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नेहरू ने UNSC में भारत की स्थाई सदस्यता चीन को दी थी? ये रहा पूरा सच

बीजेपी के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से ट्विटर कर पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू पर ये आरोप लगाया गया

टीम वेबकूफ
वेबकूफ
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सोशल मीडिया पर किया गया ये दावा
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सोशल मीडिया पर किया गया ये दावा
(फोटो: Altered by Quint)

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ये फैक्ट चेक रिपोर्ट पहली बार 18 जून 2020 को क्विंट हिंदी की वेबसाइट पर छपी थी. इसे हम अपने अर्काइव से एक बार फिर पब्लिश कर रहे हैं. 11 सितंबर 2023 को बीजेपी के X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट से ये दावा किया गया पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की भारत को मिलने वाली स्थाई सदस्यता चीन को दे दी थी.

पोस्ट का अर्काइव यहां देखें

सोर्स : स्क्रीनशॉट/ट्विटर

2022 में भारत-चीन की सीमा पर चल रहे विवाद के बीच भी गृह मंत्री अमित शाह और कई सोशल मीडिया यूजर्स ने कुछ ऐसा ही दावा किया था.

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

क्विंट हिंदी की फैक्ट चेकिंग टीम 'वेबकूफ' ने पड़ताल कर इस दावे का सच पता लगाया. क्या वाकई भारत ने UNSC की स्थाई सदस्यता चीन को दे दी थी ?

ये दावा सच नहीं है. नेहरू ने भारत की सदस्यता चीन को कभी नहीं दी. पर हां, अमेरिका के उस प्रस्ताव से नेहरू ने जरूर इनकार किया था जिसमें भारत को ऑफर दिया गया था कि वो सुरक्षा परिषद में चीन की जगह ले ले. पर नेहरू का मानना था कि ऐसा करने से भारत - चीन के संबंध और ज्यादा खराब हो सकते हैं. आसान भाषा में कहें तो भारत ने सुरक्षा परिषद में चीन की सीट 'छीनकर' भारत को दिए जाने से इनकार किया था. भारत ने अपनी सीट चीन को दी नहीं थी, जैसा कि दावा किया जा रहा है. इस पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं.

अमेरिका ने 1950 में भारत को दिया UNSC की स्थाई सदस्यता का ऑफर

कांग्रेस नेता और पूर्व संयुक्त राष्ट्र के अंडर-सेक्रेटरी जनरल शशि थरूर ने 2004 में एक इंटरव्यू में कहा था कि नेहरू ने 1953 में UNSC में स्थायी सीट का 'अमेरिका का भारत को दिया ऑफर खारिज' कर दिया था और कहा था कि इसकी बजाय चीन को ये सीट देनी चाहिए.

अपनी किताब, 'नेहरू - द इनवेंशन ऑफ इंडिया' में भी थरूर लिखते हैं कि नेहरू ने सुझाव दिया था कि ये सीट, जो तब तक ताइवान के पास थी, बीजिंग को ऑफर की जानी चाहिए. नेहरू ने कथित तौर पर कहा था कि "सीट ताइवान ने खराब विश्वसनीयता से हासिल की थी."

इसके अलावा, इतिहासकार एंटन हार्डर की मार्च 2015 की 'Not as the Cost of China' नाम से एक रिपोर्ट भी है. इससे पता चलता है कि अमेरिका ने 1950 की शुरुआत में भारत पर स्थाई सीट के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था, जिससे वो चीन की जगह ले ले.

हार्डर स्वीकार करते हैं कि "चीन के अधिकार को सीट से जोड़कर पीआरसी को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में शामिल करना" असल में "नेहरू की विदेश नीति का केंद्रीय स्तंभ" था.

"नेहरूवादी दृष्टिकोण" पर 2002 में फ्रंटलाइन आर्टिल में इतिहासकार एजी नूरानी ने अमेरिका और रूस के UNSC ऑफर पर नेहरू के एक 1955 के नोट का भी हवाला दिया था. इस नोट में, नेहरू ने स्वीकार किया था कि अमेरिका ने "अनौपचारिक रूप से" सुझाव दिए थे, लेकिन भारत उस समय "सुरक्षा परिषद में घुसने के लिए उत्सुक" नहीं था.

