advertisement
जर्मन (Germany) चांसलर के रूप में एंजेला मर्केल (Angela Merkel) के 16 साल के कार्यकाल के बाद हुए आम चुनाव (German election) में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है. सामने आए आधिकारिक रिजल्ट के अनुसार सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी अब तक मर्केल के नेतृत्व वाली सेंटर-राइट कंजर्वेटिव गठबंधन से आगे निकल गई है.
299 सीटों वाले इस आम चुनाव में हर सीट के नतीजे घोषित कर दिए गए हैं. इसमें SPD को 206 (पिछले चुनाव से 53 ज्यादा) , CDU/CSU को 196 ( पिछले चुनाव से 50 सीट कम), ग्रीन पार्टी को 118 (पिछले चुनाव से 51 ज्यादा ) जबकि FDP को 92, AfD को 83 और लिंक पार्टी को 39 सीटों पर जीत मिली है.
जबकि सेंटर-राइट CDU-CSU गठबंधन ने 24.1% हासिल किया है. सात दशक के इतिहास में CDU-CSU का यह सबसे खराब प्रदर्शन है. 14.8% वोट के साथ ग्रीन पार्टी ने जर्मनी के आम चुनाव में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. मौजूदा राजनीतिक समीकरण देखते हुए आगे होने वाले गठबंधन वार्ता में यह पार्टी किंगमेकर बन सकती है.
यानी कोई भी पार्टी सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत के जादुई आंकड़े (368 ) के आसपास भी नहीं है. याद रहे कि जर्मनी के चांसलर को सीधे नहीं चुना जाता है बल्कि सरकार बनने के बाद संसद के निचले सदन-बुंडेस्टैग- में वोटिंग के माध्यम से चुना जाता है.
वर्षों के बाद जर्मनी में दो पार्टी गठबंधन की जगह बहुमत हासिल करने के लिए इस बार शायद तीन पार्टियों की आवश्यकता होगी. सरकार बनाने के लिए जर्मनी की क्षेत्रीय सरकारों में तो तीन पार्टियों का गठबंधन आम है लेकिन 1950 के दशक के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा नहीं देखा गया है.
लेकिन जर्मनी में, सभी पार्टियां पहले गठबंधन के लिए आपस में बातचीत करती हैं. प्रारंभिक चरण में पार्टियां एक साथ कई पार्टियों से गठबंधन की चर्चा कर सकती हैं और इसके लिए कोई समय सीमा भी निश्चित नहीं है. हालांकि परंपरा यह है कि सबसे बड़ी पार्टी छोटे दलों को गठबंधन पर चर्चा के लिए आमंत्रित करेगी.
इन वार्ताओं के अंत में पार्टियां तय करती हैं कि किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा और फिर गठबंधन कॉन्ट्रैक्ट पर साइन किया जाता है, जिसमे समझौते की सारी शर्तें लिखी होती हैं.
इसके बाद पार्टियां नॉमिनेट करती हैं कि वे बुंडेस्टैग में आधिकारिक वोटिंग से पहले किसे चांसलर बनना चाहती हैं.
सेंटर-राइट CDU-CSU ब्लॉक के चांसलर उम्मीदवार आर्मिन लास्केट ने 26 सितंबर को कहा कि वे अगली सरकार का नेतृत्व करने के लिए “सब कुछ करेंगे". जबकि उनके SPD प्रतिद्वंद्वी और देश के वित्त मंत्री ओलाफ स्कोल्ज ने कहा कि वोटर एक बदलाव चाहते हैं और "अगले चांसलर को ओलाफ स्कोल्ज कहा जाएगा"
यदि कोई गठबंधन सामने नहीं आता है तो राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर एक संभावित चांसलर को नामित करेंगे- जिस भी पार्टी ने वोट का सबसे बड़ा हिस्सा जीता हो, उसके लीडर को.
संसद में फिर गुप्त मतदान होगा जिसमें चांसलर बनने के लिए उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत की आवश्यकता होगी. यदि बहुमत हासिल नहीं होता है तो दो सप्ताह बाद दूसरा मतदान होगा. यदि अभी भी पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो तत्काल तीसरी वोटिंग होती है जिसमें सापेक्ष बहुमत पर्याप्त होता है.
राष्ट्रपति तब फैसला करता है कि चांसलर को अल्पसंख्यक सरकार के प्रमुख के रूप में नियुक्त करना है या संसद को भंग करके फिर से नए चुनाव कराने हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)