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अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबानी शासन शुरू हो चुका है. राष्ट्रपति के भाग जाने के बाद काबुल में अब सिर्फ तालिबान के झंडे नजर आ रहे हैं. लेकिन एक शख्स अब भी ऐसा है, जो अपने कुछ लड़ाकों के साथ तालिबान को चुनौती दे रहा है. उस शख्स का नाम अहमद मसूद है.
1989 में अफगानिस्तान के पूर्वोत्तर प्रान्त के पीयू में जन्मे अहमद मसूद (Ahmad Massoud), फ्रेंच बोलने वाले अफगान मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के 6 बच्चों में एकलौते लड़के हैं.
ईरान में अपनी माध्यमिक स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, 2012 में मसूद ने रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट (Royal Military Academy Sandhurst) में एक साल का एक मिलिट्री कोर्स किया. इसके बाद किंग्स कॉलेज लंदन (King's College London) में वॉर स्टडीज में 2015 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने 2016 में सिटी, लंदन विश्वविद्यालय (University of London) से इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में मास्टर डिग्री प्राप्त की.
अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद (Ahmad Shah Masoud) को सोवियत संघ और तालिबान के खिलाफ 1980 के दशक में पंजशीर क्षेत्र में विरोध करने वाले समूहों का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है. अहमद शाह मसूद ने 1996 से सितंबर 2001 में (उनकी हत्या तक) तालिबान के शासन के खिलाफ मुख्य विपक्ष के रूप में एक लड़ाकों की सेना का नेतृत्व किया.
अहमद मसूद अपने पिता द्वारा बनाये गए 'राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा' (The National Resistance Front of Afghanistan- NRF) का नेतृत्व कर रहे हैं और पंजशीर में एक लड़ाकों की टुकड़ी की कमान संभालते हैं. अहमद मसूद दिखने में अपने पिता जैसे ही हैं.
सोशल मीडिया में सर्कुलेट हो रही तस्वीरों में मसूद अपदस्थ उप राष्ट्रपति सालेह से मिलते हुए दिख रहे हैं. ये तस्वीरें पंजशीर घाटी की ही हैं और दोनों तालिबान से लड़ने के लिए एक गुरिल्ला आंदोलन की टुकड़ी को इकट्ठा करते हुए दिखाई दे रहे हैं. 48 वर्षीय सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित किया है. सालेह फरवरी 2020 से देश के उपराष्ट्रपति हैं. और 1990 के दशक में तालिबान विरोधी गठबंधन में मसूद के पिता के साथ सदस्य रहे हैं.
मसूद उस समय 9 साल के थे जब 1998 में पंजाशीर की एक गुफा में उनके पिता ने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया था. पंजशीर घाटी! हिन्दकुश की पहाड़ियों से घिरा हुआ उत्तरी काबुल से 125 किमी दूर है.
मसूद ने एक बार किसी को यह कहते सुना था, "जब आप अपनी आजादी के लिए लड़ते हैं, तो आप हमारी आजादी के लिए भी लड़ते हैं."
इस भावना का उल्लेख करते हुए अहमद मसूद कहते हैं कि "हमने एक खुले सोच वाले समाज के लिए इतने लंबे समय तक संघर्ष किया है. जहां लड़कियां डॉक्टर बन सकती हैं, हमारा प्रेस स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट कर सकता है, हमारे युवा स्टेडिय में नृत्य कर सकते हैं और संगीत सुन सकते हैं या फ़ुटबॉल मैचों में भाग ले सकते हैं, जिन स्टेडियमों का उपयोग तालिबान सार्वजनिक फांसी के लिए करता था - और ऐसा जल्द ही फिर से हो सकता है.”
इस समय पंजशीर घाटी ही अफगानिस्तान में एकमात्र बचा हुआ ठिकाना है जहां तालिबान विरोधी ताकतें उससे लड़ने के लिए गुरिल्ला आंदोलन बनाने पर काम कर रही हैं.
2001 से 2021 तक नाटो समर्थित सरकार के समय में भी पंजशीर घाटी देश के सबसे सुरक्षित स्थानों में से एक थी.
घाटी के इस प्रकार स्वतंत्र रहने में अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद का बड़ा योगदान रहा है. 1953 में घाटी में जन्मे, अहमद शाह ने 1979 में खुद को "मसूद" नाम दिया. जिसका अर्थ होता है "भाग्यशाली" या "लाभार्थी". उन्होंने उस समय काबुल और सोवियत संघ में कम्युनिस्ट सरकार का विरोध किया, और देश के सबसे प्रभावशाली मुजाहिदीन कमांडरों में से एक बन गए.
अब अहमद मसूद ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के वापसी के बाद तालिबान को चुनौती देकर अपने पिता के काम को जारी रखने की कसम खाई है.
अहमद मसूद ने वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक आर्टिकल में लिखा है कि,
अहमद मसूद ने कहा है कि वो तालिबान के साथ शांति वार्ता करना चाहता है और वो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध नहीं देखना चाहता. हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि जरूरत होगी तो उसकी सेनाएं लड़ने के लिए तैयार हैं.
मसूद ने रविवार को रॉयटर्स से कहा, "मेरी सेना बचाना चाहती है, वह लड़ना चाहती है, मेरी सेना टोटलिटेरियन (अधिनायकवादी) शासन के खिलाफ विरोध करना चाहती है"
NRF (The National Resistance Front of Afghanistan) का कहना है कि वह अफगानिस्तान में शासन के एक विकेन्द्रीकृत रूप की ओर बढ़ना चाहता है, जिसमें सत्ता-साझाकरण की एक समावेशी प्रणाली हो जो देश के सभी विभिन्न जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व करती है.
एनआरएफ का मानना है कि स्थायी शांति के लिए हमें अफगानिस्तान में अंतर्निहित समस्याओं का समाधान करना होगा. अफगानिस्तान जातीय अल्पसंख्यकों से बना देश है, कोई भी बहुसंख्यक नहीं है. यह एक बहुसांस्कृतिक राज्य है, इसलिए इसे सत्ता के बंटवारे की जरूरत है.
अहमद मसूद तालिबान से एक सत्ता-साझाकरण सौदा चाहता है, जहां हर कोई खुद को सत्ता में देख सके.
हालांकि मसूद की सेना की संख्या 6,000 है और मसूद ने कहा है कि अगर लड़ाई की बात आती है तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत होगी.
मसूद ने प्रतिरोध का समर्थन करने के लिए फ्रांस (जहां उनके पिता एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाते हैं), अमेरिका और यूरोप के अन्य हिस्सों और अरब दुनिया से आह्वान किया है.
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