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पिछले साल जब रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ा तो जर्मनी में इसका आर्थिक रूप से प्रभाव सबसे ज्यादा महसूस किया गया. 23 साल की जान्हवी भावसार यह देखकर हैरान रह गईं कि कुछ ही महीनों में दैनिक वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो गई हैं. हालांकि, वह अब राहत की सांस ले रही हैं कि कीमतों में बढ़ोतरी कुछ हद तक सामान्य हो गयी है लेकिन, अभी भी पहले से अधिक है.
भावसार, 2021 में जर्मनी के स्टटगार्ट में उतरने पर € 0.85-0.95 की कीमत वाले खाना पकाने के तेल की एक बोतल को याद करती हैं. उन्होंने कहा कि "सबसे खराब समय में, तो यह € 4.50 तक की बिकी थी. अब कीमतें कम हुई भी हैं तो हमें यह € 2.19 यूरो में मिल रही है".
गुरुवार, 31 मई 2023 को प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के अनुसार यूरोप में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी, 2023 की पहली तिमाही में सिकुड़ने के बाद मंदी की चपेट में आ गयी है.
आंकड़ों से पता चलता है कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था जनवरी और मार्च के बीच 0.3 प्रतिशत गिर गयी है. यह 2022 के आखिरी तीन महीनों में 0.5 प्रतिशत सिकुड़न के बाद आया है.
एक देश मंदी में तब माना जाता है जब उसकी अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाहियों में गिरती है.
आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार भोजन, कपड़े और फर्नीचर पर घरेलू खर्च में तिमाही-दर-तिमाही 1.2% की कमी आई है. इस तिमाही में सरकारी खर्च में भी 4.9% की गिरावट आई है और ऊर्जा संकट का सीधा असर उद्योगों पर भी पड़ा है.
जर्मनी में अन्य यूरोपीय देशों की तरह ही अंतर्राष्ट्रीय छात्र प्रति सप्ताह 20 घंटे एक्स्ट्रा अर्निंग के लिए पार्ट टाइम नौकरी कर सकते हैं.
काम के प्रतिबंधों के साथ रहने की लागत बढ़ने के साथ, छात्रों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. जर्मनी के स्टटगार्ट में पढ़ने वाले छात्र भावसार कहती हैं कि...
हालांकि, छात्र इंटर्नशिप और नौकरियों को सुरक्षित रखने में सक्षम हैं.
भावसार कहती हैं कि "सौभाग्य से हमारे लिए मंदी के कारण, हमें छात्रों की नौकरी और इंटर्नशिप प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं हुई है. यहां अभी भी नौकरियों की मांग है."
कई अन्य छात्रों की तरह, 21 वर्षीय आर्यन पाटिल, युद्ध के बाद म्यूनिख में अपने स्थानीय सुपरमार्केट में टूना की कैन जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतों में €1.50 से €2.90 तक की वृद्धि देखकर चौंक गए. लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी.
इसके अलावा, विश्वविद्यालय में उनकी एक्स्ट्रा-करिकुलम गतिविधियों में भी मंदी के प्रभाव देखे जा सकते हैं.
आर्यन पाटिल आगे कहते हैं कि...
जीवन-यापन की बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए जर्मन सरकार ने अपनी आबादी, विशेषकर छात्रों को वित्तीय राहत प्रदान करने के लिए कदम उठाए हैं.
रहने की लागत में वृद्धि के बाद छात्र जल्द ही € 200 प्रति माह सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं.
जर्मनी के म्यूनिख में काम कर रहे एक भारतीय नागरिक पुरुजीत नाइक ने कहा कि "जर्मन सरकार ने €3000 तक का टैक्स-फ्री बोनस भी घोषित किया है, जो कंपनियां अपने कर्मचारियों को भुगतान कर सकती हैं."
इसके अलावा ईंधन की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के साथ, सरकार ने सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच को आसान बना दिया है.
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