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इराक में शिया मुसलमानों के पवित्र शहर कर्बला से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है. कर्बला में मुहर्रम के जुलूस के लिए भारी संख्या में लोग जमा हुए थे. अचानक भगदड़ मच गई, जिसमें 31 लोगों की जान चली गई. वहीं कई लोग गंभीर रूप से जख्मी बताए जा रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, इराकी स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता सायफ अल-बद्र ने कहा कि यह घटना आशुरा की प्रमुख शिया परंपरा के दौरान हुई, जब कर्बला में इमाम हुसैन के मकबरे में हजारों लोगों को प्रवेश करने दिया गया. कर्बला, बगदाद से 110 किमी दूर है.
हर साल हजारों की तादाद में शिया मुसलमान कर्बला के इस पवित्र शहर में मुहर्रम के जुलूस में शामिल होने के लिए जमा होते हैं.
इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन मुहर्रम के इसी महीने की 10 तारीख को इराक के कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे, उनके साथ 71 लोग और थे, जिन्हें यजीद की फौज ने मार दिया था. इसमें इमाम हुसैन के 6 महीने के बेटे अली असगर भी थे.
इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद की बेटी फातिमा और हजरत अली के बेटे थे. हजरत अली को शिया मुसलमान अपना पहला इमाम मानते हैं, मतलब लीडर और सुन्नी मुसलमान अपना चौथा खलीफा.
मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? इसकी डिटेल जानने के लिए हम थोड़ा इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, हम तारीख के उस हिस्से में चलते हैं, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का राज था. ये खलीफा पूरी दुनिया के मुसलमानों के प्रमुख नेता होते थे.
यजीद की फौज ने इमाम हुसैन और उनके साथ के लोगों के लिए पानी तक बंद कर दिया. मतलब बेसिक राइट्स भी छीन लिए गए. जुल्म बढ़ता गया, लेकिन उन लोगों ने सरेंडर नहीं किया. यजीद को बादशाह मानने से इनकार करते रहे और फिर यजीद की बुजदिल फौज ने उनकी हत्या कर दी. लेकिन इमाम हुसैन भ्रष्ट, जालिम, अन्याय करने वाले यजीद के सामने झुके नहीं.
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