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कोरोना वायरस (Covid-19) के बाद (China) चीन पर एक और रहस्यमयी बीमारी के लिए शक की सुइयां घूम रही हैं. इस बार मामला चीन में तैनात अमेरिकी डिप्लोमेट्स की रहस्यमय बीमारी का है. अमेरिका (US) इसे चीन का षड्यंत्र बता रहा है. आइए जानते हैं आखिर मामाला क्या है.
2016 की शुरुआत में क्यूबा और चीन में तैनात यूएस डिप्लोमेट्स और सीआईए (CIA) अधिकारियों में तेज सिर दर्द, नाक से खून आना और याददाश्त में कमजोरी (मेमोरी लॉस) जैसे लक्षण देखने को मिले. तब अमेरिकी सरकार ने इसकी मूल वजह जानने के लिये टॉप इंवेस्टिगेर्ट्स की टीम से मामले की जांच करने को कहा. तब से लेकर अब तक चार साल बाद भी बीमारी वजह का जबाव नहीं मिल पाया. लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स और जीक्यू मैग्जीन में की एक रिपोर्ट से इस मामले में एक बार फिर लोगों का ध्यान गया है. अमेरिकी अधिकारियों को शंका है कि यह जो कुछ भी हो रहा है वह एक अमेरिका विरोधी हमला का हिस्सा हो सकता है.
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि आखिर इन लक्षणों के पीछे की वजह क्या है. थ्योरी कहती हैं कि यह माइक्रोवेव एनर्जी हथियार से लेकर बड़े पैमाने पर पॉइजन देने से भी हो सकता है. इन सबके बीच एक बात स्पष्ट है कि इससे अमेरिकी अधिकारियों को कमजोरी और कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और उनमें से कुछ को लगता है कि अमेरिकी सरकार द्वारा उन्हें आवश्यक मदद नहीं मिल पा रही है.
अगर एक शब्द में कहें तो, नहीं. लेकिन अधिकारी और वैज्ञानिक माइक्रोवेव हथियार के साथ-साथ कुछ थ्योरियों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. 2018 में डॉक्टरों की टीम ने जर्नल ऑफ द मेडिकल एसोसिएशन में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, रिपोर्ट में पाया गया था कि क्यूबा में जो राजनयिक प्रभावित थे, उनमें वैसी ब्रेन इंजरी देखी गई जैसी सिर में चोट लगने पर होती थी, लेकिन उनके सिर पर चोट के ताजा निशान नहीं थे.
इस स्टडी के प्रमुख लेखक और पेरेसमेन स्कूल ऑफ मेडिसिन के ब्रेन इंजरी एंड रिपेयर सेंटर के डॉयरेक्टर डॉक्टर डॅगलस एच. स्मिथ ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया है कि पहले केवल माइक्रोवेव से प्रभावित होने का संदेह था, लेकिन अब वह संदेह और बढ़ता जा रहा है.
मॉस्को में सीआईए के स्टेशन चीफ रह चुके और 2015 में इस एजेंसी से रिटायर हो चुके स्टीवन हाल का कहना है कि 1970 के दौर के बुरे दिनों में सोवियत संघ कई हाई-एनर्जी डिवाइस का प्रयोग टेक्निकल कलेक्शन ऑपरेशन्स को ऑपरेट करने के लिये करता था. स्टीवन हाल का मानना है कि संभवत: इसके कुछ वर्जन चीन, रूस और क्यूबा में चल रहे हैं.
एक अन्य थ्योरी के मुताबिक टॉक्सिन्स या बड़े पैमाने पर हिस्टीरिया की बात भी कही जा रही है. जब अमेरिकी डिप्लोमेट्स इस समस्या का सामना कर रहे थे. उसी दौर में क्यूबा में नियुक्त कनाडा के राजनयिक भी रहस्यमयी ब्रेन इंजरी से जूझ रहे थे. इसपर कनाडा की सरकार ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, वह इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि साइड इफेक्ट में जो रसायन पाये गए हैं वह मच्छरों को भगाने वाले धुएं में उपयोग किये गए हैं. वहीं एक अन्य संदेहजनक बीमारी भी देखी गई. इसमें बड़ी संख्या में लोग साइकोजेनिक यानी मानसिक बीमारी से ग्रसित हो रहे थे.
इस रहस्यमयी बीमारी ने 2017 में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. जब क्यूबा की यूएस अम्बैसी में तैनात अमेरिकी अधिकारियों के समूह ने कम सुनाई देना, सिर दर्द, थकान और अनिद्रा जैसी समस्याएं महसूस की. इसके अगले साल चीन में भी अमेरिकी अधिकारियों को यही समस्याएं महसूस हुईं. तब सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोम्पियो ने संसद में बताया था कि यह मेडिकल इंडीकेशन क्यूबा में महसूस किये गये अनुभवों से काफी समान हैं.
पंद्रह क्यूबन डिप्लोमेट्स को वाशिंगटन से निष्कासित कर दिया गया और स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा क्यूबा जाने वाले अमेरिकी नागरिकों के लिए ट्रेवल वार्निंग जारी कर दी गई. हालांकि क्यूबा बार-बार यही दोहराता रहा कि इस मामले में उसका कोई रोल नहीं हैं. वहीं चीन के प्रति रवैया शांत और मौन था. क्योंकि ट्रंप बीजिंग में चीन के साथ एक ट्रेड डील करना चाहते थे.
उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार इसे बहुत ही बुरे तरीके से हैंडल कर रही है. यूएस की फॉरेन पॉलिसी पंद्रह वर्ष पहले जैसी हैं, यह रेत में सिर छुपाने जैसा है.
शक की सुइयां क्रेमलिन की ओर जाती हैं. रूस का इतिहास रहा है कि वह अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ माइक्रोवेव हथियार प्रयोग करता था. इसके पीछे की वजह अमेरिका का चीन और क्यूबा के साथ संबंध बेहतर करना था. मास्को पश्चिम में अपने दुश्मनों का पीछा करने के लिए हमेशा तैयार रहता है. ऐसी खबरें आती रहती हैं कि वह अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों को मारने के लिए तालिबानी आतंकियों को इनाम की पेशकश करता है. जबकि रूस का विदेश मंत्रालय क्यूबा में हुई घटना के किसी भी संबंध से इनकार करता है.
जीक्यू की खबर के अनुसार सीआईए की जांच में सेलफोन की लोकेशन डाटा बताते हैं कि जब पहली बार अमेरिकी अधिकारियों में ये लक्षण दिखे थे तब वहां रसियन सिक्यूरिटी सर्विस के लोग मौजूद थे. लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक अमेरिकी अधिकारी बिना किसी ठोस सबूत और जानकारी के मॉस्को की तरफ उंगली नहीं उठाना चाहते हैं.
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