बंद कर दिया गया था. इससे पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रवक्ता गजानन काले ने इस स्मारक को लेकर कुछ सवाल उठाए थे.
हालांकि, वायरल हो रहा ये वीडियो हाल का नहीं बल्कि इसे साल 2017 से ही सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. ये वीडियो उस वक्त का है जब पीएम मोदी म्यांमार स्थित बहादुर शाहजफर के मकबरे पर गए थे. बहादुर शाह जफर शायर और आखिरी मुगल शासक थे. गौर करने वाली बात ये है कि बहादुर शाह जफर औरंगजेब के नहीं बल्कि अकबर द्वितीय के बेटे थे.
सोशल मीडिया पर वीडियो के साथ शेयर किया जा रहा कैप्शन है औरंगजेब के बेटे बहादुर शाह जफर की मजार
यूजर्स ने इस वीडियो को औरंगजेब की मजार पर फूल चढ़ाते पीएम मोदी का बताकर भी शेयर किया.
वायरल वीडियो में इंग्लिश न्यूज चैनल Republic का लोगो देखा जा सकता है.
गूगल पर 'Narendra Modi paying tribute to Mughal emperor Republic World' कीवर्ड सर्च करने से हमें 7 सितंबर 2017 को अपलोड किया गया यूटयूब वीडियो मिला. ये वो पूरा वीडियो है, जिसका अधूरा हिस्सा सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है.
इस वीडियो में लिखे डिस्क्रिप्शन का हिंदी अनुवाद है 'पीएम नरेंद्र मोदी बहादुर शाह जफर के मकबर पर पहुंचे'
The Hindu मोदी 2017 में अपने तीन दिन के म्यांमार दौरे के बीच आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर के यांगोन स्थित मकबरे पर गए थे.
पीएम मोदी ने अपने इस दौरे की तस्वीर खुद भी ट्वीट की थी. इस ट्वीट में मोदी ने बताया था कि वे बहादुर शाह जफर की मजार पर पहुंचे.
वायरल वीडियो में दिख रहा विजुअल भी बहादुर शाह जफर का ही है, इसमें जफर अपनी मृत्युशय्या पर हैं. यही फोटो स्टॉक वेबसाइट ALAMY पर भी देखी जा सकती है.
बहादुर शाह द्वितीय (Bahadur Shah II) मुगल साम्राज्य के आखिरी शासक थे. उन्हें काव्य के जरिए बहादुर शाह जफर का नाम मिला.
बहादुर शाह द्वितीय अपने पिता अकबर शाह द्वितीय के बाद साल 1837 में मुगल सिंहासन पर बैठे, उस वक्त वे 62 वर्ष के थे. जफर पहले स्वतंत्रता संग्राम के वक्त साल 1857 तक गद्दी पर रहे. 7 नवंबर 1862 को रंगून में उनका निधन हो गया और एक अज्ञात कब्र में उन्हें दफना दिया गया.
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