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PM मोदी के नेतृत्व में क्या भारत की छवि सुधरी है? स्टडी का दावा-ये 'भ्रम' है

'द मोदी मिराज' नामक एक नई स्टडी ने 2014 के बाद से भारत की बेहतर वैश्विक स्थिति के दावों का खंडन किया है.

साक्षात चंडोक
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>क्या PM मोदी के नेतृत्व में भारत की वैश्विक छवि सुधरी है? स्टडी का दावा-ये मिराज है</p></div>
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क्या PM मोदी के नेतृत्व में भारत की वैश्विक छवि सुधरी है? स्टडी का दावा-ये मिराज है

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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PM Modi: "लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में और उनके जीवन स्तर को सुधार के लिए (नरेंद्र) मोदी जी के निस्वार्थ प्रयासों और लोगों की उनके प्रति अटूट विश्वास को वैश्विक मान्यता है." पिछले साल सितंबर में अमेरिका स्थित कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 76 प्रतिशत अप्रूवल रेटिंग के साथ सबसे "भरोसेमंद" वैश्विक नेता हैं, इसके तुरंत बाद अमित शाह ने उपरोक्त बातें कही.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा लगातार दोहराए गए दावों में से एक यह भी दावा है कि जब से भगवा पार्टी 'अपराजेय' मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आई है तो 2014 के बाद से भारत की वैश्विक छवि में सुधार हुआ है.

कई मौकों पर कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए, पीएम मोदी ने खुद कहा है कि भारत अब अपनी विदेश नीति की चुनौतियों पर उतनी "कमजोर" प्रतिक्रिया नहीं देता, जितनी कांग्रेस कथित तौर पर दिया करती थी. BJP नेताओं ने इसपर सुर में सुर मिलाया कि मोदी दुनिया में सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनके नेतृत्व में देश ने इतिहास की तुलना में अधिक सम्मान हासिल किया है.

हालांकि, क्या इन दावों में कोई सच्चाई है? एक नई स्टडी कहती है 'नहीं'.

इस साल 29 मार्च से 8 अप्रैल के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में 3,000 लोगों के इंटरव्यू पर आधारित एक स्टडी 'द मोदी मिराज' से पता चलता है कि बीजेपी के दावे "मिथक" से ज्यादा कुछ नहीं हैं.

स्टडी के अनुसार, सर्वे में शामिल अधिकांश लोग भारत में मानवाधिकारों और लोकतंत्र की स्थिति को लेकर चिंतित हैं. इतना कि वे बड़े पैमाने पर इन मुद्दों को नए ट्रेड और राजनीतिक वार्ता के लिए स्थितियां बनते देखना चाहते हैं.

नीदरलैंड के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और स्टडी के लेखकों में से एक, इरफान नूरुद्दीन ने द क्विंट से बात करते हुए कहा...

"आम जनता के स्तर पर भारत के बारे में जागरूकता सीमित है. इसलिए, ऐसे समय में सर्वे करना उचित रहा, जब मौजूदा चुनाव के कारण भारत पर ध्यान अधिक है."

यह स्टडी गैर-लाभकारी फ्रेंड्स ऑफ डेमोक्रेसी के सहयोग से लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज और ग्रोनिंगन यूनिवर्सिटी के शिक्षाविदों ने भी मिलकर लिखा है.

स्टडी के मुख्य रिजल्ट क्या हैं?

स्टडी के अनुसार, चार में से तीन उत्तरदाताओं ने नए कानूनों पर चिंता व्यक्त की है, जो मुसलमानों के लिए भारत का नागरिक बनना कठिन बनाते हैं, जैसे कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA).

  • 90 प्रतिशत ने खालिस्तान समर्थक अमेरिकी और कनाडाई नागरिकों की उनकी धरती पर हत्या करने की भारत सरकार की कथित कोशिशों पर चिंता व्यक्त की.

  • 89 प्रतिशत ने महसूस किया कि यदि उनके देश को भारत के साथ संबंध मजबूत करना है तो यह महत्वपूर्ण है कि भारत मानवाधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा करे.

  • 88 प्रतिशत ने भारत में औद्योगिक और अन्य वाणिज्यिक निवेश के लिए मानवाधिकार को एक शर्त होने का समर्थन किया.

