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PMAC : मुस्लिम आबादी 43% बढ़ने का दावा सच नहीं

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति ( Prime Minister's Economic Advisory Committee) ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में मई में एक क्रॉस-कंट्री रिपोर्ट जारी की है, जिसके बाद कई न्यूज चैनल्स और सोशल मीडिया यूजर्स ने इस रिपोर्ट के कुछ नतीजों को शेयर किया है.

दावा: मीडिया ऑउटलेट्स और सोशल मीडिया यूजर्स ने इस रिपोर्ट के कुछ नतीजे छापे हैं, जिसमें दावा किया गया है कि भारत में हिंदुओं की आबादी का प्रतिशत लगभग 8% गिर गया है, जबकि मुसलमानों का प्रतिशत लगभग 43% बढ़ गया है.

इसे किसने शेयर किया?: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय, न्यूज चैनल Asianet, बिजनेस टुडे, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, न्यूज9 और दक्षिणपंथी वेबसाइट ऑपइंडिया (OpIndia) ने इस दावे को शेयर किया है.

  • (अमित मालवीय ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए यह दावा शेयर किया था.)

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लेकिन...?: यह वायरल दावा भ्रामक है.

  • हमने रिपोर्ट देखी और यह पाया कि जहां हिंदुओं की आबादी का प्रतिशत 7.82% अंक गिर गया, वहीं मुसलमानों का प्रतिशत 4.25% बढ़ गया. जाहिर है वायरल पोस्ट में दिए गए आंकड़े सही नहीं है.

  • सोशल मीडिया पोस्ट में बढ़ी हुई जनसंख्या के सटीक आंकड़े नहीं दिए गए हैं.

रिपोर्ट पर एक नजर: हमने रिपोर्ट देखी, जो मई 2024 में प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PM-EAC) की वेबसाइट पर छपी थी.

इसके पहले पेज से पता चलता है कि यह पेपर 1950 और 2015 के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या हिस्सेदारी की बात कर रहा था.

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

रिपोर्ट में 65 वर्षों से अधिक के आंकड़ों पर गौर किया गया.

(सोर्स: EAC/स्क्रीनशॉट)

अपने विश्लेषण में 167 देशों को देखते हुए, पेपर ने बताया है कि विश्व स्तर पर, 65 वर्षों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत कम हो गई है.

भारत पर ध्यान केंद्रित करत हुए, रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में "बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में 7.81 प्रतिशत की कमी देखी गई."

इसमें आगे जोड़ते हुए, पेपर ने कहा कि यह "विशेष रूप से उल्लेखनीय" है क्योंकि भारत के पड़ोसियों - बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और अफगानिस्तान - में अल्पसंख्यक आबादी में गिरावट देखी गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक इससे संकेत मिलता है कि "आस-पड़ोस से अल्पसंख्यक आबादी दबाव के समय भारत आती है."

भारत के अलावा म्यांमार और नेपाल ऐसे अन्य गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देश हैं जहां बहुसंख्यक धार्मिक लोगों की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है.

पेपर में वह फॉर्मूला भी शामिल है जिसका इस्तेमाल 1950 और 2015 के बीच जनसंख्या में हुए बदलाव की दर निर्धारित करने के लिए किया गया था.

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

रिपोर्ट में गणना के लिए परिवर्तन की दर का फॉर्मूला बताया गया है.

(सोर्स: EAC/Altered by the quint)

वायरल आंकड़ों के बारे में?: रिपोर्ट के एक हिस्से में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बदलती धार्मिक जनसांख्यिकी का पता लगाया गया, जिसमें SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) देश - अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार शामिल हैं.

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

यह चार्ट भारत और पडोसी देश में बहुसंख्यक धर्मों के परिवर्तन की दर को दिखाता है.

(सोर्स: EAC/स्क्रीनशॉट)

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भारत के सबहेड के तहत यह बताया गया है कि भारत की बहुसंख्यक (हिंदू) आबादी का हिस्सा 65 वर्षों में 7.82 प्रतिशत कम हो गया - 1950 में भारत की आबादी का 84.68 प्रतिशत से 2015 में 78.06 प्रतिशत हो गया है.

हालांकि 1950 के प्रतिशत में से 2015 का प्रतिशत घटाने पर हमें -6.62 प्रतिशत मिलता है, जिससे पता चलता है कि हिंदू आबादी में 6.62 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है.

पेपर में बताए गए फॉर्मूले का इस्तेमाल करके इस अवधि में भारत में हिंदुओं के परिवर्तन की दर की गणना करने पर हमने देखा कि गिरावट की दर 7.82 प्रतिशत थी.

इसी तरह पेपर में बताया गया है कि 1950 में भारत की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 9.84 फीसदी थी, जो 2015 में बढ़कर 14.09 फीसदी हो गई थी.

