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सुदर्शन न्यूज के एडिटर सुरेश चव्हाणके ने 8 जून को किए ट्वीट में ये सवाल उठाया कि जब देश में अस्पताल की बजाए घर में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या 25% है, तो फिर घर में पैदा होने वाले मुस्लिम बच्चों की संख्या 75% क्यों है? सुरेश चव्हाणके ने इस आंकड़े का सोर्स स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वे को बताया है.
ट्वीट के साथ सुरेश चव्हाणके ने अपने शो बिंदास बोल की एक क्लिप भी शेयर की, जिसमें वे यही दावा करते दिख रहे हैं. कार्यक्रम में चव्हाणके ने ये दावा भी किया कि CAA आने के बाद मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में विस्फोटक वृद्धि हुई. हालांकि, क्विंट की वेबकूफ टीम ने जब इन दावों की पड़ताल की, तो सामने आया कि चव्हाणके द्वारा पेश किए गए आंकड़े भ्रामक हैं.
हमने ट्वीट में सुरेश चव्हाणके द्वारा किए गए दावों की एक-एक कर पड़ताल की.
दावा : देश में 25% बच्चे घर पर जन्म लेते हैं
हमने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सर्वे रिपोर्ट (NFHS-4) चेक की. इस रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी इलाकों में 88.7% बच्चों का जन्म अस्पतालों में हुआ. वहीं ग्रामीण इलाकों में 75.1% का जन्म अस्पतालों में हुआ. यानी शहरी इलाकों में 11.3% बच्चों का जन्म घर पर हुआ और ग्रामीण इलाकों में 24.9% बच्चों का जन्म घर पर हुआ. यानी देश भर के ओवरॉल आंकड़े की बात करें तो 25% बच्चों का जन्म घर पर हुआ ये सच है.
लेकिन, गौर करने वाला तथ्य ये है कि (NFHS-4) की रिपोर्ट में ये सभी आंकड़े साल 2015-16 के हैं यानी 5 साल से ज्यादा पुराने. हालिया रिपोर्ट (NFHS-5) मंत्रालय ने जारी तो कर दी है, लेकिन अभी इसके सिर्फ राज्यवार आंकड़े जारी किए गए हैं. देश भर में अस्पतालों और घरों में होने वाले बच्चों के जन्म के अनुपात का एक प्रतिशत इस रिपोर्ट में नहीं दिया गया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की दिसंबर 2020 की एक रिपोर्ट हमें मिली. रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस का हालिया सर्वे कहता है कि भारत में अब 92% महिलाएं अस्पताल में ही बच्चों को जन्म दे रही हैं. ये रिपोर्ट साल 2017-18 के आंकड़ों के आधार पर जारी की गई थी.
इस रिपोर्ट में भी ग्रामीण और शहरी इलाकों के अलग-अलग आंकड़े दिए गए हैं.
ग्रामीण क्षेत्र में 90.5% महिलाओं की डिलिवरी अस्पतालों में होती है (69.2% - प्राइवेट अस्पताल, 21.3% सरकारी अस्पताल) वहीं 1.4% महिलाओं की डिलिवरी घर पर नर्स या डॉक्टर की निगरानी में हुई. बचे हुए 8.1% महिलाओं की डिलीवरी घर पर बिना डॉक्टर के दाई आदि ने की.
वहीं शहरी क्षेत्र में 96.1% महिलाओं की डिलिवरी अस्पताल में हुई. 0.4% की डॉक्टर या नर्स की देखरेख में घर पर और 3.4% की दाई आदि की देखरेख में घर पर हुई.
NFHS- 4 के मुताबिक हिंदू समुदाय में 80.2% बच्चों का जन्म अस्पताल में यानी 19.8% का जन्म घर पर होता है. वहीं मुस्लिम समुदाय में 69.2% बच्चों का जन्म अस्पताल में होता है यानी 30.8% का जन्म घर पर होता है.
NSSO की सर्वे रिपोर्ट में धर्म के आधार पर बच्चों के जन्म से जुड़े आंकड़े नहीं दिए गए हैं.
ये संभावना थी कि सुरेश चव्हाणके ने NFHS-5 की रिपोर्ट में दिए गए 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों का औसत निकाल कर आंकड़ा पेश किया हो. लेकिन, NFHS-5 की राज्यवार रिपोर्ट में धर्म के आधार पर अस्पताल और घर पर जन्म लेने वाले बच्चों के अनुपात से जुड़े आंकड़े नहीं दिए गए हैं. हमने घर पर और अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के अनुपात का औसत NFHS-5 से निकालकर भी देखा.
