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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के बीच जारी प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने झारखंड के दुमका में 'रविवार की छुट्टी' को लेकर एक दावा किया है.
पीएम मोदी ने क्या कहा ? पीएम मोदी ने कहा है, "हमारे देश में रविवार को छुट्टी होती है Holiday- क्योंकि जब अंग्रेज यहां राज करते थे तो ईसाई समाज हॉलिडे मनाता है, पवित्र दिवस, तो तबसे रविवार की परंपरा शुरू हुई, अब रविवार कोई हिंदुओ से जुड़ा हुआ नहीं है, ईसाई समाज से जुड़ा हुआ है, 200 साल से 300 साल से यहां चल रहा है, अब उन्होंने एक जिले में रविवार की छुट्टी पर ताले लगवा दिए, बोले शुक्रवार को छुट्टी होगी, अब ईसाईयों से भी झगड़ा, पहले हिंदुओ से झगड़ा अब ईसाईयों से झगड़ा, यह क्या चल रहा है भई ?"
इस वीडियो में 34:55 मिनट पर पीएम मोदी के इस बयान को सुना जा सकता है.
पीएम मोदी के दावे का संदर्भ: Times of India में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2022 में झारखंड के जामताड़ा जिले के मुस्लिम बहुल इलाकों में 43 स्कूलों ने एकतरफा तौर पर अपना साप्ताहिक अवकाश रविवार से बदलकर शुक्रवार कर दिया था.
Times of India की इसी रिपोर्ट के मुताबिक 43 सरकारी स्कूलों द्वारा एकतरफा तरीके से अपना साप्ताहिक अवकाश रविवार से शुक्रवार करने के दो साल बाद, सरकार ने इन स्कूलों की प्रबंधन समितियों को भंग कर दिया और फिर से रविवार को अवकाश घोषित कर दिया था.
क्या पीएम मोदी का यह दावा सही है ? नहीं, पीएम मोदी का यह दावा सही नहीं है. भारत में संडे की छुट्टी का संबंध ईसाई मान्यता के मुताबिक नहीं है बल्कि इसका संबंध ब्रिटिश काल के दौरान हुए Trade Union Movement से है.
इतिहासकारों के मुताबिक, नरायण मेघाजी लोखंडे के प्रयासों की वजह से भारत में रविवार की छुट्टी का चलन शुरू हुआ था.
इतिहासकारों के दावे के मुताबिक, भारत में संडे की छुट्टी की शुरुआत 10 जून 1890 में हुई थी.
महाराष्ट्र के पुणे जिले में जन्मे समाज सुधारक और कार्यकर्ता नरायण मेघाजी लोखंडे को 'भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के जनक' के रूप में जाना जाता है.
उन्होंने मुंबई में एक कॉटन मिल (Cotton Mill) में अपनी नौकरी छोड़ने के बाद 1880 से मराठी भाषा के समाचार पत्र दीनबंधु का प्रबंधन संभाला.
इसके बाद, उन्होंने Bombay Millhands' Associationa की स्थापना की और बाद में भारत में पहला श्रमिक संघ शुरू किया जिसे Bombay Mills Hand Association कहा जाता है.
उन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर किसानों, मजदूरों और श्रमिकों को अधिकार दिलाने और न्याय दिलाने की लड़ाई में हिस्सा लिया.
भारत में ऐसे हुई संडे की छुट्टी की शुरुआत: नरायण मेघाजी लोखंडे ने देखा कि अंग्रेज मिल मजदूरों से सप्ताह में सातों दिन काम करवाते थे और उन्होंने इसमें बदलाव की मांग की. उन्होंने 1884 में रविवार को अवकाश घोषित करने के लिए अभियान शुरू किया.
हमें 1997 में लेखक नलिनी पंडित द्वारा लिखा गया एक जर्नल मिला, जिसका टाइटल था - 'नारायण मेघाजी लोखंडे: भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के जनक.' (अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद)
इसमें बताया गया है कि आखिरकर 1890 में, 10,000 मजदूरों के विरोध के बाद, मिल मालिक संघ ने हार मान ली और रविवार को मजदूरों के लिए अवकाश घोषित कर दिया.
इतना ही नहीं, बल्कि नरायण लोखंडे की कोशिशों से एसोसिएशन ने कई अन्य बदलाव भी किए, जैसे
मिल श्रमिकों को रविवार को साप्ताहिक अवकाश मिलेगा.
श्रमिकों को दोपहर में आधे घंटे का अवकाश मिलेगा.
मिल सुबह 6:30 बजे से काम करना शुरू करेगी और सूर्यास्त तक बंद हो जाएगी.
श्रमिकों को हर महीने की 15 तारीख तक वेतन दिया जाएगा.
