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इंटरनेशनल मीडिया अपनी रिपोर्ट्स में जश्न मना रही है कि ईरान की सरकार ने हिजाब ड्रेस कोड को जबरन लागू करवाने वाली मोरालिटी पुलिस (Iran's morality police) को भंग कर दिया है. लेकिन , ईरानी नागरिकों और ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट्स ने चेतावनी दी है कि यह "फेक न्यूज" केवल आंखों में धूल झोंकने का एक टूल मात्र है और इससे हिजाब पहनने के नियमों पर कोई वास्तविक फर्क नहीं पड़ेगा.
स्टूडेंट एक्टिविस्ट दारीश (बदला हुआ नाम) ने क्विंट से बात करते हुए बताया कि "हम ईरान में इस न्यूज पर ध्यान भी नहीं दे रहे हैं, क्योंकि यह सच नहीं है. शासन डरा हुआ है क्योंकि हम विरोध प्रदर्शन नहीं रोक रहे हैं. उन्होंने (सरकार) सालों हिजाब नहीं पहनने के कारण कई लड़कियों को मार डाला, मोरालिटी पुलिस के अस्तित्व में आने से पहले से ही. उन्होंने इसी हफ्ते दर्जनों छात्रों को गिरफ्तार किया. इसलिए, यह जमीन पर कुछ भी नहीं बदलेगा. ”
एक अन्य छात्र एल्नाज (बदला हुआ नाम) ने क्विंट से कहा कि,
एक अन्य ईरानी महिला ने क्विंट को बताया कि "यह एक धोखा है, एक PR स्टंट है, और पश्चिमी मीडिया इसको सच मान रहा है. वे (सरकार) हिजाब न पहनने पर महिलाओं को रोकना, गिरफ्तार करना और उनका अपहरण करना जारी रखेंगे.'' .
ईरान हिजाब प्रदर्शन के बीच लगातार खबरों में रहीं ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने भी मोरालिटी पुलिस को कथित रूप से भंग करने की खबर को "दुष्प्रचार" बताकर खारिज कर दिया है.
कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुआ है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि मोरालिटी पुलिस को वास्तव में समाप्त कर दिया गया है या नहीं. इंटरनेशनल मीडिया की रिपोर्टों में मोरालिटी पुलिस को भंग करने की खबर शनिवार, 3 दिसंबर को एक धार्मिक सम्मेलन में ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफर मोंटाजेरी की टिप्पणियों पर आधारित थी.
मोहम्मद जफर मोंटाजेरी ने इस कार्यक्रम में कहा था कि "मोरालिटी पुलिस का न्यायपालिका प्रणाली से कोई लेना-देना नहीं है. जिस स्रोत ने इसे अतीत में बनाया था, उसी जगह से इसे बंद कर दिया गया है. बेशक, न्यायपालिका प्रणाली आगे भी पूरे समाज में सामाजिक व्यवहारों की निगरानी जारी रखेगी."
इस अस्पष्ट टिप्पणी को विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय अखबारों ने कवर किया जिसमें दावा किया गया है कि मोरालिटी पुलिस को समाप्त कर दिया गया है. लेकिन कई एक्टिविस्ट्स ने इस ओर सबका ध्यान दिलाया है कि एक अधिकारी की अस्पष्ट टिप्पणियों को आवश्यक रूप से नीति परिवर्तन से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
ईरान की सरकारी राज्य टेलीविजन ने ऐसे किसी खबर से इनकार किया है. रविवार को यहां की सरकार द्वारा संचालित चैनल, अल-आलम ने कहा कि "ईरान के इस्लामिक गणराज्य में किसी भी अधिकारी ने मोरालिटी पुलिस को भंग करने की पुष्टि नहीं की है."
मोरालिटी पुलिस एक इकाई नहीं है, बल्कि कौंसिल ऑफ कल्चरल रेवोल्यूशन के निर्देशों के आधार पर ईरानी पुलिस द्वारा चलाया जाने वाला एक कार्यक्रम है. इसलिए, यदि सड़कों पर इसकी गश्त बंद कर भी दी जाती है, तब भी महिलाओं के लिए हिजाब के शासनादेश को समाप्त किए जाने तक कुछ नहीं बदलेगा.
जहां एक तरफ मोरालिटी पुलिस को भंग किया गया है या नहीं, इस पर भ्रम बना हुआ है, वहीं दूसरी तरफ नागरिक दावा कर रहे हैं कि अगर ऐसा हो भी जाए तो यह ईरान की महिलाओं के लिए बहुत बड़ा बदलाव नहीं लाएगा.
ईरान ह्यूमन राइट्स नाम के NGO के डायरेक्टर महमूद अमीरी-मोघद्दाम ने क्विंट से कहा कि "मोरालिटी पुलिस का भंग होना अगर सच भी हो- जिसकी जानकारी हमें अभी तक नहीं है- इसका कोई असर तबतक नहीं होगा जबतक कि अनिवार्य हिजाब का कानून मौजूद रहेगा."
यह भी गौरतलब है कि ईरान में विद्रोह, जो अक्टूबर में पुलिस हिरासत में महसा अमिनी की मौत के बाद भड़का, अब केवल हिजाब कानूनों या मोरालिटी पुलिस के खिलाफत तक सिमित नहीं है, बल्कि देश के मौजूदा इस्लामी गणराज्य (इस्लामिक रिपब्लिक) को उखाड़ फेंकने की मांग कर रहा है.
मोरालिटी पुलिस के भंग होने की खबरें जश्न मनाने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं. इसके अलावा, अटॉर्नी जनरल की घोषणा की टाइमिंग - ईरान में तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल से ठीक पहले - भी यह आशंका पैदा कर रही है कि इसे लोगों के विरोध से ध्यान हटाने के हथकंडे के रूप में सामने लाया गया है.
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