इससे पता चलता है कि 65 वर्षों में मुसलमानों की जनसंख्या में 4.25 प्रतिशत अंक की बढ़ोत्तरी हुई है.
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इसके बाद, हमने उसी फॉर्मूले का उपयोग करके भारत में मुस्लिम समुदाय के परिवर्तन की दर की गणना की, जिससे पता चला कि भारत में मुसलमानों की संख्या में 43.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

जनगणना के आंकड़े क्या कहते हैं?: हमने इस समयावधि के लिए मौजूदा आधिकारिक जनगणना के आंकड़ों को देखा.

  • इस अवधि के दौरान हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों की संख्या मिलाने के लिए, हमने 1951 और 2011 की जनगणना रिपोर्टों को देखा.

  • चूंकि 1951 की जनगणना रिपोर्ट में धर्म के आधार पर जनसंख्या के बारे में डेटा मौजूद नहीं था, इसलिए हमने विभिन्न धर्मों के प्रतिशत शेयर दिखाने वाली इस टेबल की मदद ली जिसे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 2018 हैंडबुक ऑफ सोशल वेलफेयर स्टैटिस्टिक्स में प्रकाशित किया गया था.

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

इस रिपोर्ट में प्रत्येक जनगणना के लिए धर्म के अनुसार जनसंख्या का प्रतिशत हिस्सा बताया गया है.

(सोर्स: सामाजिक कल्याण सांख्यिकी की पुस्तिका/स्क्रीनशॉट)

इन रिपोर्टों और चार्टों से हमें पता चला कि 1951 में भारत की आबादी 36 करोड़ थी, जिसमें से 84.1 प्रतिशत हिंदू समुदाय के थे और 9.8 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के थे.

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संख्या के हिसाब से, 1951 में भारत में लगभग 30.2 करोड़ हिंदू और 3.53 करोड़ मुस्लिम थे.

इसी तरह, 2011 में, भारत में 96.63 करोड़ हिंदू थे, जो हमारी कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत थे, और 17.22 करोड़ मुस्लिम थे, जो सभी भारतीयों का 14.2 प्रतिशत थे.

इन संख्याओं की तुलना करने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदुओं की कुल संख्या में 66.43 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई है, और इसमें कोई कमी नहीं हुई है, जैसा कि कुछ दावों में कहा जा रहा है.

1951 से 2011 के बीच, भारत में हिंदुओं की जनसंख्या हिस्सेदारी 4.3 प्रतिशत कम हो गई है, जबकि मुसलमानों की हिस्सेदारी 4.4 प्रतिशत बढ़ गई है.

यहां, यह देखा जा सकता है कि चूंकि 1951 में मुसलमानों की कुल संख्या काफी कम (3.53 करोड़) थी, इसलिए ताजा जनगणना के आंकड़ों में जनसंख्या हिस्सेदारी में परिवर्तन की दर ज्यादा दिखती है, जिसमें 2011 में 17.22 करोड़ मुसलमानों का उल्लेख है.

इन दावों में अल्पसंख्यकों पर पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.
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एक्सपर्ट्स ने मीडिया की गलत सूचना को खारिज किया: पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PFI) एक ऐसी नॉन-प्रॉफिट संस्था है जो नीतियों के बेहतर निर्माण और कोर्डिनेशन की दिशा में काम करती है. उसने एक बयान जारी कर इन भ्रामक बातों को खारिज किया है.

अपने बयान में इन्होंने कहा है कि वह गलत तरीके से प्रस्तुत किए गए निष्कर्षों के बारे में "गहराई से चिंतित" है जो "न केवल गलत हैं बल्कि भ्रामक और निराधार भी हैं."

बयान के मुताबिक, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक, पूनम मुत्तरेजा ने कहा, "मुस्लिम आबादी में बढ़ोत्तरी दिखाने के लिए मीडिया द्वारा डेटा के चुनिंदा हिस्सों को लेना, गलत बयानी का एक उदाहरण है जो व्यापक जनसांख्यिकीय रुझानों को नजरअंदाज करता है."

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इसमें मुसलमानों की दशकीय वृद्धि दर पर चर्चा की गई, जो "पिछले तीन दशकों से घट रही है." और यह हिंदुओं की तुलना में ज्यादा स्पष्ट है, यह उसी अवधि के जनगणना आंकड़ों के साथ समानताएं दिखाती है, जो समान रुझान दिखाते हैं.

दावों में बताई गई कुछ बातें इस लोकप्रिय और खारिज किए जा चुके दावे को आगे बढ़ाती हैं कि भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के संबंध में जनसंख्या असंतुलन है. इस दावे की पड़ताल टीम वेबकूफ भी कर चुकी है.

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निष्कर्ष: सोशल मीडिया पर वायरल हेडलाइन में भारत में हिंदू और मुस्लिम आबादी में बदलाव के बारे में भ्रामक दावा करने के लिए दो अलग-अलग आंकड़ों की तुलना की गई है.

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