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21 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका बाकी देशों के मुकाबले कोरोना वायरस टेस्टिंग में आगे हैं. ट्रंप के इस दावे को वो आंकड़े खारिज करते हैं जो सार्वजनिक तौर पर मौजूद हैं. अमेरिका में टेस्टिंग और कोरोना वायरस के आंकड़े बताते-बताते ट्रंप ने ये भी दावा किया कि भारत टेस्टिंग के मामले में दूसरे नंबर पर है.
ट्रंप का ये दावा भी आंकड़ों के आईने से फिट नहीं बैठता, ऐसे में आइए जानते हैं कि टेस्टिंग के लिहाज से अमेरिका और भारत कहां ठहरते हैं.
इंटरनेशनल डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट Statista के मुताबिक, दुनियाभर में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस टेस्ट चीन ने किए हैं, चीन में कुल 90.4 मिलियन टेस्ट हुए हैं. इसके बाद अमेरिका का नंबर आता है जहां 20 जुलाई तक 48 मिलियन टेस्ट हुए हैं. रूस तीसरे स्थान पर है जहां 25 मिलियन टेस्ट किए जा चुके हैं. वहीं भारत में 14 मिलियन टेस्ट हुए हैं.
21 जुलाई को यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने बताया कि देश में किए गए कुल टेस्टिंग का आंकड़ा 50 मिलियन पार कर चुका है. अमेरिका टेस्टिंग के मामले में दूसरे नंबर पर तो है लेकिन ट्रंप का दावा तब भी सही तस्वीर पेश नहीं करता है क्योंकि कोरोना वायरस महामारी जैसे संकट में कुल कंफर्म केस, आबादी जैसे फैक्टर भी देखे जाते हैं.
दुनियाभर के देश कोरोनावायरस को लेकर कैसी रणनीति अपना रहे हैं, टेस्टिंग की रेट क्या है, जब तकरीबन सभी देशों का डेटा एक साथ मौजूद होता है तो ऐसे परफॉरमेंस की तुलना की जा सकती है. कोरोना वायरस टेस्टिंग को लेकर ऐसा ही एनालिसिस Our World In Data (OWID)वेबसाइट पर मौजूद है.
OWID के मुताबिक, प्रति 1000 की आबादी पर टेस्टिंग के मामले में अमेरिका, यूएई, डेनमार्क और रूस जैसे देशों से पीछे है.
20 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, यूएई ने हर 1000 की आबादी पर 458.64 टेस्ट किए हैं. इसके बाद डेनमार्क ने 226.12 टेस्ट किए हैं. वहीं अमेरिका में 1 हजार की आबादी पर कुल 138.17 टेस्ट हुए हैं. भारत में तो महज 9.99 टेस्ट. ऐसे में भारत इन देशों के मुकाबले प्रति हजार की आबादी में टेस्टिंग के मामले में काफी पीछे है.
अगर हर रोज होने वाले टेस्ट की भी बात करें तो यूएई सबसे आगे है जहां हर प्रति हजार लोगों की आबादी पर हर रोज होने वाले टेस्ट की संख्या 4.63 है. अमेरिका में ये संख्या 2.35 है. वहीं भारत में ये संख्या 0.23 है. जो रूस, ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका जैसे देशों से काफी पीछे है.
कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में सिर्फ 'टेस्टिंग' को ही इसपर लगाम कसने या कहें तो इस महामारी को कंट्रोल करने में 'बढ़त' नहीं कहा जा सकता. मतलब कि अगर किसी देश में टेस्टिंग बड़े पैमाने पर हो रही है तो इसका सीधा मतलब ये नहीं है कि वो देश कोरोना वायरस पर लगाम कसने में बाकी देशों से आगे है. कई सारे दूसरे पैरामीटर भी हैं, जिसके हिसाब से ये तय किया जा सकता है.
अलग-अलग आबादी वाले और टेस्टिंग को लेकर अलग-अलग रणनीति बनाने वाले देशों जैसे- न्यूजीलैंड, वियतनाम, ताइवान और साउथ कोरिया की सफलता की कहानी ने इस बात को साबित किया है कि टेस्टिंग की संख्या किसी भी देश के क्राइसिस मैनेजमेंट का सही आकलन नहीं है.
कुल मिलाकर ऊपर दिए गए आंकड़ों के मुताबि,क ये बात सच से काफी ज्यादा दूर है कि अमेरिका और उसके बाद भारत में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस टेस्टिंग की गई है. हालांकि, ये सच है कि अमेरिका ने टेस्टिंग रेट को बढ़ाया है. लेकिन इसके बावजूद भी ऐसा कहना कि कोरोना की रोकथाम में अमेरिका सबसे आगे है, ये दावा आंकड़ों के लिहाज से तो सही नहीं दिखता.
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