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भारत और चीन के बीच हाल ही में चौथे दौर की कमांडर स्तर की बातचीत खत्म हुई है. ये बातचीत लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर डिसेंगेजमेंट कराने और तनाव कम करने के लिए हो रही हैं. इस बीच में भारत के NSA अजीत डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री से फोन पर बातचीत कर सीमा पर तनाव कम करने पर सहमति बनाई थी. भारत जहां चीन से लगातार बातचीत कर पूर्वी लद्दाख में LAC पर स्थिति सुधारने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी तरफ वो एक ऐसा राजनयिक कदम उठा रहा है, जिससे चीन परेशान हो सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत गौरांगलाल दास को ताइवान में दूत नियुक्त कर रहा है. इस बात का औपचारिक ऐलान कुछ दिनों में संभव है. दास फिलहाल विदेश मंत्रालय में जॉइंट सेक्रेटरी (अमेरिका) हैं.
इस बात को समझने के लिए चीन और ताइवान के रिश्ते को समझना जरूरी है. ताइवान एक आइलैंड या द्वीप है. चीन ताइवान को एक ऐसा क्षेत्र मानता है जो उससे टूट गया है और किसी दिन उसका चीन में विलय हो जाएगा. वहीं, ताइवान खुद को एक सॉवरेन देश मानता है. ताइवान को आधिकारिक रूप से रिपब्लिक ऑफ चीन कहा जाता है.
चीन के साथ तनाव के बीच भारत ने अब ताइवान में नया दूत नियुक्त करने का फैसला लेकर चीन की उस 'नस' पर हाथ रख दिया है, जहां चीन को सबसे ज्यादा 'दर्द' होता है.
एक्सपर्ट्स काफी पहले से कहते आए हैं कि भारत को ताइवान के साथ रिश्ते सुधारने चाहिए. भारत के ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक रिश्ते नहीं हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिन मामलों में भारत चीन पर निर्भर है, वही प्रोडक्ट्स हम ताइवान से भी खरीद सकते हैं.
चीन मामलों के बड़े एक्सपर्ट जयदेव रानाडे ने क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से बातचीत में कहा था कि ताइवान ने हाल ही में पांचवी जनरेशन का एडवांस्ड जेट ट्रेनर को लॉन्च किया था. रानाडे का कहना है कि भारत को इस प्लेटफॉर्म पर ताइवान के साथ जुड़ना चाहिए.
पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर रह चुके जी पारसार्थी ने द हिंदू में एक लेख में कहा कि चीन टेलीकम्यूनिकेशन नेटवर्क में इसलिए डोमिनेंट है क्योंकि भारत ने कम्युनिकेशन नेटवर्क की सबसे बेसिक जरूरत सेमीकंडक्टर बनाने में महारत हासिल नहीं की. पारसार्थी लिखते हैं कि ताइवान ही ऐसा देश है जिसके पास सेमीकंडक्टर बनाने की क्षमता मौजूद है और वो इस फील्ड में भारत के साथ जुड़ना चाहता है. पारसार्थी का मानना है कि हमें ताइवान के साथ काम करना चाहिए और इससे चीन पर निर्भरता भी कम होगी.
ताइवान पर भले ही चीन दावा करता हो लेकिन वो खुद को एक अलग देश मानता है, जिसके पास लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार और अपनी आर्मी है. इतना होने के बावजूद भारत, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी जैसे किसी भी बड़े देश के ताइवान के साथ औपचारिक रूप से राजनयिक रिश्ते नहीं हैं और न ही ये देश ताइवान को मान्यता देते हैं. ताइवान के साथ इस तरह का रिश्ता भारत की 'एक-चीन नीति' का नतीजा है.
भारत का ताइवान में कोई दूतावास नहीं है. ताइवान की राजधानी ताइपे में भारत-ताइपे एसोसिएशन नाम के एक ऑफिस से भारत अपने राजनयिक काम पूरे करता है. इसी तरह ताइवान सरकार का नई दिल्ली में ताइपे इकनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया के नाम से एक प्रतिनिधित्व कार्यालय है.
ऐसे में भारत के पास ताइवान के साथ रिश्ते सुधारने का अच्छा मौका है. चीन के साथ रिश्ते खराब होने के डर की वजह से भारत औपचारिक राजनयिक मान्यता या यूएन जैसे प्लेटफॉर्म पर ताइवान का साथ देने जैसे कदम तो नहीं उठाएगा, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स के लिए चीन पर से निर्भरता कम करने के लिए ताइवान एक अच्छा साथी हो सकता है.
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