एनएम लोखंडे महाराष्ट्र श्रम अध्ययन संस्थान की स्थापना 7 जुलाई 1947 को भारत के पूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री और बॉम्बे प्रांत के श्रम मंत्री गुलजारीलाल नंदा ने की थी.
इस कॉलेज की आधिकारिक वेबसाइट पर भी 1890 में रविवार को अवकाश घोषित किए जाने की यही जानकारी दी गई है.
हिंदू धर्म में रविवार का महत्व: दरअसल, हिंदू कैलेंडर भी रविवार से शुरू होता है और हिंदू परंपरा के अनुसार इसे सौर देवता (सूर्य देवता) का दिन माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन उनकी पूजा करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है.
इतिहासकार से बातचीत: हमने इस मामले पर इतिहासकार डॉ. रुचिका शर्मा से भी बात की. जिन्होंने कहा कि "कोई काम न करने का दिन" रखने का यह विचार निश्चित रूप से ईसाई और यहूदी नजरिए से जुड़ा हुआ है.
उन्होंने कहा, "लेकिन रविवार को छुट्टी के रूप में इन जैसे समुदायों से जोड़ना एक बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण है. अब, औद्योगिकीकरण (industrialization) के बाद, रविवार को छुट्टी के रूप में रखना बहुत जरूरी है और यह वास्तव में एक ऐसा अधिकार है जिसे श्रमिकों ने वास्तव में संघर्ष के दिनों के बाद मांगा और जीता है. यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जैसे नेता भी श्रमिकों के अधिकार के रूप में छुट्टियों के पक्षधर थे."
श्रम इतिहासकार डॉ. माया जॉन ने द क्विंट को बताया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रविवार के साप्ताहिक अवकाश को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है, जिसके लिए भारतीय श्रमिकों ने जी-जान से लड़ाई लड़ी है.
उन्होंने कहा, "सत्तारूढ़ एलीट वर्ग को इसके बजाय ज्यादातर भारतीय श्रमिकों को साप्ताहिक अवकाश न दिए जाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो एक बहुत ही व्यापक प्रथा बन गई है. इसके अलावा, इस देश के ज्यादातर श्रमिकों को श्रम विभाग द्वारा मासिक न्यूनतम वेतन की गलत गणना के कारण 30 दिनों के बजाय 26 दिनों के आधार पर साप्ताहिक अवकाश नहीं दिया जाता है.
श्रमिक अधिकार रिसर्चर और श्रमिक प्रवास पर ILO फेलो Rejimon Kuttappan बताते हैं कि कैसे भारत में रविवार को छुट्टी की प्रथा शुरू में तब तक नहीं अपनाई गई थी जब तक कि लोखंडे ने इसके लिए संघर्ष नहीं किया.
उन्होंने कहा, "नारायण लोखंडे ने उचित मजदूरी, स्वस्थ कार्य वातावरण और श्रम अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग करते हुए मिल मालिकों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था. वह दलित थे और अगर आज भारतीय श्रमिकों को कोई अधिकार प्राप्त हैं, तो यह काफी हद तक लोखंडे और डॉ. बीआर अंबेडकर जैसे दलित नेताओं के प्रयासों के कारण ही है."
हमें वी.वी. गिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान द्वारा "भारत में ट्रेड यूनियनों का विकास" टाइटल से एक सरकारी दस्तावेज मिला, जिसमें भी यही बताया गया था कि रविवार को साप्ताहिक अवकाश की मांग करने वाले एक ज्ञापन को बॉम्बे मिलओनर्स एसोसिएशन द्वारा 10 जून 1890 को स्वीकार कर लिया गया था.
हमने अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (AICCTU) के राजनीतिक कार्यकर्ता आकाश भट्टाचार्य से भी संपर्क किया, जिन्होंने स्पष्ट किया कि पीएम मोदी द्वारा किया गया दावा झूठा है.
उन्होंने आगे बताया कि रविवार को छुट्टी का दिन सिर्फ़ ईसाई धर्म की परंपरा पर आधारित नहीं है, बल्कि भारतीयों ने भी इसी तरह की साप्ताहिक छुट्टी रखी है, क्योंकि रविवार को कई दक्षिण एशियाई संस्कृतियों में भी पवित्र माना जाता है. उन्होंने आगे कहा, "हिंदू परंपराओं में, रविवार का दिन सूर्य देवता से जुड़ा हुआ है." आकाश भट्टाचार्य आगे बताते हैं,
निष्कर्ष: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दावा सही नहीं है कि भारत में रविवार की छुट्टी हमें ईसाईयों की देन हैं. यह भारत के पहले श्रमिक आंदोलन की वजह से है.
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