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जापान की राजधानी टोक्यो में मंगलवार, 24 मई को QUAD शिखर सम्मेलन होना है, जिसमें भारत-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान की चौकड़ी सदस्य है. लेकिन QUAD शिखर सम्मेलन से एक दिन पहले सुर्खियां बटोरीं Indo-Pacific Economic Framework (इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क) ने जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने टोक्यो में ही लॉन्च किया.
चलिए जानते हैं कि इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) दरअसल क्या है? यह आईडिया कैसे सामने आया? इसमें कौन-कौन से देश शामिल हैं? भारत के सामने इससे जुड़ी कौन सी चिंता है और इसपर चीन की प्रतिक्रिया क्या होगी?
इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) की पहली झलक पिछले साल अक्टूबर में ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा कही गयी बातों में दिखी थी.
इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क का पूर्ण विश्लेषण अभी बाकी है लेकिन यह ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) का एक विकल्प प्रतीत हो रहा है, जिसे अमेरिका ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में साल 2017 में छोड़ दिया था.
IPEF हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच अधिक से अधिक आर्थिक जुड़ाव (टैरिफ और बाजार रणनीति से आगे जाकर) सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा. इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच मुहैया कराना होगा जहां इसमें शामिल देशों अपने व्यक्तिगत मांगों और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बातचीत के लिए साथ आ सके.
IPEF को चीन से दूर एक अलग आर्थिक धुरी के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय के एक अधिकारी ने साफ कहा कि इसका लक्ष्य चीन को अलग-थलग महसूस कराना नहीं है.
अमेरिका के अलावा QUAD के अन्य तीन सदस्य देश- भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान - भी इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर समान रूप से चिंतित हैं.
इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क को अमेरिका आगे लेकर आया है और जापान ने भी इसमें शामिल होने में बहुत रुचि दिखाई है. हालांकि इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क में शामिल होने के लिए भारत ने खुद को प्रतिबद्ध करने से परहेज किया है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस फ्रेमवर्क पर भारत सावधानी के साथ बातचीत करेगा.
साउथ कोरिया, फिलीपींस और सिंगापुर जैसे देशों से भी उम्मीद है कि वे इस इकनॉमिक फ्रेमवर्क पर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाएं. न्यूजीलैंड ने भी इस इकनॉमिक फ्रेमवर्क पर कुछ रुचि जताई है.
दिल्ली स्थित एक नीति संस्थान- रिसर्च एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (RIS) के डॉ प्रबीर डे ने यह बताया है कि भारत को IPEF में शामिल होने के मुद्दे पर सतर्क क्यों होना चाहिए.
"डिसाईफरिंग द इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क" शीर्षक वाले एक पेपर में, उनका तर्क है कि भारत "जोखिम से बचना चाहेगा, क्योंकि यह आसियान के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) का भागीदार देश नहीं है."
डॉ प्रबीर डे उन बड़ी आर्थिक अपेक्षाओं से जुड़े जोखिमों की बात कर रहे हैं, जो IPEF के सदस्य देश के रूप में अमेरिका को भारत से हो सकती हैं.
डॉ प्रबीर डे का यह भी तर्क है कि IPEF में प्रस्तावित कई बात भारत के हितों के अनुरूप नहीं हैं. उदाहरण के लिए, जलवायु और बुनियादी ढांचे के मुद्दे पर अमेरिका द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों पर भारत शायद ही सहमत हो.
इकनॉमिक टाइम्स में प्रणब ढाल सामंत का तर्क है कि व्यापार के लचीलेपन पर "राजनीतिक रूप से संवेदनशील श्रम (लेबर) और पर्यावरण मानक भारत के लिए एक चुनौती साबित हो सकते हैं."
चीन ने स्वाभाविक रूप से टोक्यो में QUAD बैठक से पहले संभावित इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है.
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि IPEF अमेरिका द्वारा 'स्वतंत्रता और खुलेपन' की आड़ में गढ़ा गया है और वाशिंगटन चीन के पड़ोस में माहौल को बदलने के लिए उत्सुक है.
विदेश मंत्री वांग यी ने IPEF को "क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक आधिपत्य बनाए रखने और जानबूझकर खास देशों को बाहर करने के लिए अमेरिका का राजनीतिक उपकरण" कहा है. साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि "एशिया-प्रशांत में कैंप या NATO बनाने, या शीत युद्ध शुरू करने के प्रयास सफल नहीं होंगे".
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