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मालदीव राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की जीत ने क्यों बढ़ाई भारत की चिंता?

Maldives President elections 2023: इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह 2018 में पीएम मोदी मौजूद थे.

क्विंट हिंदी
दुनिया
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<div class="paragraphs"><p>मालदीव राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की जीत ने क्यों बढ़ाई भारत की चिंता?</p></div>
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मालदीव राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की जीत ने क्यों बढ़ाई भारत की चिंता?

(फोटो: उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

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मालदीव (Maldives) के राष्ट्रपति चुनाव में प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (PPM) और पीपुल्स नेशनल कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार मोहम्मद मुइज्जू ने जीत हासिल कर ली है. उन्होंने दूसरे दौर के वोटिंग में निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को मात दी है. हालांकि, मोहम्मद मुइज्जू की जीत भारत के लिए एक झटके के तौर पर देखी जा रही है. लेकिन सवाल है कि आखिर क्यों? आइये हम आपको समझाते हैं.

भारत के लिए क्यों अहम था चुनाव?

दरअसल, सोलिह को भारत का समर्थक माना जाता था, जबकि राजधानी माले के मेयर मुइज्जू ने चीन के साथ मजबूत संबंधों पर जोर दिया.

दिलचस्प बात यह है कि चुनाव एक आभासी जनमत संग्रह था, जिस पर क्षेत्रीय शक्ति - भारत या चीन - का हिंद महासागर द्वीपसमूह राष्ट्र में सबसे बड़ा प्रभाव होगा.

सोलिह दूसरे पांच साल के कार्यकाल की मांग कर रहे थे और उन्होंने सत्ता में रहने के दौरान "भारत पहले" नीति का समर्थन किया और अपने शक्तिशाली पड़ोसी के साथ संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि इसके विपरीत मुइज्जू का समर्थन करने वाले गठबंधन ने "भारत बाहर" अभियान चलाया.

भारत- मालदीव के संबंध कैसे?

मालदीव की राजनीति के साथ भारत का अनुभव मिला-जुला रहा है. भारत के लिए सोलिह की सरकार अब तक सबसे अनुकूल रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भारत ने तीन दशकों तक अब्दुल गयूम के साथ मिलकर काम किया. जब 2008 में मोहम्मद नशीद सत्ता में आए, तो तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने नई दिल्ली के समर्थन का संकेत देते हुए उनके शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया.

हालांकि, शुरुआत में भारत और नशीद के बीच मित्रता थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने चीन से दोस्ती करना शुरू कर दिया. मालदीव सरकार ने 2012 में मालदीव हवाई अड्डे के लिए जीएमआर अनुबंध रद्द कर दिया, जो संबंधों के लिए एक बड़ा झटका था.

2013 में यामीन के सत्ता में आने के बाद, उन्होंने चीन को और अधिक आक्रामक तरीके से पेश किया. उनके नेतृत्व में, मालदीव राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड पहल में शामिल हुआ.

जब भारत और पश्चिमी ऋणदाता मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों के कारण यामीन के प्रशासन को ऋण देने के इच्छुक नहीं थे, तो उन्होंने बीजिंग का रुख किया, जिसने बिना किसी शर्त के धन की पेशकश की.

इसलिए, जब सोलिह ने 2018 का चुनाव जीता, तो दिल्ली ने राहत की सांस ली. शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालदीव गए थे.

पिछले पांच वर्षों में, भारत और मालदीव के संबंध मजबूत हुए हैं. इसके परिणामस्वरूप भारत ने विभिन्न मौकों पर- टीके प्रदान करने से लेकर बुनियादी ढांचे के निर्माण तक ऋण राहत सहायता तक- मालदीव की सहायत की है.

भारत ने मालदीव की कब-कब की सहायता?

भारतीय अधिकारियों के अनुसार, जनवरी 2020 में भारत द्वारा खसरे के टीके की 30,000 खुराक तुरंत भेजा और कोविड-19 महामारी के दौरान तुरंत और व्यापक सहायता ने मालदीव के "प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता" होने की भारत की साख को मजबूत किया है.

भारत 2004 की सुनामी के साथ-साथ दिसंबर 2014 में माले में जल संकट के दौरान मालदीव की सहायता करने वाला पहला देश था.

भारत- मालदीव के बीच कैसा है व्यापार संबंध?

