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ताइवान (Taiwan) पर चीन (China) और अमेरिका के बीच तकरार बढ़ रही है. अमेरिका पिछले कुछ सालों में ताइवान का अनौपचारिक संरक्षक बन गया है. 'एक चीन' नीति की वजह से अमेरिकी प्रशासन के लिए ताइवान का खुलकर समर्थन करना मुश्किल है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से करीबी साफ देखी जा सकती है. चीन के लिए ताइवान तिब्बत मुद्दे की तरह ही नाजुक और संवेदनशील है और उसकी किसी भी देश से नजदीकी चीनी सरकार से बर्दाश्त नहीं होती है.
भारत या अमेरिका जैसे बड़े देश ताइवान को अलग देश की मान्यता नहीं देते हैं. और जो देश ऐसा करते हैं, उनका चीन से रिश्ता नहीं है. तो अगर कोई भी देश ताइवान को लेकर कोई बड़ा कदम उठाता है या बयानबाजी करता है, तो चीन उसे संदेह की नजरों से देखता है.
अमेरिकी विश्लेषकों के बीच चिंता है कि चीन जल्द ही ताइवान पर हमला करके उसे अपने क्षेत्र में मिलाने की कोशिश कर सकता है. मार्च 2021 में पैसिफिक में तत्कालीन अमेरिकी बलों के कमांडर एडमिरल फिलिप डेविडसन ने कहा था कि 'चीन अगले छह सालों में ताइवान पर हमला कर सकता है.'
ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन और उनकी पार्टी अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान लगातार चीन के आक्रामक होते रवैये पर खींचती रहती हैं. हालांकि, एक पोल के मुताबिक ताइवान के सिर्फ 39.6 फीसदी लोगों का मानना है कि चीन और ताइवान सैन्य विवाद की तरफ बढ़ रहे हैं.
अफगानिस्तान से अमेरिका की अराजक वापसी को लेकर चीनी मीडिया ने ताइवान को संकेत दिया था कि 'अमेरिका पर विश्वास नहीं किया जा सकता है.' ABC न्यूज के साथ हाल ही में एक इंटरव्यू में जब बाइडेन से इस पर राय मांगी गई तो उन्होंने कहा, "हम आर्टिकल 5 के तहत जापान, साउथ कोरिया और ताइवान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं."
अमेरिका एक कानून के तहत ताइवान को अपनी रक्षा करने के साधन देने के लिए बाध्य है. लेकिन चीन के हमले की सूरत में अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करेगा या नहीं, इस पर कोई साफ नीति या नजरिया नहीं है.
ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफेक्चरिंग कंपनी (TSMC) दुनिया की सबसे बड़ी कॉन्ट्रैक्ट चिप मेकर है और एपल जैसी बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों की सप्लायर भी है. ये कंपनी दुनिया को सबसे छोटी और आधुनिक चिप्स का कुल 90 फीसदी हिस्सा सप्लाई करती है.
अमेरिका की ताइवान पर इन सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए निर्भरता उसकी मुखरता की प्रेरणा हो सकती है. ताइवान ने अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ खास कदम नहीं उठाए हैं और अधिकतर एक्सपर्ट्स अमेरिका से इस फील्ड में ताइवान की मदद करने की अपील करते हैं. बाइडेन पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति थे जिन्होंने अपने शपथ ग्रहण में ताइवानी प्रतिनिधि को आमंत्रित किया था. अमेरिकी अर्थव्यवस्था के हित के लिए चीन से सीधे टक्कर लेने की बजाय ताइवान को मजबूत करना ज्यादा अच्छा विकल्प नजर आता है.
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