  • 84 प्रतिशत ने सोचा कि यह महत्वपूर्ण है कि उनकी सरकार भारत में मानवाधिकारों की वकालत करे.

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स्टडी में मार्च 2024 के YouGov पोलिंग का हवाला देते हुए यह भी कहा गया है कि मोदी विदेशों में न तो प्रसिद्ध हैं और न ही लोकप्रिय हैं.

अमेरिका में केवल 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे मोदी को पसंद की दृष्टि से देखते हैं. ब्रिटेन में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत है.

इतना ही नहीं, दोनों देशों में मोदी लोकप्रियता के स्तर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी नीचे हैं.

इसके अलावा, विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई और सरकार की आलोचना करने वाले पोस्ट करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर केंद्र द्वारा की गई कार्रवाई के बैकग्राउंड में, अध्ययन में फ्रेंड्स ऑफ डेमोक्रेसी के लिए YouGov का हवाला देते हुए कहा गया है कि 80 प्रतिशत भारतीय देश के स्वस्थ लोकतांत्रिक मानकों को लेकर चिंतित है.

हेट क्राइम, विवादास्पद कानूनों के तहत की गई गिरफ्तारियों और असमान धन वितरण से संबंधित डेटा ने भारत के कथित गिरते लोकतांत्रिक स्टैंडर्ड को और उजागर किया है.

'मोदी मिराज' की सच्चाई क्या है?

स्टडी सवाल उठाता है कि अगर मोदी ने विश्व मंच पर भारत का स्टैंड को मजबूत नहीं किया है तो उनके बारे में व्यापक धारणा का क्या कारण है? यह 'मिराज' कैसे बना?

लेखकों का दावा है कि यह प्रेस सेंसरशिप और सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के बढ़ते स्तर के कारण यानी दोनों के कारण हो सकता है.

स्टडी में कहा गया है, अंदरूनी सूत्रों ने प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रमुख मीडिया आउटलेट्स को नैरेटिव के लिए डायरेक्शन दिया गया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय मामलों में मोदी की भूमिका को बताने वाली स्टोरी पर विशेष ध्यान दिया गया है.

"इस निर्देश ने कुछ समय के लिए वैश्विक कवरेज को भी प्रभावित किया होगा, क्योंकि मीडिया हाउस अक्सर अपने दिल्ली के संवाददाताओं से इनपुट्स लेते थे, जो राष्ट्रीय मीडिया माहौल से प्रभावित थे."

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट के अनुसार, एक्सपर्ट्स ने भी दुष्प्रचार को भारत के लिए नंबर एक जोखिम के रूप में स्थान दिया है.

हालांकि, स्टडी करने वाले लेखकों का कहना है कि बीजेपी की चुनावी सफलता पार्टी के संगठनात्मक कौशल और इसकी तुलना में विपक्ष की प्रभाव नहीं डाल पाने के भी कारण है.

नूरुद्दीन ने द क्विंट को बताया...

"पीएम मोदी एक बहुत ही प्रभावी राजनेता हैं और बीजेपी एक बहुत ही सुसंगठित पार्टी है. उन्होंने विकास और सुशासन के बारे में एक प्रभावी नैरेटिव तैयार करने में बहुत अच्छा काम किया है, जो पिछले दस वर्षों में भारतीय जनता की बहुलता के साथ गूंज उठा है."

"राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर चुनावों में बीजेपी की सफलता में कमजोर और अप्रभावी विपक्ष ने भी मदद की है. विशेष रूप से 2014 या 2019 में कांग्रेस के चुनौती देने में असक्षम होना भी इसका एक कारण है. भारत की विशेषता एक युवा और आकांक्षी समाज है और बीजेपी का अभियान उस ऊर्जा को हासिल करने में प्रभावी रहा है."
इरफ़ान नूरुद्दीन

इसके अलावा, जबकि सबूत बताते हैं कि भारत के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव में वृद्धि जारी रहने की संभावना है, मतदान से यह भी संकेत मिलता है कि अगर यह मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मानदंडों के लिए अधिक सम्मान की दिशा में अपना रुख बदलता है, तो इसकी स्थिति तेजी से बढ़ने की संभावना है.

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