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तख्तापलट, हत्या और तख्तापलट... बांग्लादेश का इतिहास बता रहा कि कुछ भी नया नहीं

बांग्लादेश की जनता ने अपनी चुनी हुई पीएम, शेख हसीना को इस्तीफा देने के साथ-साथ देश छोड़ने को मजबूर कर दिया है.

आशुतोष कुमार सिंह
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Bangladesh Founding Father&nbsp;Sheikh Mujibur Rahman</p></div>
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Bangladesh Founding Father Sheikh Mujibur Rahman

(फोटो- पीटीआई)

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बांग्लादेश एक बार फिर बड़े उलटफेर से गुजर रहा है. यहां की जनता ने अपनी चुनी हुई पीएम, शेख हसीना को इस्तीफा देने के साथ-साथ देश छोड़ने को मजबूर कर दिया है. जिस शेख मुजीबुर रहमान को इस देश का संस्थापक नेता माना जाता है, जिन्हें पाकिस्तान से आजादी का श्रेय दिया जाता है, उनकी मूर्ती को भीड़ ने सिर्फ इसलिए तोड़ दिया क्योंकि वो शेख हसीना के पिता भी थे.

बांग्लादेश के इतिहास (Bangladesh History) के शक्ति-संघर्ष में खून-खराबा कोई नई बात नहीं है. चाहे वो आजादी की लड़ाई हो या फिर उसके बाद सैन्य शासन और लोकतंत्र, बांग्लादेश लगातार राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा की आग से झुलसता रहा.

चलिए आपको बांग्लादेश में बार-बार हुए तख्तापलट की कहानी बताते हैं.

पाकिस्तान से आजाद हुआ देश

बांग्लादेश भारत की आजादी के बाद हुए बंटवारे में पूर्वी पाकिस्तान बना. लेकिन जब बांग्लादेश मुक्ति युद्ध हुआ तो इस राष्ट्र का निर्माण हुआ. यह युद्ध तब शुरू हुआ जब याह्या खान के आदेश के बाद पश्चिमी पाकिस्तान (आज के पाकिस्तान) में स्थित सैन्य शासन ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया, जिससे बांग्लादेश नरसंहार शुरू हुआ. भारतीय सेना की मदद से इस लड़ाई में पाकिस्तान हार गया और बांग्लादेश का जन्म 1972 में एक स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में हुआ जिसके नेता शेख मुजीबुर रहमान थे.

हत्या, हत्या, हत्या..... तख्तापलट में डूबा रहा देश

शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले प्रधान मंत्री बने. उन्होंने एकदलीय प्रणाली शुरू की और जनवरी 1975 में राष्ट्रपति बन गए. लेकिन एक साल के अंदर ही 15 अगस्त 1975 को सैनिकों के एक ग्रुप ने उनके साथ-साथ उनकी पत्नी और तीन बेटों की हत्या कर दी गई. इसमें शेख हसीना और उनकी बहन बच निकलीं.

शेख मुजीबुर रहमान की धर्मनिरपेक्ष सरकार को हटाकर खंदाकेर मुश्ताक अहमद के नेतृत्व वाली इस्लामी सरकार स्थापित करने के लिए मध्य-रैंकिंग के सैन्य अधिकारियों ने यह सैन्य तख्तापलट किया था.

लेकिन खुद मुश्ताक अहमद का कार्यकाल भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला. 3 नवंबर 1975 को ही सेना के चीफ ऑफ स्टाफ खालिद मुशर्रफ ने तख्तापलट की नींव रखी. मुश्ताक अहमद की प्रतिद्वंद्वी विद्रोहियों ने हत्या कर दी. खालिद मुशर्रफ ने तबके सेना प्रमुख मेजर जनरल जियाउर्रहमान को नजरबंद कर दिया.

अब हत्या की बारी खुद तख्तापलट करने वाले खालिद मुशर्रफ की थी. 4 दिन के अंदर ही ऐसा हुआ. 7 नवंबर 1975 को लेफ्ट की पार्टी, जातीय समाजतांत्रिक दल के नेताओं के सहयोग से सेना के वामपंथी जवानों ने तख्तापलट शुरू किया था. इस तख्तापलट में खालिद मोशर्रफ की हत्या कर दी गई और जियाउर्रहमान को नजरबंदी से आजाद किया गया. आखिर में जियाउर्रहमान ने सत्ता पर कब्जा किया और राष्ट्रपति बन गए.

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जियाउर्रहमान थोड़े भाग्यशाली थे तो 6 साल तक बांग्लादेश के सर्वेसर्वा रहे और लगभग 2 दर्जन हत्या की कोशिशों के बावजूद जिंदा बचे रहे. लेकिन एक दिन उनके गुडलक भी खत्म हो गए. सत्ता में छह साल से भी कम समय के बाद, 30 मई 1981 को तख्तापलट की कोशिश के दौरान जियाउर्रहमान की हत्या कर दी गई. उनके उपराष्ट्रपति अब्दुस सत्तार ने जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के समर्थन से अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला.

लेकिन बांग्लादेश की जनता को राजनीतिक अस्थिरता अभी भी नसीब नहीं थी. जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद ने एक साल के भीतर अब्दुस सत्तार से समर्थन वापस ले लिया और 24 मार्च 1982 को रक्तहीन तख्तापलट में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया.

तख्तापलट के तुरंत बाद संविधान खत्म किया, मार्शल लॉ लगाया और अहसानुद्दीन चौधरी को राष्ट्रपति बना दिया. लेकिन फिर 11 दिसंबर 1983 को मुहम्मद इरशाद खुद राष्ट्रपति बन गए.

बांग्लादेश की जनता करती रही लोकतंत्र की मांग

बांग्लादेश की जनता लोकतंत्र की मांग करती रही. लोकतंत्र की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शनों की लहर के बाद, मुहम्मद इरशाद ने 6 दिसंबर, 1990 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. फिर उन्हें 12 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिया गया और भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में डाल दिया गया.

बांग्लादेश में पहला स्वतंत्र चुनाव 1991 की शुरुआत में हुआ. इसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) विजेता रही. जनरल जियाउर्रहमान की विधवा खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधान मंत्री बनीं.

1996 में शेख हसीना की अवामी लीग ने बीएनपी को चुनाव में हराया. इस तरह देश के संस्थापक, मुजीबुर रहमान की बेटी और खालिदा जिया की कट्टर प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना ने पीएम पद की जगह ली.

BNP 2001 में सत्ता में फिर लौटी, खालिदा जिया एक बार फिर प्रधान मंत्री बनीं और अक्टूबर 2006 में अपना कार्यकाल पूरा किया. लेकिन 2007 में एक बार फिर सेना ने एंट्री मारी. सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मोईन यू. अहमद ने 11 जनवरी 2007 को सैन्य तख्तापलट किया. सेना के कंट्रोल वाली एक अंतरिम सरकार बनी, खालिदा जिया और शेख हसीना दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. 2008 में दोनों रिहा हुईं और फिर से चुनाव हुए. दिसंबर 2008 में चुनावों में अपनी पार्टी की जीत के बाद, हसीना एक बार फिर प्रधान मंत्री बनीं. तब से लेकर 5 अगस्त 2024 तक शेख हसीना बांग्लादेश की पीएम रहीं.

एक बार फिर बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल है. शेख हसीना जनता के विद्रोह के बीच पीएम पद से इस्तीफे और देश छोड़ने को मजबूर हुईं. अब एक बार फिर बांग्लादेश की कमान सेना के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के हाथों में जाती दिख रही है.

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