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जर्मनी, न्यूजीलैंड...इन देशों ने कैसे किया कोरोना को कंट्रोल?

दुनिया के ज्यादातर हिस्से इस वक्त नोवेल कोरोना वायरस के कहर से जूझ रहे हैं.

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दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में बरपा कोरोना वायरस का कहर
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दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में बरपा कोरोना वायरस का कहर
(फोटो: AP) 

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दुनिया के ज्यादातर हिस्से इस वक्त नोवेल कोरोना वायरस के कहर से जूझ रहे हैं. इस वायरस की वजह से दुनियाभर में अब तक 96,700 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, जबकि इसके 1,614,400 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं.

पिछले साल (2019) दिसंबर में सबसे पहले चीन के वुहान में नोवेल कोरानावायरस का पहला मामला सामने आया था.हालांकि मौत के आंकड़े देखें तो इस वायरस ने सबसे ज्यादा कहर इटली में ढाया है. वहीं कुल कन्फर्म केसों की बात करें तो अमेरिका इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है.

इस वायरस से होने वाली बीमारी यानी COVID-19 का कहर जब चीन से निकलकर बाकी देशों में पहुंचा तो कुछ देशों ने उससे निपटने के लिए ऐसे कदम उठाए जो दुनियाभर के लिए सीख हो सकते हैं. इन कदमों के बारे में बात करने से पहले आइए एक बार कुछ देशों के आंकड़े देख लेते हैं.

COVID-19: कहां सबसे ज्यादा कहर

  • अमेरिका: 468,895 कुल मामले, 16,697 मौत
  • स्पेन: 157,022 कुल मामले, 15,843 मौत
  • इटली: 143,626 कुल मामले, 18,279 मौत
  • फ्रांस: 117,749 कुल मामले, 12,210 मौत
  • चीन: 81,907 कुल मामले, 3,336 मौत
  • ईरान: 66,220 कुल मामले, 4,110 मौत
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COVID-19: जिनके कदम दुनिया के लिए मिसाल

  • दक्षिण कोरिया: 10,450 कुल मामले, 208 मौत
  • जर्मनी: 118,235 कुल मामले , 2,607 मौत
  • ताइवान: 382 कुल मामले , 6 मौत
  • हॉन्ग कॉन्ग: 974 कुल मामले , 4 मौत
  • सिंगापुर: 1,910 कुल मामले , 6 मौत
  • न्यूजीलैंड: 1,283 कुल मामले , 2 मौत

(आंकड़े: Worldometer, 10 अप्रैल, दोपहर करीब 3:30 तक)

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका के साथ-साथ इटली और फ्रांस जैसी मजबूत अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में COVID-19 के आंकड़े देखकर सवाल उठता है कि ये देश कहां चूक गए? क्या इन देशों ने वो उपाय नहीं अपनाए जो दक्षिण कोरिया, ताइवान, न्यूजीलैंड और सिंगापुर आदि ने अपनाए.

बीबीसी के एक आर्टिकल में हेलियर शेयूंग ने लिखा है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए उपायों को लेकर एकमत हैं - बड़े पैमाने पर टेस्ट करो, संक्रमित लोगों को आइसोलेट करो और सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ावा दो.

दरअसल अमेरिका और इटली भी ये उपाय अपना रहे हैं, मगर लगता है कि उन्होंने ना सिर्फ इन उपायों को अपनाने में देरी की, बल्कि इनके तरीकों को लेकर भी कहीं ना कहीं चूक की है.

WHO में रिसर्च पॉलिसी के पूर्व निदेशक तिक्की पंगेस्तू के मुताबिक, “अमेरिका और ब्रिटेन ने मौका गंवाया. उनके पास चीन के बाद दो महीने थे मगर उन्हें लगा कि चीन बहुत दूर है और उन्हें कुछ नहीं होगा.”

इस बात को समझने के लिए उन देशों के उदाहरण देखते हैं, जिनको COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में काफी प्रभावी माना जा रहा है.

COVID-19 से तेजी से निपटने को लेकर इस वक्त दक्षिण कोरिया हर जगह चर्चा में है, जहां की रैपिड टेस्टिंग के उदाहरण दुनियाभर में दिए जा रहे हैं. दक्षिण कोरिया में लोगों को ड्राइव करते वक्त भी टेस्टिंग कराने जैसी सुविधा दी गई. इतना ही नहीं, इस तरीके से जिन लोगों ने टेस्ट कराया, उन्हें रिजल्ट पॉजिटिव आने पर फोन करके उस बारे में बताया गया, जबकि नेगेटिव आने पर मेसेज से जानकारी दी गई. मगर हम दक्षिण कोरिया के अलावा बाकी देशों की भी बात कर रहे हैं.

