advertisement
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu), रक्षा मंत्री योआव गैलेंट (Yoav Gallant) और हमास के तीन नेताओं के खिलाफ युद्ध और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी करने की अपील की गई है. अपील में कहा गया है कि गाजा जंग में इन शख्सियतों की भूमिका कथित तौर पर वॉर क्रिमिनल की है. यानी इन नेताओं को युद्ध अपराधी के तौर पर गिरफ्तार किए जाने की गुजारिश की गई है.
ICC के प्रॉसेक्यूटर (अभियोजक) करीम खान ने सोमवार को एक बयान जारी करते हुए कहा कि सात महीने से ज्यादा समय से चल रहे गाजा युद्ध ने उन्हें वारंट की अपील डालने का पर्याप्त आधार दिया है. बयान के मुताबिक, युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों के मामले में इन पर "आपराधिक जिम्मेदारी पड़ती है."
अभियोजक का आरोप है कि इजरायल के खिलाफ ऐसे कई सबूत हैं कि जो ये दर्शातें हैं कि इजरायल ने गाजा जंग में 'भूख' को नागरिकों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है.
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के अभियोजक की ओर से दायर अपील को लेकर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसकी आलोचना की है और इसे सिरे से खारिज कर दिया है. उन्होंने अपनी गिरफ्तारी की मांग को 'झूठ' और 'बेतुका' बताया है.
नेतन्याहू ने कहा, "इजरायल जैसे लोकतांत्रिक देश की तुलना किसी सामूहिक हत्यारों के साथ करना गलत है. ऐसी तुलना को हम खारिज करते हैं."
इजरायली रक्षा मंत्री योआव गैंलेंट ने इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में गिरफ्तारी के वारंट जारी करने के अपील को शर्मनाक बताया है. उन्होंने कहा, "यह अपील इजरायल के खुद की रक्षा और बंधकों की रिहाई के अधिकारों के खिलाफ है."
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट एक स्थायी वैश्विक अदालत है जिसके पास नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध और युद्ध अपराधों के लिए व्यक्तियों और नेताओं पर मुकदमा चलाने की शक्ति है. इसका मुख्यालय नीदरलैंड्स के हेग में है. हालांकि इजरायल और अमेरिका इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के सदस्य नहीं हैं.
अभियोजक की ओर से दायर अपील पहले प्री-ट्रायल चैंबर में जाती है. इस चैंबर में तीन मजिस्ट्रेट होते हैं. फिलहाल चैंबर में रोमानिया के न्यायाधीश इयूलिया मोटोक पीठासीन हैं. इनके अलावा मैक्सिकन न्यायाधीश मारिया डेल सोकोरो फ्लोरेस लीरा और बेनिन के न्यायाधीश रेइन अलापिनी-गांसौ के मजिस्ट्रेट हैं.
यदि न्यायाधीश सहमत हैं और यह मानने के लिए "उचित आधार" हैं कि युद्ध अपराध या मानवता के खिलाफ अपराध किए गए हैं, तो वे गिरफ्तारी वारंट जारी करेंगे.
ICC की स्थापना साल 2002 में हुई थी. इसे यूगोस्लाव युद्धों और रवांडा नरसंहार के बाद अमल में लाया गया था. इस न्यायालय की स्थापना रोम कानून के अंतर्गत की गई थी. इस न्यायालय के मसौदे पर 124 देशों ने हस्ताक्षर किया हुआ है.
हालांकि यह अदालत 1 जुलाई 2002 के बाद हुए युद्ध अपराधों में ही मुकदमा चला सकता है. बता दें इजरायल, अमेरिका, चीन, रूस और भारत जैसे देश इस न्यायालय के सदस्य नहीं हैं.
ICC का पहला फैसला मार्च 2012 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में एक मिलिशिया नेता थॉमस लुबांगा के खिलाफ था. थॉमस को देश में जंग के दौरान बच्चों के इस्तेमाल को लेकर युद्ध अपराधी बनाया गया था और जुलाई में 14 साल की सजा भी सुनाई गई थी.
इसके अलावा केन्या के राष्ट्रपति उहुरू केन्याटा के खिलाफ मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप शामिल थे, जिन्हें 2011 में 2007-08 में चुनाव के बाद जातीय हिंसा के संबंध में दोषी ठहराया गया था, जिसमें 1,200 लोग मारे गए थे. अदालत ने दिसंबर 2014 में उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए थे.
सवाल ये हैं कि क्या इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के वारंट जारी करने से गिरफ्तारी संभव है?
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट की अपनी पुलिस व्यवस्था नहीं है. यह अपने सदस्य देशों पर निर्भर रहता है. अगर अदालत किसी देश के नेता के खिलाफ वारंट जारी करता है तो सदस्य देशों पर यह बाध्यता होती है कि अगर आरोपी नेता उनके देश में आए तो वह उसकी गिरफ्तारी करे. हालांकि किसी दूसरे देश में आरोपी नेताओं से बातचीत या राजनीतिक संबंधों को लेकर कोई कानून नहीं है, लेकिन जाहिर तौर पर इससे कुटनीतिक नुकसान का संकट बना रहता है.
मिसाल के तौर पर, पिछले साल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी में हो रहे ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में पहुंचना था. इससे पहले ही पुतिन पर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने यूक्रेन में जंग के खिलाफ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित करते हुए वारंट जारी कर दिया था.
इस बीच दक्षिण अफ्रीका की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक अलायंस ने देश की अदालत में जाकर कहा था कि पुतिन जैसे ही देश में पहुंचें उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए. इस पर सिरिल रामाफोसा की सरकार ने कहा था कि अगर वे ऐसा करते हैं तो एक नए जंग की शुरुआत हो जाएगी. हालांकि आखिरी वक्त पर खुद पुतिन ने अपना दौरा रद्द कर दिया.
इससे पहले साल 2015 में सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति उमर अल-बशीर को पर अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध अपराध का आरोप था और इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया था. लेकिन इसके बावजूद दक्षिण अफ्रीका ने उन्हें अपने देश में सुरक्षित रास्ता दिया था.
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के वारंट के तहत गिरफ्तारी को लेकर बहुत साफ-साफ कानून नहीं है, यानी अगर कोई देश इसे नहीं मानता तो उसपर क्या कार्रवाई हो सकती है इसे लेकर स्पष्ट कानून नहीं हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)