“अनौपचारिक तौर पर, अमेरिका की तरफ से सुझाव दिए गए कि चीन को संयुक्त राष्ट्र में लिया जाना चाहिए, लेकिन सुरक्षा परिषद में नहीं, और भारत सुरक्षा परिषद में उसकी जगह ले ले. हम निश्चित रूप से इसे स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि इसका मतलब है चीन से तनाव पैदा होना और ये चीन जैसे महान देश का सुरक्षा परिषद में नहीं होना गलत होगा. इसलिए, हमने ये सुझाव देने वालों को स्पष्ट कर दिया है कि हम इस सुझाव से सहमत नहीं हो सकते. हमने इससे भी आगे बढ़कर कहा है कि भारत इस स्टेज पर सुरक्षा परिषद में प्रवेश करने के लिए उत्सुक नहीं है, भले ही एक महान देश के रूप में वो वहां होना चाहिए. पहला कदम जो होना चाहिए वो ये कि चीन अपनी सही जगह ले और फिर भारत के सवाल पर अलग से विचार किया जा सकता है.”
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क्या भारत ने बाद में दिए ऑफर को फिर खारिज किया?

नूरानी के लेख में USSR द्वारा भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट के लिए किए गए 1955 के प्रस्ताव का भी जिक्र है. नूरानी के मुताबिक, भारत के लिए रूस का प्रस्ताव भारत का परीक्षण करने के लिए केवल एक 'विचारक' था. क्यों?

क्योंकि जहां अमेरिका द्वारा 1950 की पेशकश चीन (एक और कम्युनिस्ट ब्लॉक) को UNSC में प्रवेश से दूर रखने के इरादे से की गई थी, रूस का प्रस्ताव उस समय आया था जब USSR और चीन का गठबंधन एक अहम स्तर पर पहुंच गया था.

अपने दावे की पुष्टि करने के लिए, नूरानी 22 जून 1955 को USSR प्रधानमंत्री निकोलाई बुलगनिन और नेहरू के बीच बैठक के मिनटों का हवाला देते हैं, जब ये प्रस्ताव दिया गया था.

बैठक में, नेहरू ने स्वीकार किया कि अमेरिकी प्रस्ताव "भारत और चीन के बीच परेशानी पैदा करने" का प्रयास था. उन्होंने आगे कहा कि भारत की सदस्यता UN चार्टर के संशोधन के रूप में होगी, जो कि स्टेज पर सही नहीं होगा.

नूरानी का अपने आर्टिकल में पढ़ा गया अंश:

नेहरू: शायद बुलगनिन को पता है कि अमरीका में कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि भारत को सुरक्षा परिषद में चीन की जगह लेनी चाहिए. ये हमारे और चीन के बीच परेशानी पैदा करना है. हम निश्चित रूप से, इसका पूरी तरह से विरोध करते हैं. इसके अलावा, हम कुछ पदों पर कब्जा करने के लिए खुद को आगे बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे मुश्किलें पैदा हो सकती हैं और भारत खुद विवाद का विषय बन सकता है. अगर भारत को सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाना है, तो ये संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के संशोधन का सवाल उठाता है. हमें लगता है कि ये तब तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि चीन के प्रवेश और संभवतः दूसरों के सवाल का हल पहले न हो जाए. मुझे लगता है कि हमें सबसे पहले चीन के प्रवेश पर ध्यान देना चाहिए. चार्टर के संशोधन के बारे में बुलगनिन की राय क्या है? हमारी राय में ये इसके लिए सही समय नहीं है.

बुलगनिन: हमने आपके विचार जानने के लिए सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता के सवाल का प्रस्ताव रखा, लेकिन सहमत हैं कि ये इसके लिए समय नहीं है और इसे बाद में सही समय का इंतजार करना होगा. हम इस बात से भी सहमत हैं कि चीजों को एक-एक करके किया जाना चाहिए.

28 सितंबर 1995 की द हिंदू की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नेहरू UNSC में भारत के लिए सीट के संबंध में कोई प्रस्ताव लेने से साफ इनकार कर रहे थे. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में दिए गए बयान में उन्होंने कहा:

“इस तरह का कोई प्रस्ताव, औपचारिक या अनौपचारिक, नहीं है. प्रेस में इसे लेकर कुछ अस्पष्ट संदर्भ दिखाई दिए हैं जिनका वास्तव में कोई आधार नहीं है. सुरक्षा परिषद की संरचना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा निर्धारित है, जिसके मुताबिक कुछ देशों की स्थायी सीटें हैं. चार्टर में संशोधन के बिना इसमें कोई बदलाव या एडिशन नहीं किया जा सकता है. इसलिए, सीट की पेशकश का और भारत का इससे इनकार का कोई सवाल ही नहीं है. हमारी घोषित नीति संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए योग्य सभी देशों के प्रवेश का समर्थन करना है.”

आप हमारी सभी फैक्ट-चेक स्टोरी को यहां पढ़ सकते हैं.

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Published: 18 Jun 2020,11:11 AM IST

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