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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले जो बाइडेन (US president Joe Biden) ने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के लिए सऊदी अरब को अलग-थलग करने या आइसोलेटेड देश/Pariah state बनाने की कसम खाई थी. तीन साल बाद जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में सऊदी अरब के बंदरगाह शहर जेद्दा में उतरे (Joe Biden in Saudi Arabia) जहां सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने उनका स्वागत गर्मजोशी के साथ किया.
जो बाइडेन को शायद अपना चुनावी वादा और लिबरल राष्ट्रपति का टैग याद रहा हो क्योंकि स्वागत के समय उन्होंने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से सीधे हाथ मिलाने से परहेज किया और उनको फिस्ट बंप (मुट्ठी टकराना) दिया. हालांकि इसने भी जितना नुकसान करना था कर दिया.
पत्रकार और वाशिंगटन पोस्ट के एक स्तंभकार जमाल खशोगी ने क्राउन प्रिंस और उनकी नीतियों के बारे में लगातार आलोचनात्मक रूप से लिखा था. उनकी अक्टूबर 2018 में इस्तांबुल में सऊदी के वाणिज्य दूतावास में सऊदी एजेंटों की एक टीम द्वारा हत्या कर दी गई थी.
2021 की शुरुआत में राष्ट्रपति पदभार संभालने के बाद, बाइडेन के प्रशासन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की जांच के निष्कर्ष जारी किए, जिसमें पाया गया कि प्रिंस मोहम्मद ने ही खशोगी की हत्या के ऑपरेशन को मंजूरी दी थी.
जो बाइडेन की यात्रा का लक्ष्य है सऊदी के वास्तविक शासक प्रिंस मोहम्मद के साथ सावधानी से चरण-दर-चरण संबंधों को मजबूत करना. एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैश्विक स्तर पर तेल की बढ़ती कीमतों ने घरेलू स्तर पर बाइडेन के लिए एक चुनौती पेश की है, और इसी कारण तेल के बेशुमार भंडार वाले इस देश (अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश) का महत्व बाइडेन के लिए बहुत अधिक है.
अमेरिका पिछले चार दशकों के सबसे खराब महंगाई संकट के दौर से गुजर रहा है और नवंबर 2022 में अमेरिका में मध्यावधि चुनाव होने हैं. बढ़ती महंगाई बाइडेन की पार्टी- डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रही है.
लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेजी से परिवर्तन आया है. हुआ यह कि खगोशी हत्याकांड को लेकर बाइडेन और प्रिंस मोहम्मद के बीच संबंधों में खटास आ गई है और सऊदी अरब अमेरिका से स्वतंत्र होकर रूस और चीन की ओर देख रहा है.
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार NGO क्राइसिस ग्रुप की दीना एस्फंडियरी का कहना है कि
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के Cinzia Bianco का भी कुछ ऐसा ही मानना है. उन्होंने कहा कि "सऊदी अरब ने अमेरिका से पूछे बिना फैसला लेना सीख लिया है, और विशेष रूप से प्रिंस क्राउन बिन सलमान ने- उन्होंने अमेरिकी प्रशासन की रजामंदी मिले बिना, जीवित रहना सीखा है और शायद इस क्षेत्र के भीतर और कुछ हद तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उभरे हैं"
रूस के साथ सऊदी अरब के हालिया सहयोग बढ़े हैं. रूस की एक सरकारी कंपनी रोसाटॉम ने सऊदी के परमाणु ऊर्जा संयंत्र को बनाने के लिए एक समझौता किया है. दोनों देशों ने "सैन्य और रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए मिलिट्री तैयार करने के तरीकों का पता लगाने" के लिए पिछले साल एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं.
दूसरी तरफ चीन ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब के तेल का सबसे बड़ा आयातक है. सऊदी अरब ने ड्रोन और लड़ाकू विमानों सहित चीनी हथियार भी खरीदे हैं. द गार्डियन की एक रिपोर्ट के अनुसार सैटेलाइट इमेजरी के अनुसार पिछले नवंबर में, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि सऊदी अरब चीन की मदद से अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों का निर्माण कर रहा है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि सऊदी अरब के चीनी और रूसी सौदों के साथ आगे बढ़ने से पहले अमेरिकी प्रशासन राष्ट्रपति बाइडेन की इस यात्रा को हस्तक्षेप करने और आपसी संबंधों को मजबूत करने के एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देख रहा है.
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