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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से भले ही इमरान खान (Imran Khan) दूर हो गए हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक पारी अभी भी जारी है. पीएम की कुर्सी से हटाए जाने के बाद इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के पास पंजाब प्रांत में हुए उपचुनावों (Pakistan's Punjab by-polls) में पहली बार यह साबित करने का मौका था कि अभी भी उसकी राजनीतिक रसूख कम नहीं हुई है- और उसने ठीक यही किया है. PTI ने रविवार, 17 जुलाई को आये महत्वपूर्ण उपचुनाव के नतीजों में 20 सीटों में से 15 सीटें जीतकर मौजूदा पीएम शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पार्टी पीएमएल-एन को बुरी तरह से हरा दिया.
दरअसल पंजाब के मुख्यमंत्री पद के लिए पीएमएल-एन के नेता हमजा शहबाज को वोट देने वाले PTI विधायकों की अयोग्यता के बाद ये सीटें खाली हुईं थीं. सवाल है कि इसे इमरान खान की वापसी का संकेत माना जाए या इसके पीछे पीएम शहबाज शरीफ से लोगों की नाराजगी वजह रही?
पाकिस्तान के अखबार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार अनौपचारिक रिजल्ट के अनुसार, इमरान खान की पार्टी PTI ने मध्य पंजाब में पांच, उत्तर में पांच और दक्षिण पंजाब में इतनी ही सीटें जीती हैं.
जाहिर है पंजाब प्रांत की जनता ने पीएमएल-एन और बागियों के जगह पीटीआई और इमरान खान को चुना.
यह सब केंद्र सरकार और तत्कालीन प्रधान मंत्री इमरान खान के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव से शुरू हुआ. सिर्फ इमरान खान ही नहीं, तत्कालीन विपक्ष ने पंजाब के मुख्यमंत्री और पीटीआई नेता उस्मान बुजदार को भी अपने निशाने पर लिया.
हालांकि पीटीआई की इस प्लानिंग को धक्का दिया पार्टी के ही 25 असंतुष्ट विधायकों ने. इन असंतुष्ट विधायकों ने दलबदल किया और पीटीआई को एक घातक झटका देते हुए मुख्यमंत्री के चुनाव में हमजा शहबाज को वोट दे दिया.
पीटीआई ने इसका विरोध किया और पाकिस्तान के चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया. उसके चुनाव आयोग से संविधान के अनुच्छेद 63-ए (दल-बदल विरोधी प्रावधान) के तहत बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए कहा. इस बीच राज्यपाल कोर्ट के आदेशों के बावजूद हमजा के शपथ ग्रहण में देरी करते रहे. 30 अप्रैल को लाहौर हाई कोर्ट के तीसरे आदेश के बाद हमजा ने आखिरकार पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
दूसरी तरफ पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने पीटीआई के पक्ष में 3-2 के बहुमत से फैसला दिया और चुनाव आयोग ने पीटीआई के 25 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया. चूंकि इनमें से 5 विधायक पीटीआई द्वारा मनोनीत थे, इसपर चुनाव आयोग ने पीटीआई के नए मनोनीत विधायकों को जगह दे दी. बाकि के 20 सीट पर उप-चुनाव हुए.
बता दें कि पीटीआई के 25 बागियों के वोटों से ही हमजा ने बहुमत का आंकड़ा पार किया था- उन्हें कुल 197 विधायकों के वोट मिले जबकि साधारण बहुमत के लिए 186 वोटों की जरूरत थी. चूंकि ये 25 विधायक अब सदन के सदस्य नहीं थे, इसलिए हमजा ने अपना बहुमत खो दिया है.
मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है जिसने कहा है कि उपचुनाव के पांच दिन बाद, 22 जुलाई को पंजाब विधानसभा में हमजा को फिर से बहुमत साबित करना होगा और हमजा तब तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे.
पंजाब में अब PTI फिर से सत्ता में वापसी कर सकती है क्योंकि PTI-PML-Q गठबंधन ने उपचुनाव से पहले की स्थिति (173 विधायक) में सुधार किया है और प्रांत में अपनी सरकार बनाने के लिए 186 की जादुई संख्या को पार कर लिया है.
डॉन अखबार में अमजद महमूद लिखते हैं कि उपचुनाव के नतीजे यह स्थापित करते हैं कि वोटरों को आर्थिक और राजनीतिक, दोनों मोर्चों पर शाहबाज शरीफ की सरकार के अलोकप्रिय फैसले पसंद नहीं आए हैं- जैसे उसने आर्थिक मंदी से बचने के लिए महंगाई को बेतहाशा बढ़ने दिया और पंजाब में पीटीआई के बागियों को टिकट दिया.
पंजाब यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया स्टडी सेंटर के डॉ अमजद मगसी कहते हैं कि "लोगों को उम्मीद थी कि इमरान खान सरकार द्वारा लिए गए 'गलत' आर्थिक फैसलों के विपरीत PML-N सरकार उन्हें राहत देगी. लेकिन, इसके बजाय शहबाज सरकार ने आंख मूंदकर IMF की बात मानी और उनके आर्थिक संकट को बढ़ा दिया."
पाकिस्तान के सीनियर स्तंभकार इम्तियाज आलम का कहना है कि बिगड़ती आर्थिक स्थितियों ने वोटरों का मूड बनाने में भूमिका निभाई है, लेकिन यह मुख्य रूप से उन बागियों के खिलाफ एक फैसला है, जिन्हें शाहबाज शरीफ की पार्टी ने टिकट दिया था.
प्रो रशीद अहमद खान का कहना है कि उपचुनाव के नतीजे केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं रहेंगे बल्कि इस्लामाबाद में शहबाज सरकार पर भी इसका असर पड़ेगा. इमरान खान ने भी सोमवार को पाकिस्तान के मुख्य चुनाव आयुक्त सिकंदर सुल्तान राजा से इस्तीफा देने को कहा और दावा किया कि उनकी पार्टी ने PML-N के पक्ष में राज्य मशीनरी के इस्तेमाल के बावजूद पंजाब उपचुनाव जीता. इमरान खान ने जोर देकर कहा कि जल्द से जल्द चुनाव कराना अभी भी देश की समस्या का एकमात्र समाधान है.
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