NFHS- 5 रिपोर्ट में 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों का औसत निकालने पर 87.26% आता है. यानी इन 22 राज्यों के लिहाज से देखें तो देश में अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों का प्रतिशत 87.26% है और घर में जन्म लेने वाले बच्चों का प्रतिशत 12.74% है.
दावा : मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण 200% बढ़ गए?
सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट में ये दावा तो कर दिया कि CAA के बाद देश में मुस्लिम समुदाय के जन्म पंजीकरण में 200% की वृद्धि हुई, लेकिन ये नहीं बताया कि ये 200% वृद्धि वे किसी एक राज्य की बता रहे हैं या फिर पूरे देश की?
सुरेश चव्हाणके ने किस आधार पर ये आंकड़ा पेश किया? ये जानने के लिए हमने उनका वह पूरा शो देखा , जिसका टीजर ट्वीट करते हुए उन्होंने दावा किया है. पूरा शो देखने पर पता चला कि चव्हाणके ने प्रयागराज में दो दिनों में हुए जन्म पंजीकरण की संख्या के आधार पर मुस्लिमों के पंजीकरण में 200% की वृद्धि बताई है. ये दो दिन हैं 28 अगस्त, 2018 और 10 जनवरी 2020.
ये प्रतिशत किस संख्या के आधार पर लिया गया है? दरअसल सुदर्शन न्यूज के मुताबिक, 28 अगस्त, 2018 (लोकसभा में CAB पहली बार पास होने के एक दिन पहले) को एक दिन में मुस्लिम समुदाय से 85 आवेदन आए थे और 10 जनवरी 2020 (CAA कानून बनने के एक दिन बाद) को 213 आवेदन आए. यानी ये वृद्धि 3 साल बाद की है, न की एक दिन की. 213 आवेदनों को इस शो में एक विस्फोटक वृद्धि की तरह दिखाया गया.
साफ है कि तकरीबन 60 लाख की आबादी वाले शहर में 3 सालों के अंदर रोजाना आने वाले जन्म पंजीयन की संख्या 85 से 213 हुई, सुरेश चव्हाणके इसे एक विस्फोटक वृद्धि बता रहे हैं, इस आंकड़े को प्रतिशत में बदलकर.
हमने रोटरी क्लब के सदस्य और पश्चिम बंगाल हाई कोर्ट में वकील और लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम कर रहे एडवोकेट ऑरको कुमार से संपर्क किया. क्विंट से बातचीत में उन्होंने कहा कि दो दिनों के जन्म पंजीकरण के डेटा के आधार पर इस तरह के नतीजों पर पहुंचना बिल्कुल भी लॉजिकल नहीं है.
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार राकेश मालवीय से हमने संपर्क किया. उनका मानना है कि दो दिनों के डेटा के आधार पर न तो अस्पतालों या घरों में जन्म लेने वाले बच्चों के अनुपात का अंदाजा लगाना सही है. न ही बच्चों के जन्म पंजीयन का.
बच्चों का जन्म घर पर होता है या अस्पताल में ग्रामीण इलाकों में इसके पीछे धार्मिक फैक्टर कितना काम करता है?
इस सवाल का जवाब देते हुए राकेश मालवीय कहते हैं
सुरेश चव्हाणके का मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण की संख्या में ‘भारी वृद्धि’ का दावा कितना सच है? इसकी पुष्टि के लिए हमने कुछ विश्वसनीय सोर्सेस पर इससे जुड़ी रिपोर्ट्स सर्च करनी शुरू कीं. हमें पता चला कि बेशक CAA के बाद जन्म पंजीकरण के लिए आने वाले मुस्लिम आवेदकों की संख्या बढ़ी है. लेकिन, सुरेश चव्हाणके का 200% की वृद्धि वाला आंकड़ा तब भी तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता.
क्योंकि जन्म प्रमाण पत्र को लेकर धर्म के आधार पर कोई डेटा एकत्रित किया ही नहीं जाता.
उत्तरप्रदेश से ऐसी कई खबरें सामने आई हैं, जिनके मुताबिक CAA आने के बाद मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में बढ़ोतरी देखी गई है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में भी ये बताया गया है कि लखनऊ में दिसंबर 2018 से दिसंबर 2019 के बीच जन्म पंजीकरण की संख्या में 200% की बढ़ोतरी देखी गई. दिसंबर 2018 में लखनऊ नगर निगम ने 2012 जन्म प्रमाण पत्र जारी किए थे. जबकि दिसंबर 2019 में 6193 जन्म प्रमाण पत्र जारी किए गए. यानी कुल 200% की बढ़ोतरी. लेकिन इनमें से कितने आवेदन मुस्लिम समुदाय से थे? इसका कोई निश्चित प्रतिशत नहीं है. हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में अधिकारियों ने ये जरूर कहा है कि CAA के बाद मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में बढ़ोतरी हुई, लेकिन ये बढ़ोतरी कितनी है? कितने प्रतिशत? इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है.
