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German election: एंजेला मर्केल के बाद अगला चांसलर कौन, भारत के लिए क्या दांव पर?

German election: 16 साल सत्ता में रहने के बाद Angela Merkel चांसलर के पद से रिटायर होने के लिए तैयार

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German election: Angela Merkel के बाद चांसलर कौन

(फोट- अलटर्ड बाई क्विंट)

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16 साल सत्ता में रहने के बाद 26 सितंबर को जर्मनी (Germany) में होने जा रहे आम चुनाव के बाद एंजेला मर्केल (Angela Merkel) चांसलर के पद से रिटायर होने के लिए तैयार हैं. जर्मनी के इस चुनाव का परिणाम यूरोप की इस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक हो सकता है, क्योंकि जर्मनी और यूरोपीय संघ की स्थिरता पर इसका प्रभाव निश्चित है.

चुनाव कैंपेन की शुरुआत में कंजरवेटिव पार्टी के लीडर के रूप में एंजेला मर्केल के उत्तराधिकारी - आर्मिन लास्केट - अगले चांसलर बनते दिख रहे थे. लेकिन उसके बाद लास्केट के नेतृत्व को कई मोर्चों पर चुनौती मिली है. सबसे पहले ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार के रूप में एनालेना बेरबॉक का सामने आना और हाल ही में, सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख और वर्तमान वित्त मंत्री ओलाफ स्कोल्ज की उम्मीदवारी ने चुनाव परिणाम को अनिश्चित कर दिया है.

कौन सी पार्टियां हैं मैदान में ?

जर्मनी में 299 चुनावी जिले हैं. बैलेट पेपर पर 47 पार्टियाों के चुनाव चिन्ह सूचीबद्ध होंगे. प्रत्येक वोटर एक बैलेट पेपर पर दो वोट डालेगा- एक अपने निर्वाचन क्षेत्र में खड़े उम्मीदवार के लिए और एक अपने संघीय राज्य में उम्मीदवारों के पार्टी लिस्ट के लिए.

कम-से-कम 5% वोट की लिमिट उन पार्टियों की संख्या को सीमित करती है जो वोटिंग के बाद अपने एक प्रतिनिधि को बुंडेस्टैग (जर्मनी की संसद) में भेज सकती हैं. जर्मनी के पॉलिटिकल पंडितों का मानना है कि 6 पार्टियां इस लिमिट को पार कर सकती हैं-
  • क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU)

  • सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD)

  • ग्रीन पार्टी

  • फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (FDP)

  • Alternative für Deutschland (AfD)

  • डाई लिंके

एंजेला मर्केल इस बार चुनाव में खड़ी नहीं हो रही हैं. जर्मन इतिहास में पहली बार मर्केल ‘वोर्पोमर्न-रुगेन-वोर्पोमर्न-ग्रीफ़्सवाल्ड’ संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार नहीं होंगी, जहां से उन्होंने 1990 में पूर्वी जर्मनी के जुड़ने के बाद से लगातार प्रतिनिधित्व किया है.

चुनाव में क्या हैं बड़े मुद्दे?

एंजेला मर्केल की सरकार ने 2045 तक जर्मनी को ग्रीनहाउस गैस न्यूट्रल बनाने के लिए प्रतिबद्ध किया है. चुनाव में जनता का एक प्रमुख प्रश्न यह है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अपने उद्योगों के कार्बन उत्सर्जन को कैसे कम करेगी.

ग्रीन पार्टी और डाई लिंके ने चुनावी वादा किया है कि वे इस लक्ष्य को 2045 से पहले पूरा करना चाहते हैं. इसके लिए वे आंशिक रूप से 2030 तक कोयले से संचालित इलेक्ट्रिसिटी स्टेशनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करेंगे.

कोरोना महामारी का अर्थव्यवस्था पर असर एक अन्य प्रमुख विषय है. भले ही जर्मनी ने दो लंबे लॉकडाउन के प्रभाव को झेलने के लिए बड़ी मात्रा में कर्ज लिया है लेकिन CDU और FDP ने भविष्य में टैक्स को न बढ़ाने का चुनावी वादा किया है.

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कौन जीत सकता है चुनाव, पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो ?

अब तक के रुझानों से लगता है कि यह चुनाव किसी भी करवट बैठ सकता है. तीन पार्टियों ने सर्वे के विभिन्न चरणों में बढ़त हासिल की है. महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी पार्टी को 25-27% से अधिक वोट मिलने का अनुमान नहीं है. मतलब साफ है कि अगले चांसलर के लिए गठबंधन सरकार बनाना पड़ सकता है.

यदि किसी एक पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं आता है तो दो या दो से अधिक पार्टी एक दूसरे के साथ गठबंधन पर विचार करेंगी. जब तक यह बातचीत जारी रहती है, पुरानी सरकार एक कार्यवाहक भूमिका में सत्ता में बनी रहेगी. संभावित रूप से महीनों तक, क्योंकि जर्मनी में सरकार बनाने की कोई निश्चित समय सीमा नहीं है.

भारत के लिए क्या दांव पर है?

जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों में से एक है. 1700 से अधिक जर्मन कंपनियां भारत में सक्रिय हैं और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 400,000 नौकरियां देती हैं. जर्मनी में सैकड़ों भारतीय व्यवसाय सक्रिय हैं और उन्होंने आईटी, ऑटोमोटिव और फार्मा क्षेत्रों में अरबों यूरो का निवेश किया है.

हालांकि यूरोपीय संघ और भारत के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर अब भी सहमति नहीं बन पायी है. इस साल मई में, यूरोपीय कमीशन और भारतीय सरकार ने FTA पर बातचीत को फिर से शुरू करने की इच्छा जाहिर की थी, जो 2013 से रुकी हुई है.

अर्थव्यवस्था के अलावा जर्मनी भारत के लिए सामरिक रूप से भी अहम पार्टनर है. खासकर जबसे जर्मनी ने पिछले साल एक नई इंडो-पैसिफिक रणनीति पेश की थी.

जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों ने महसूस करना शुरू कर दिया है कि बीजिंग के साथ बिगड़ते संबंधों के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है - और उन्होंने भारत को एक संभावित भागीदार के रूप में देखा है.

यही कारण है कि भारत जर्मनी के आम चुनाव के परिणामों पर पैनी नजर रखेगा. एंजेला मर्केल के बिना भारत संबंधित रणनीति को ठोस कार्रवाई में बदलना जर्मनी की अगली सरकार के लिए एक चुनौती होगी. इसके अलावा भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड के बारे में जर्मनी की चिंताएं मर्केल कार्यकाल के बाद के संबंधों को किस हद तक प्रभावित कर सकती हैं, इसपर भी भारत की नजर होगी.

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