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"मैं तुम्हारा बलात्कार भी नहीं करूंगा क्योंकि तुम इसके लायक नहीं हो."
"अगर मैं दो मर्दों को गली में किस करते हुए देखूं, तो मैं उन्हें मारूंगा."
"हम ब्राजीलियाई समलैंगिकों से नफरत करते हैं".
ऐसे विवादस्पद बयान देने वाला इंसान कोई ट्विटर पर जहर उगने वाला सड़क-छाप नहीं है बल्कि 21 करोड़ से लोगों का लीडर रह चुका- जायर बोल्सोनारो है. लेकिन बोल्सोनारो नाम के इस 4 साल की 'रात' के बाद लूला नाम की 'सुबह' हुई है.
ब्राजील की जनता ने राष्ट्रपति के रूप में जायर बोल्सोनारो (Jair Bolsonaro) को सिर्फ एक कार्यकाल के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया है और उनकी जगह वामपंथी नेता लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा (Luiz Inácio Lula da Silva) को अपना नया राष्ट्रपति चुना है, जो तीसरी बार इस पद पर बैठेंगे. लूला 1 जनवरी 2023 से ब्राजील की सत्ता संभालेंगे. आइए यहां समझने की कोशिश करते हैं कि Lula da Silva की यह जीत क्यों खास है? 'साउथ अमेरिका के ट्रंप' कहे जाने वाले बोल्सोनारो का केवल 4 साल का कार्यकाल इतना विवादस्पद क्यों था और वो अपने पीछे कैसा ब्राजील छोड़ गए हैं जिसे ट्रैक पर लाना नए राष्ट्रपति के लिए चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है?
लूला डा सिल्वा के लिए यह चुनावी जीत एक आश्चर्यजनक राजनीतिक कमबैक की इबारत लिखती है- यह कहानी है राष्ट्रपति पद पर बैठने से जेल जाने और वापस राष्ट्रपति की कुर्सी पर आने की- जो एक बार अकल्पनीय लग रहा था. यह पहली बार है जब ब्राजील के आधुनिक लोकतंत्र के पिछले 34 सालों के इतिहास में कोई मौजूदा राष्ट्रपति फिर से चुनाव जीतने में विफल रहा है.
लूला डा सिल्वा ने अपनी जीत के बाद दिए भाषण में कहा कि "मैं 21.5 करोड़ ब्राजीलियाई लोगों के लिए शासन करूंगा, न कि केवल उनके लिए जिन्होंने मुझे वोट दिया है." 77 साल के लूला डा सिल्वा ने केवल पांचवीं ग्रेड तक की पढ़ाई की है और मेटल वर्कर का काम करते थे. 21वीं सदी के पहले दशक के दौरान लूला डा सिल्वा ने ब्राजील का नेतृत्व किया लेकिन जब उनकी अप्रूवल रेटिंग 80 प्रतिशत के पास पहुंची तो वे ऑफिस छोड़ कर चले गए.
उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी ठहराया गया था और उन्होंने 580 दिन जेल में बिताए थे.
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने उन फैसलों को खारिज कर दिया और कहा कि लूला के खिलाफ फैसला सुनाते हुए जज पक्षपाती थे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी लूला को आरोपों से क्लीन चीट नहीं दी, फिर भी, उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में उतरने की अनुमति दी गई और वोटरों ने उन्हें अपना समर्थन देते हुए राष्ट्रपति की कुर्सी तक एकबार फिर पहुंचा दिया.
खास बात है कि लूला डा सिल्वा की जीत ने ब्राजील का नाम भी उन लैटिन अमेरिकी देशों की सूची में शामिल कर दिया ही जहां वामपंथी सरकार बनी है. लैटिन अमेरिका के सात सबसे बड़े देशों में से छह ने 2018 के बाद वामपंथी नेताओं को अपना लीडर चुना है.
लूला डा सिल्वा की जीत ने ब्राजील के सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में बोल्सोनारो के अशांत कार्यकाल को समाप्त किया है. बोल्सोनारो अपने कार्यकाल के दौरान अपनी नीतियों के लिए वैश्विक स्तर पर आलोचनाओं के पात्र बने. उनपर आरोप लगा कि उन्होंने स्थानीय आदिवासियों के हितों की परवाह किए बिना अमेजॉन के वर्षावन का विनाश उस तेजी से किया जैसा आधुनिक इतिहास में नहीं हुआ. उनके कार्यकाल में, ब्राजील के दुनिया के सबसे बड़े इस वर्षावन के विनाश में पिछले दशक की तुलना में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
उनकी सरकार पर कोरोना महामारी को नियंत्रित न कर पाने और उसकी भयावहता को नजर अंदाज करने का भी आरोप लगा. बोल्सोनारो वैक्सीन की खिलाफत करते रहे और उन्होंने अपने देश में वैक्सीन की अनुमति देने से इनकार कर दिया. कोरोना के कारण ब्राजील में लगभग 7 लाख लोग मारे गए हैं.
इसके अलावा 1996 में स्थापित ब्राजील के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की वैधता पर भी बोल्सोनारो ने लगातार हमला किया है. यह कुछ हद तक वैसा ही था जैसा डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में किया था. हालांकि, 22 अक्टूबर को, दूसरे दौर की वोटिंग से कुछ दिन पहले, बोल्सोनारो ने कहा कि अगर वोटिंग के दौरान "कुछ भी असामान्य नहीं" होता है तो वह हार स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.
नए राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा के सामने चुनौतियां बहुत बड़ी हैं. ब्राजील राजनीतिक और सामाजिक रूप से बुरी तरह विभाजित है. लगभग आधे देश ने लूला डा सिल्वा को वोट नहीं दिया और उनके राष्ट्रपति बनने के बावजूद, बोल्सोनारो के कई समर्थक देश भर के बड़े नगरपालिका पदों पर बैठे हैं और संसद को नियंत्रित करते हैं. इससे लूला सरकार के लिए पुरानी सरकार की नीतियों और रणनीतियों में बड़े बदलाव को आसानी से हासिल करना मुश्किल हो जाएगा.
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार 3.3 करोड़ ब्राजीलियाई लोगों भुखमरी का सामना कर रहे हैं और 10 करोड़ लोग गरीबी में जी रहे हैं, जो वर्षों में सबसे अधिक संख्या है. 2000 के दशक के शुरुआत में किए अपने वादों और नीतियों को ही दोहराते हुए लूला डा सिल्वा एक बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण की कसम खाई है, गरीबी को समाप्त करने, शिक्षा बढ़ाने, स्वास्थ्य ढांचे और आवास व्यवस्था में सुधार करने का वादा किया है. लेकिन इसके लिए कैसे भुगतान किया जाएगा यह नहीं बताया-समझाया है.
दुनिया की कई सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तरह, ब्राजील पहले से ही मौजूदा वैश्विक आर्थिक संकट से जूझ रहा है
साथ ही बोल्सोनारो की नीतियों, विशेष रूप से अमेजॉन के वर्षावन में, ने ब्राजील को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया है. बोल्सोनारो के सत्ता में आने के बाद से हर साल वनों की कटाई में वृद्धि हुई है. बोल्सोनारो की 'किसी कीमत पर विकास' की नीतियों को लूला ने रोकने का वादा किया है. उन्होंने "शून्य वनों की कटाई का लक्ष्य" का वादा किया है.
उन्होंने कहा है कि "वनों की कटाई में वर्ल्ड लीडर होने के बजाय, हम जलवायु संकट का सामना करने और सामाजिक-पर्यावरणीय विकास में वर्ल्ड चैंपियन बनना चाहते हैं."
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