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Emmanuel Macron को अभी फ्रांस की संसद में पाना होगा बहुमत,जानें आगे क्या चैंलेज?

France Presidential Elections 2022: Emmanuel Macron के मध्यममार्ग को फ्रांस के अंदर कैसे मिल रही दक्षिणपंथ की चुनौती

आशुतोष कुमार सिंह
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Emmanuel Macron को अभी France की संसद में पाना होगा बहुमत,जानें आगे क्या चैंलेज?</p></div>
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Emmanuel Macron को अभी France की संसद में पाना होगा बहुमत,जानें आगे क्या चैंलेज?

(फोटो - Altered By Quint)

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फ्रांस का राष्ट्रपति चुनाव (France Presidential Elections 2022) जीतकर इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) फिर से अगले पांच साल के लिए राष्ट्रपति बन गए हैं. अंतिम परिणामों के मुताबिक इमैनुएल मैक्रों को जहां 58.5% वोट मिले वहीं उनकी प्रतिद्वंदी और दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन के हिस्से 41.5% वोट आए. फ्रांस से आई इस खबर ने एक तरफ अमेरिका सहित यूरोपीय यूनियन के सहयोगी देशों को राहत दी है. लेकिन दूसरी तरफ मरीन ले पेन को मिले वोटों के आंकड़े मैक्रों के सामने मौजूद चुनौतियां गिना रहे हैं.

मैक्रों के मध्यममार्ग को फ्रांस में दक्षिणपंथ की चुनौती

इमैनुएल मैक्रों की पहचान मध्यमार्गी (सेंट्रिस्ट) और यूरोपीय यूनियन समर्थक राष्ट्रपति के रूप में है. इमैनुएल मैक्रों राष्ट्रपति चुनाव जीत तो गए हैं लेकिन चुनाव में कट्टर दक्षिणपंथी मरीन ले पेन के प्रदर्शन (40% से भी अधिक वोट) ने एक गहरे विभाजित फ्रांस का खुलासा किया है. यह दिखाता है कि फ्रांस में अल्ट्रा राइट विंग अब राजनीति की मुख्यधारा का हिस्सा बन चुका है और समाज में उसे बड़े स्तर पर मान्यता भी प्राप्त है.

53 वर्षीय Marine Le Pen तीसरी बार राष्ट्रपति पद की रेस में थी और उन्हें कभी भी इतने अधिक वोट नहीं मिले थे. एक्सपर्ट्स का मानना है है कि Marine Le Pen की यूरोपीय यूनियन-विरोधी राजनीति अब फ्रांस के राजनीतिक परिदृश्य में पहले से कहीं अधिक गहरी हो गई है.

फ्रांस में महंगाई के मुद्दों पर आवाज उठाकर, वर्किंग क्लास हितैषी इमेज बनाकर, अपनी पार्टी का नाम बदलकर और अपने पिता Jean-Marie से दूरी बनाकर, Marine Le Pen ने अपना समर्थक बेस बढ़ाया और फ्रांस के उन वोटरों की बढ़ती संख्या को अपने करीब किया है, जो पेरिस में बैठे मौजूदा प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उपेक्षित महसूस करते हैं.

यही कारण है कि इमैनुएल मैक्रों की जीत के बाद पेरिस और ल्यों की सड़कों पर ऐसे नौजवानों की भीड़ उतरी जो नतीजों से निराश थी और पुलिस पर हमला करने को तैयार भी थी.

मैक्रों को फ्रांस की संसद में चाहिए बहुमत

फ्रांस में चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले राष्ट्रपति को नई बहुमत वाली सरकार चाहिए. जून में संसदीय चुनावों में फ्रांस की जनता फिर से वोट डालेगी.

यूरोन्यूज की रिपोर्ट के अनुसार INSEAD बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर डगलस वेबर का कहना है कि "संसद में बहुमत पाने के लिए इमैनुएल मैक्रों को शायद कुछ अन्य राजनीतिक दलों से समर्थन की आवश्यकता होगी. मैक्रों को मुख्यधारा के दक्षिणपंथी और अधिक उदारवादी वामपंथी सांसदों का साथ भी मिल सकता है.”

यूरोपीय यूनियन में महत्वाकांक्षी सुधार

2017 में अपने चुनावी जीत के बाद से ही इमैनुएल मैक्रों के लिए गहरे स्तर तक यूरोपीय देशों के एकीकरण का सवाल महत्वपूर्ण रहा है. तब उनकी जीत की रैली में यूरोपीय यूनियन का एंथम- Beethoven’s Ode to Joy गूंजता था.

हालांकि इस बार चुनावी कैंपेन के दौरान उन्होंने यूरोपीय एकीकरण के राग तो थोड़ा कम गाया. इमैनुएल मैक्रों ने अपने लक्ष्य को "राष्ट्रीय और यूरोपीय संप्रभुता" के रूप में सामने रखा है.

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मैक्रों यह भी चाहते हैं कि यूरोपीय देश एक मजबूत रक्षा क्षमता (डिफेंस कैपेसिटी) विकसित करें और यूरोपीय टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाएं. लेकिन मुश्किल है कि कोरोना महामारी के बाद अभी भी अधिकतर यूरोपीय देश आर्थिक फ्रंट पर गंभीर चुनातियों का सामना कर रहे हैं. रूस-यूक्रेन हमले के बाद नेचुरल गैस,फ्यूल, खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे हैं. ऐसी स्थिति में इमैनुएल मैक्रों के लिए यह मुश्किल काम होगा कि वह दूसरे देशों को डिफेंस पर खर्चा बढ़ाने के लिए तैयार कर पाए.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच संतुलन की खोज

इमैनुएल मैक्रों ने यूक्रेन पर हमले के बाद रूस के खिलाफ यूरोपीय यूनियन के प्रतिबंधों का समर्थन किया है. उनकी सरकार ने कहा कि वह रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करेगी. मैक्रों ने Bucha में रूसी अत्याचारों को "युद्ध अपराध" की संज्ञा भी दी.

लेकिन साथ ही उन्होंने हमेशा मॉस्को के साथ बातचीत की वकालत की है. 2017 में इमैनुएल मैक्रों की चुनावी जीत के तीन हफ्ते बाद ही व्लादिमीर पुतिन बहुत धूमधाम वाले समारोह के बीच वर्साय आए थे. G7 शिखर सम्मेलन से पहले मैक्रों निवास का भी दौरा किया था. हालांकि इस तरह की बैठकें रूस के साथ तनाव कम करने में विफल रहीं.

युद्ध शुरू होने से पहले जब रूस की सेना यूक्रेन के सीमाओं पर जमा हुई थी और लग रहा था कि युद्ध कभी भी शुरू हो जायेगा- मैक्रों ने पुतिन को कई फोन कॉल किये थे. लेकिन पुतिन पर कोई असर नहीं हुआ.

दूसरी तरफ युद्ध शुरू होने के बाद मैक्रों का स्टैंड रहा है कि फ्रांस और यूरोप को यूक्रेन में सीधे सैन्य हस्तक्षेप से बचना चाहिए. उनका तर्क है कि इसे संघर्ष को बढ़ाने या "नया विश्व युद्ध" शुरू करने के रूप में देखा जाएगा.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध लम्बा खींचता है तो मैक्रों के लिए रूस के खुले विरोध और बातचीत के लिए रास्ता खुला रखने के बीच संतुलन बनाये रखना मुश्किल हो सकता है.

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