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"हालात और बदतर होंगे": मंदी में डूबा जर्मनी, कैसे जीवन-यापन कर रहे भारतीय छात्र?

Germany in Recession: लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी गिरने के बाद जर्मनी आधिकारिक रूप से मंदी की चपेट में है

तानिया बागवान
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>जर्मनी में आवश्यक वस्तुओं के लिए अधिक खर्च करने पर मजबूर भारतीय छात्र?</p></div>
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जर्मनी में आवश्यक वस्तुओं के लिए अधिक खर्च करने पर मजबूर भारतीय छात्र?

(फोटोः क्विंट हिंदी)

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पिछले साल जब रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ा तो जर्मनी में इसका आर्थिक रूप से प्रभाव सबसे ज्यादा महसूस किया गया. 23 साल की जान्हवी भावसार यह देखकर हैरान रह गईं कि कुछ ही महीनों में दैनिक वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो गई हैं. हालांकि, वह अब राहत की सांस ले रही हैं कि कीमतों में बढ़ोतरी कुछ हद तक सामान्य हो गयी है लेकिन, अभी भी पहले से अधिक है.

“जब युद्ध शुरू ही हुआ था, तब दूध, खाना पकाने के तेल और सब्जियों की कीमतें बहुत अधिक हो गई थीं. यह अब सामान्य हो गया है, लेकिन हम अभी भी बिजली और पानी के बिलों में भारी बढ़ोतरी देख रहे हैं. इसने किराए को पहले से कहीं अधिक महंगा बना दिया है."
जान्हवी भावसार, 23

भावसार, 2021 में जर्मनी के स्टटगार्ट में उतरने पर € 0.85-0.95 की कीमत वाले खाना पकाने के तेल की एक बोतल को याद करती हैं. उन्होंने कहा कि "सबसे खराब समय में, तो यह € 4.50 तक की बिकी थी. अब कीमतें कम हुई भी हैं तो हमें यह € 2.19 यूरो में मिल रही है".

इसी तरह दूध का एक डिब्बा जो € 0.80 का हुआ करता था, अब लगभग € 1.20 का है.

दूध का एक डिब्बा जो € 0.80 का हुआ करता था, अब लगभग € 1.20 का है.

(फोटोः जान्हवी भावसार)

गुरुवार, 31 मई 2023 को प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के अनुसार यूरोप में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी, 2023 की पहली तिमाही में सिकुड़ने के बाद मंदी की चपेट में आ गयी है.

आंकड़ों से पता चलता है कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था जनवरी और मार्च के बीच 0.3 प्रतिशत गिर गयी है. यह 2022 के आखिरी तीन महीनों में 0.5 प्रतिशत सिकुड़न के बाद आया है.

एक देश मंदी में तब माना जाता है जब उसकी अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाहियों में गिरती है.

ऊर्जा आयात के संबंध में रूस पर अत्यधिक निर्भरता और यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, जर्मनी की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक था.

आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार भोजन, कपड़े और फर्नीचर पर घरेलू खर्च में तिमाही-दर-तिमाही 1.2% की कमी आई है. इस तिमाही में सरकारी खर्च में भी 4.9% की गिरावट आई है और ऊर्जा संकट का सीधा असर उद्योगों पर भी पड़ा है.

खाना पकाने के तेल की कीमत € 0.85-0.95 से € 4.50 तक सबसे खराब स्थिति में बढ़ीं. इसकी कीमत लगभग €2.19 है.

(फोटोः जान्हवी भावसार)

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विश्वविद्यालयों, छात्रों और यात्रा पर भी मंदी का प्रभाव

जर्मनी में अन्य यूरोपीय देशों की तरह ही अंतर्राष्ट्रीय छात्र प्रति सप्ताह 20 घंटे एक्स्ट्रा अर्निंग के लिए पार्ट टाइम नौकरी कर सकते हैं.

काम के प्रतिबंधों के साथ रहने की लागत बढ़ने के साथ, छात्रों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. जर्मनी के स्टटगार्ट में पढ़ने वाले छात्र भावसार कहती हैं कि...

"अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के रूप में हमारे पास काम करने के घंटों की संख्या के संबंध में प्रतिबंध है. हमारे पास छात्रों के रूप में आय की एक विशिष्ट राशि आ रही है, लेकिन मूल्य वृद्धि के बाद हमें जीवन यापन में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है."
जान्हवी भावसार, 23

हालांकि, छात्र इंटर्नशिप और नौकरियों को सुरक्षित रखने में सक्षम हैं.

भावसार कहती हैं कि "सौभाग्य से हमारे लिए मंदी के कारण, हमें छात्रों की नौकरी और इंटर्नशिप प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं हुई है. यहां अभी भी नौकरियों की मांग है."

कई अन्य छात्रों की तरह, 21 वर्षीय आर्यन पाटिल, युद्ध के बाद म्यूनिख में अपने स्थानीय सुपरमार्केट में टूना की कैन जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतों में €1.50 से €2.90 तक की वृद्धि देखकर चौंक गए. लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी.

"चूंकि कोई ट्यूशन फीस नहीं है, भारतीय छात्रों के लिए खर्च स्थानीय छात्रों के समान ही है, इसलिए इसमें ज्यादा अंतर नहीं है. अगर आप भारत के लिए फ्लाइट टिकट की बात करें तो ये थोड़े महंगे हो गए हैं. हालांकि, यह अभी भी ठीक है, लेकिन मुझे बताया गया है कि यह और भी बदतर हो जाएगा."
आर्यन पाटिल, 21

इसके अलावा, विश्वविद्यालय में उनकी एक्स्ट्रा-करिकुलम गतिविधियों में भी मंदी के प्रभाव देखे जा सकते हैं.

आर्यन पाटिल आगे कहते हैं कि...

"मैं एक छात्र क्लब का हिस्सा हूं जो रॉकेट बनाता है, और हम स्पॉंसर्स पर निर्भर रहते हैं कि वे हमारे प्रोजेक्ट्स को आर्थिक रूप से समर्थन दें क्योंकि कंपोनेंट्स बहुत महंगे हैं. और कुछ महीनों से, हमें कुछ रिजेक्शन मिले हैं. कुछ स्पॉंसर्स ने पूरी तरह से हाथ खींच लिया क्योंकि वे अब इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं."
आर्यन पाटिल, 21

जर्मन सरकार ने वित्तीय राहत प्रदान करने के लिए उठाए कदम

जीवन-यापन की बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए जर्मन सरकार ने अपनी आबादी, विशेषकर छात्रों को वित्तीय राहत प्रदान करने के लिए कदम उठाए हैं.

रहने की लागत में वृद्धि के बाद छात्र जल्द ही € 200 प्रति माह सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं.

जर्मनी के म्यूनिख में काम कर रहे एक भारतीय नागरिक पुरुजीत नाइक ने कहा कि "जर्मन सरकार ने €3000 तक का टैक्स-फ्री बोनस भी घोषित किया है, जो कंपनियां अपने कर्मचारियों को भुगतान कर सकती हैं."

इसके अलावा ईंधन की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के साथ, सरकार ने सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच को आसान बना दिया है.

"युद्ध के कारण कारों के लिए ईंधन की कीमतें बहुत महंगी हो गई थीं. बढ़ोतरी के कारण, सरकार ने सार्वजनिक परिवहन को बहुत सस्ता कर दिया है. एक योजना थी जहां आप एक महीने के लिए पूरे जर्मनी में यात्रा करने के लिए € 50 का टिकट खरीद सकते थे."
पुरुजीत नाइक, 23

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