जर्मनी

यूरोप की बात करें तो यहां जर्मनी COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में काफी प्रभावी नजर आता है. दरअसल ऊपर दिए गए आंकड़ों से साफ है कि जर्मनी और इटली में COVID-19 के कुल कन्फर्म केस की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है. मगर इन दोनों देशों में नोवेल कोरोना वायरस के चलते हुईं मौतों के आंकड़ों में काफी अंतर है.

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक, जर्मनी की राजधानी बर्लिन स्थित एक हॉस्पिटल ने बीच जनवरी में टेस्टिंग किट विकसित करके फॉर्मूले को ऑनलाइन पोस्ट कर दिया था. जबकि जर्मनी में COVID-19 का पहला कन्फर्म केस फरवरी में सामने आया था, तब तक देश की लैब्स टेस्ट किट्स के स्टॉक के साथ तैयार हो चुकी थीं.

सिंगापुर, ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग

पश्चिमी देशों के मुकाबले सिंगापुर, हॉन्ग कॉन्ग और ताइवान में कई हफ्ते पहले ही कोरोना वायरस फैल गया था. मगर जिस चीन से यह वायरस फैला, उसके पास होने के बावजूद इन एशियाई हिस्सों में इस वायरस का कहर काफी कम है. इसकी वजह ये है कि इन्होंने सही वक्त पर अपने-अपने तरीकों से COVID-19 से लड़ने के प्रमुख उपायों को अपनाया.

बीबीसी के मुताबिक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को चीन ने 31 दिसंबर, 2020 को ही ‘सार्स जैसे रहस्यमय निमोनिया’ के मामलों की जानकारी दी थी. उस वक्त तक इंसानों से एक-दूसरे में इसके फैलने की पुष्टि नहीं हुई थी. इस वायरस को लेकर ज्यादा जानकारी भी नहीं थी मगर 3 दिनों के अंदर सिंगापुर, ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग ने अपनी सीमाओं पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी.

ताइवान ने वुहान से आने वाले विमानों के यात्रियों को नीचे उतारने से पहले उनकी जांच भी की. बाद में जब वैज्ञानिकों को इस वायरस के बारे में और पता चला, तब सामने आया कि जिन संक्रमित लोगों के अंदर लक्षण नहीं पाए गए हैं, वे भी दूसरों में संक्रमण फैला सकते हैं.

सिंगापुर ने इस बात पर खासा जोर दिया कि जिन लोगों में लक्षण हैं, उनकी पहचान करना ही काफी नहीं है, वे लोग किस-किस के संपर्क में आ चुके हैं, इसका पता लगाना भी काफी अहम है. सिंगापुर में जासूसों ने बहुत से ऐसे लोगों को सीसीटीवी फुटेज वगैरह के जरिए ट्रेस किया जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में हो सकते थे.

जिन लोगों को सेल्फ आइसोलेशन के लिए कहा गया, वे ऐसा कर रहे हैं या नहीं, यह जांचने के लिए कई तरीके अपनाए गए. इसी कड़ी में हॉन्ग कॉन्ग में विदेश से आने वाले लोगों को एक इलेक्ट्रिक ब्रेसलेट पहनने के लिए दिया जाने लगा, जिससे उनके मूवमेंट को ट्रैक किया जा सके.

न्यूजीलैंड

न्यूजीलैंड में अब तक नोवेल कोरोना वायरस के 1,283 मामले सामने आए हैं, जबकि वहां इस वायरस से 2 लोगों की मौत हुई है. 28 फरवरी को देश में COVID-19 का पहला केस रिपोर्ट हुआ था. इसके बाद 14 मार्च को पीएम जेसिंडा आर्डेन ने ऐलान कर दिया था कि देश में आने हर शख्स को 2 हफ्ते सेल्फ-आइसोलेशन में बिताने होंगे. जानकारों का कहना है कि उस समय देश में सिर्फ 6 मामले थे, लेकिन सीमा पर लगाई गई पाबंदियां काफी ज्यादा सख्त थीं.

इसके बाद 19 मार्च को पीएम आर्डेन ने देश में विदेशियों की एंट्री बैन कर दी थी. तब न्यूजीलैंड में COVID-19 के 28 मामले थे. देश में 23 मार्च को लॉकडाउन का ऐलान हुआ था और उस समय 102 केस थे.

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Published: 10 Apr 2020,04:14 PM IST

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