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शेख हसीना बांग्लादेश छोड़ने पर क्यों मजबूर हुईं?

शेख हसीना ने अपने इस्तीफे से पहले सेना से बातचीत की थी...

भारत भूषण
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>भारत के पड़ोसी देश में क्रांति: बांग्लादेश में छात्रों की जीत हुई</p></div>
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भारत के पड़ोसी देश में क्रांति: बांग्लादेश में छात्रों की जीत हुई

(फोटो: जिबोन अहमद)

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बांग्लादेश (Bangladesh) की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) ने इस्तीफा दे दिया है और वह ढाका से भाग गईं हैं. बांग्लादेशी सेना ने घोषणा की है कि आज (सोमवार) नई अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा. हसीना को छात्रों के एक आंदोलन की वजह से अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, जिसने सरकारी नौकरियों में कोटा रद्द करने की मांग की थी, लेकिन छात्रों का प्रदर्शन जल्द ही एक सार्वजनिक विद्रोह में बदल गया.

1 जुलाई को शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों में मारे गए 300 से ज्यादा लोगों ने विद्रोह को हवा दी थी. 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद से बांग्लादेश में मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है. इसके बाद 22 जुलाई को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने अधिकांश कोटा रद्द करने का फैसला दिया जिसके बाद सरकारी नौकरियों में कोटे का मुद्दा दरकिनार हो गया.

हालांकि कोटे को लेकर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन तुरंत इस बात पर शिफ्ट हो गया - प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा, जिन्हें छात्र उनके खिलाफ अभूतपूर्व राज्य हिंसा के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार मानते हैं.

ढाका में प्रदर्शनकारियों को आंसू गैस का सामना करना पड़ा

(फोटो: जिबोन अहमद)

ऐसे कई संकेत थे कि हसीना सरकार नौकरी कोटे पर मांगों को मान कर पीछे हट भी जाती तो भी प्रदर्शनकारी छात्र संतुष्ट नहीं होते. छात्र चाहते थे कि उनके साथियों पर अत्याचार, गिरफ्तारी और हत्याओं के लिए जिम्मेदार अपराधियों की पहचान की जाए, उन पर मुकदमा चलाया जाए और उन्हें सजा दी जाए.

अकेले रविवार को, प्रधानमंत्री हसीना को निशाना बनाकर विरोध प्रदर्शन फिर से भड़कने पर 100 से अधिक लोग मारे गए. उनमें एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी और कम से कम आधा दर्जन अवामी लीग के कार्यकर्ता शामिल थे. इससे पता चलता है कि कैसे यह आंदोलन प्रदर्शनकारियों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ हो गया था.

रविवार को, छात्रों ने प्रधानमंत्री कार्यालय गनोभवन तक मार्च करने का आह्वान किया जिसके बाद, सोमवार सुबह ढाका में फिर से कर्फ्यू लगा दिया गया.

ढाका में प्रदर्शनकारी

(फोटो: जिबोन अहमद)

सोमवार सुबह तीन घंटे से ज्यादा समय तक इंटरनेट बंद रहा. ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब इसलिए किया गया ताकि इस समय का इस्तेमाल कर सेना द्वारा प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देने के लिए मनाती और देश से बाहर भागने की सुविधा देती. हालांकि उनके इस्तीफे से पहले उनके और सेना के बीच क्या बातचीत हुई, इसकी डीटेल्स सामने नहीं आई है.

हां इस बात की जानकारी है कि सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान पर उन अधिकारियों का दवाब था जो रैंक में उनसे नीचे हैं, दबाव ये था कि वे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आदेश न दें. वे नहीं चाहते थे कि सेना को छात्र प्रदर्शनकारियों पर सरकार की कार्रवाई के हिस्से के रूप में देखा जाए.

शनिवार को, जनरल जमान, अपने अधिकारियों के मूड के प्रति संवेदनशील थे, उन्होंने ढाका में उन्हें संबोधित करने का विकल्प चुना. बताया जाता है कि उन्होंने उन्हें समझाया था कि क्यों उन्हें सेना तैनात करने के लिए मजबूर किया गया था - वह नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए राज्य के प्रमुख के आदेश के अधीन थे. सेना के भीतर बेचैनी का आलम यह है कि उन्हें अधिकारियों को आश्वस्त करना पड़ा कि अब से सेना प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाएगी.

ढाका में सूत्रों के अनुसार, सोमवार सुबह जनरल जमान ने डिविजनल कमांडरों को प्रदर्शनकारी छात्रों पर गोली न चलाने के लिए कहा था, हालांकि प्रधानमंत्री ने सेना को उनके कार्यालय तक मार्च को फेल करने के निर्देश जारी किए थे.