मालदीव में भारत की हालिया परियोजनाओं में 34 द्वीपों में पानी और स्वच्छता, अड्डू विकास परियोजना के तहत सड़कें और भूमि सुधार, एक कैंसर अस्पताल, एक बंदरगाह परियोजना, एक क्रिकेट स्टेडियम, दो हवाई अड्डे के विकास परियोजनाएं, पुलों, पक्की सड़कों के साथ ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना, सड़कें, सामाजिक आवास परियोजनाएं, एक मस्जिद का नवीनीकरण, पुलिस के लिए राष्ट्रीय कॉलेज का निर्माण, आदि शामिल हैं.

अनुमान बताते हैं कि 2018 से 2022 के बीच, भारतीय सहायता 1,100 करोड़ रुपये से अधिक थी, जो पिछले पांच साल की अवधि (लगभग 500 करोड़ रुपये) से दोगुनी से भी अधिक थी.

दोनों देशों के बीच पिछले साल लगभग 50 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ, जिसमें से भारत ने 49.5 करोड़ रुपये की वस्तुओं का निर्यात किया - जिसमें चावल, मसाले, फल, सब्जियां और पोल्ट्री उत्पाद से लेकर दवाएं और सीमेंट तक दैनिक आवश्यक वस्तुएं शामिल थीं. भारत मुख्य रूप से स्क्रैप धातुओं का आयात करता है, और समुद्री भोजन उत्पादों की खोज कर रहा है.

मालदीव की भारत के पश्चिमी तट से निकटता और हिंद महासागर से होकर गुजरने वाले वाणिज्यिक समुद्री मार्गों के केंद्र में इसकी स्थिति इसे भारत के लिए रणनीतिक महत्व से जोड़ती है.

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26/11 हमले के बाद से तटीय निगरानी और समुद्री सहयोग के लिए भारत और मालदीव के बीच रक्षा संबंध बढ़े हैं. भारत ने पिछले 10 वर्षों में 1,500 से अधिक मालदीव के रक्षा और सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षित किया है, जो उनकी रक्षा प्रशिक्षण आवश्यकताओं का लगभग 70% पूरा करता है.

भारत ने 2010 और 2013 में दो हेलीकॉप्टर और 2020 में एक छोटा विमान भी मालदीव को गिफ्ट में दिया. इससे यह दावा किया गया है कि विमान के संचालन और रखरखाव के लिए भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव में तैनात हैं, हालांकि दिल्ली ने कहा है कि विमान रेस्क्यू, चिकित्सा निकासी और बचाव मिशन के लिए हैं.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एसोसिएट फेलो गुलबिन सुल्ताना ने इस महीने की शुरुआत में IDSA वेबसाइट पर एक लेख में लिखा,

"एक सहयोगी के रूप में भारत की भूमिका की कई लोगों ने सराहना की है. मालदीव का एक बड़ा वर्ग, विशेष रूप से युवा, प्रगतिशील गठबंधन द्वारा प्रचारित ‘इंडिया आउट’ आंदोलन की ओर आकर्षित हो रहे हैं. ये इस साल के चुनाव अभियान में भारत एक एजेंडा है."

मुइज्जू ने बढ़ाई भारत की चिंता

मोहम्मद मुइज्जू को यामीन के प्रॉक्सी के तौर पर देखा जा रहा है. और उनके बयानों ने भारत की चिंता बढ़ा दी है. उन्होंने धमकी दी है कि यदि वे मालदीव और उसके लोगों के लिए फायदेमंद नहीं हैं तो विदेशी देशों के साथ समझौते को समाप्त कर देंगे और विदेशी कंपनियों को निष्कासित कर देंगे. जानकारों का मानना है कि मुइज्जू के ये सभी संकेत भारत की ओर हैं.

उन्होंने कहा है कि मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी "कूटनीति के सुंदर सिद्धांतों" के माध्यम से उनकी सरकार के पहले दिन से शुरू होगी. मुइज्जू ने चीनी वित्त पोषित परियोजनाओं के लिए यामीन की सराहना की है.

राष्ट्रपति यामीन की सरकार ने चीन के साथ बहुत करीबी रिश्ते बनाए रखे हैं. यह इस देश के सर्वोत्तम हित में है. उस देश ने हमारी सीमाएं नहीं पार कीं. उन्होंने हमारी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं किया.
मोहम्मद मुइज्जू, पीपुल्स नेशनल कांग्रेस गठबंधन के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार

मुइज्जू चीन समर्थक पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के समर्थन से चुनाव मैदान में उतरे थे, जिन्हें इस साल अगस्त में भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया था.

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