सुरेश चव्हाणके जिस प्रयागराज के आधार पर मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में हुई बढ़ोतरी का आंकड़ा दे रहे हैं. उस प्रयागराज नगर निगम के अधिकारियों ने ही धर्म के आधार पर जन्म पंजीयन के किसी भी तरह के डेटा से साफ इंकार किया है. प्रयागराज नगर निगम के प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी उत्तम कुमार वर्मा के मुताबिक, जन्मप्रमाण पत्र के लिए रजिस्ट्रेशन में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन धर्म के आधार पर ऐसा कोई डेटा मेंटेन नहीं किया जाता, जिसके आधार पर सटीक आंकड़ा उपलब्ध कराया जा सके.
वाराणसी के नगर स्वास्थ्य अधिकारी रामशकल यादव ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा कि ‘लोगों को बताया जा रहा है कि CAA या NRC को लेकर जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य होने से जुड़ा कोई निर्देश अब तक नहीं आया है’’
TOI की 27 दिसंबर, 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, गोरखपुर में जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने वालों की संख्या 90-100 से बढ़कर 140-150 हो गई है. नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मुकेश रस्तोगी ने TOI से बातचीत में कहा कि पंजीयन के लिए आने वालों की संख्या भले ही बढ़ रही है, लेकिन प्रमाण पत्र तब ही जारी किया जाता है जब पर्याप्त दस्तावेज होते हैं.
वहीं बरेली में जहां पंजीयन के लिए आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही कई फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाए जाने का मामला भी सामने आया है. साइबर कैफे संचालक एडिटिंग के जरिए लोगों को नकली जन्म प्रमाण पत्र बनाकर दे रहे हैं. नगर निगम के अधिकारियों ने इस मामले की शिकायत भी पुलिस में की है.
हिंदुस्तान टाइम्स की जनवरी, 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल और महाराष्ट्र के कई अल्पसंख्यक बाहुल्य इलाकों में जन्म पंजीकरण के आवेदनों में बढ़ोतरी देखी गई है.
दावा : जन्म के सालों बाद आवेदन करने पर आसानी से बन जाता है प्रमाण पत्र?
हमने प्रयागराज के सिटी मजिस्ट्रेट से संपर्क किया. क्विंट से बातचीत में उन्होंने बताया
बेशक सुरेश चव्हाणके ने मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में बढ़ोतरी को जिहाद बताने के लिए जो आंकड़े पेश किए वो भ्रामक हैं. लेकिन, अगर CAA के बाद मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में वृद्धि हुई भी है, तो क्या इसे 'जिहाद' बताना सही है ? इसपर इंडियन सिविल लिबर्टीज यूनियन के संस्थापक अनस तनवीर कहते हैं कि इसे सिर्फ एक समुदाय में जन्म पंजीयन को लेकर बढ़ रही जागरुकता की तरह देखा जाना चाहिए.
सुरेश चव्हाणके ने प्रमुख तौर पर 2 दावे किए. पहला कि घर पर जन्म लेने वाले मुस्लिम बच्चों का अनुपात 75% है. दूसरा ये कि CAA के बाद मुस्लिमों के जन्म पंजीकरण में बिस्फोटक वृद्धि हुई है. अगर सुरेश चव्हाणके को इससे आपत्ति है कि मुस्लिम समुदाय में बच्चों का जन्म अस्पताल में नहीं घर में होता है, तो फिर इस बात से आपत्ति क्यों है कि जन्म पंजीकरण कराने वाले मुस्लिम आवेदकों की संख्या बढ़ती है. क्योंकि बच्चों के घर पर जन्म लेने वाले बच्चों का रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं होता. अगर ये रिकॉर्ड जन्म पंजीकरण के जरिए सरकार के पास दर्ज कराया जा रहा है तो ये गलत कैसे है ?
ये पहला मौका नहीं है जब सुदर्शन न्यूज के एडिटर सुरेश चव्हाणके ने किसी मामले को सांप्रदायिक रंग देने के लिए झूठा दावा किया है. इससे पहले चव्हाणके यूपीएससी को लेकर ये झूठा दावा कर चुके हैं कि IAS परीक्षा में मुस्लिम उम्मीदवारों को हिंदू उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा अटेम्प्ट मिलते हैं और आयु सीमा में भी छूट मिलती है. क्विंट की वेबकूफ टीम ने इस दावे की पड़ताल की थी. और पड़ताल में दावा फेक साबित हुआ था. ये पड़ताल पढ़ने के लिंए नीचे दिए गए लिक पर क्लिक करें.
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