एक बार जब यह स्पष्ट हो गया कि बांग्लादेश सशस्त्र बल पीएम के बचाव शायद नहीं आएगा, तो शेख हसीना के लिए 'गेम ओवर' स्थिति हो गई थी यानी उनका खेल वहीं खत्म हो गया था.

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आगे जो हुआ वह कोई नहीं जानता था

हालांकि कोई नहीं जानता कि शेख हसीना के जाने के बाद चीजें कैसे सामने आएंगी, लेकिन सोमवार सुबह से ही इस बात की चर्चा चल रही थी कि जैसे ही हसीना इस्तीफा देंगी उसके बाद सेना, नागरिक समाज के नेताओं और टेक्नोक्रेटों से युक्त एक अंतरिम सरकार स्थापित करेगी.

अब जनरल जमान ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इसकी पुष्टि कर दी है और अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा. इस बात को लेकर भी अटकलें थीं कि इसका नेतृत्व कौन कर सकता है. दो नाम जो चर्चा में हैं उनमें जनरल (सेवानिवृत्त) इकबाल करीम भुइयां या नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ मोहम्मद यूनुस का नाम शामिल है.

हालांकि, जब एक संवाददाता ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के जिन नेताओं से बात की, उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे जनरल (सेवानिवृत्त) भुइयां को स्वीकार नहीं करेंगे, उनमें से एक ने उन्हें एक "धोखा देने वाला" बताया, जिसने अवामी लीग के साथ "सांठगांठ" की थी. यह भी आरोप लगाया कि जब वह सेना प्रमुख थे तब 2014 के आम चुनाव में उन्होंने धांधली की. वहीं 84 साल के डॉ यूनुस के बारे में उनका सोचना था कि वे बहुत बूढ़े हैं.

भले ही हसीना को इस बात का एहसास नहीं था कि उनके दिन अब गिनती के रह गए हैं, लेकिन उनकी पार्टी के कई लोग भविष्य को समझने में उनसे कहीं बेहतर साबित हुए.

3 अगस्त तक, ऐसी कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि कम से कम दो दर्जन पूर्व अवामी लीग मंत्री अपने परिवारों के साथ देश छोड़कर भाग गए थे. ऐसा माना जाता है कि उनमें से कई ने 14 से 17 जुलाई के बीच बांग्लादेश छोड़ दिया और अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, भारत, थाईलैंड, चीन और दुबई जैसे देशों में चले गए.

जिन्होंने शनिवार-रविवार के दिन देश छोड़ा, उनमें ढाका साउथ के मेयर, शेख फजल नूर टापोश शामिल हैं, जो 2 अगस्त को ढाका छोड़कर सिंगापुर के लिए रवाना हो गए. टापोश को शेख मुजीब परिवार के सदस्य की तरह माना जाता था, क्योंकि उनके पिता शेख फजलुल हक मोनी, मुजीब बहिनी के कमांडर और स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख आयोजकों में से एक थे. नारायणगंज से अवामी लीग के सांसद के बारे में भी अफवाहें हैं कि उन्होंने देश छोड़ दिया है.

यह देखना बाकी है कि जनता शेख हसीना के देश छोड़ने और इसे सुविधाजनक बनाने में सेना की संभावित भूमिका को कैसे देखती है. प्रदर्शनकारी चाहते थे कि उन्हें गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया जाए. उन्हें सेना के हेलीकॉप्टर में ले जाया जाना जनता को पसंद नहीं आएगा और सेना प्रमुख को कुछ झटका लग सकता है.

जहां तक ​​भारत की बात है, इसकी साख बांग्लादेश में लोगों के बीच ठीक नहीं है. अगर हसीना भारत में शरण लेती है तो बांग्लादेश में भारत की छवि पर बुरा असर पड़ सकता है. हालांकि, अटकलें हैं कि वह किसी तीसरे देश में जा कर शरण ले सकती हैं.

भारत की साख बांग्लादेशियों के बीच अच्छी नहीं है क्योंकि वे मानते हैं कि भारत ने शेख हसीना को हमेशा समर्थन दिया है और हसीना ने पिछले 15 सालों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हेरफेर किया है. भारत ने मुख्य विपक्ष, बीएनपी के साथ किसी भी सार्थक बातचीत को भी लगभग बंद कर दिया है.

ऐसी भी खबरें हैं कि एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त खुफिया अधिकारी को प्रदर्शनकारी छात्रों से निपटने के तरीके पर हसीना सरकार को सलाह देने के लिए गुप्त रूप से ढाका भेजा गया था. इस अधिकारी ने कथित तौर पर 21 जुलाई को गनोभवन में हसीना के साथ-साथ तीनों सेनाओं के प्रमुखों और सुरक्षा एजेंसी प्रमुखों के साथ बैठक की थी. हालांकि, भारत अचानक खुद को इतिहास के गलत पक्ष में पाए जाने से कैसे निपटता है, यह देखना अभी बाकी है.

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