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म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से शुरू हुए प्रदर्शनों को 1 अप्रैल को दो महीने हो गए. सेना ने 1 फरवरी को स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची और उनकी पार्टी NLD के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया था. लोगों ने सैन्य शासन के विरोध में प्रदर्शन शुरू किए तो सेना बर्बरता से उन्हें कुचलने की कोशिश की. अब तक 520 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और सेना गोलियों से लेकर एयर स्ट्राइक सबका इस्तेमाल कर रही है. लेकिन इतनी क्रूरता के बाद भी प्रदर्शन जस के तस हैं.
म्यांमार में चल रहे प्रदर्शन ज्यादातर खुद ही हो रहे हैं. कहने का मतलब है कि लोग खुद ही सैन्य शासन के खिलाफ गुस्सा जाहिर करने के लिए हर दिन घर से बाहर निकल रहे हैं. 500 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, सेना जनाजों तक पर एयर स्ट्राइक करने से नहीं कतरा रही है और कोई उम्मीद नहीं दिखती है, फिर भी लोग इस उम्मीद को छोड़ना नहीं चाहते हैं.
म्यांमार की मशहूर एक्टिविस्ट थिंजार शुनलेई ने एसोसिएटेड प्रेस (AP) से कहा, "ये आंदोलन बिना नेता का है. लोग खुद से सड़कों पर आ रहे हैं और अपनी मर्जी से."
म्यांमार में एक्टिविस्ट समूह, यूनियन और मानवाधिकार संगठन तख्तापलट के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष बन कर खड़े हुए हैं. सू ची की पार्टी NLD के नेता भी इन प्रदर्शनों को आयोजित करने में भूमिका निभा रहे हैं.
स्वास्थ्य संबंधी कर्मचारियों ने विरोध जताने के लिए अपना तरीका ढूंढ लिया है. वो लाल रिबन बांध रहे हैं और अपने साथियों से सरकारी अस्पतालों और मेडिकल फैसिलिटी में काम नहीं करने की अपील कर रहे हैं.
सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों में यूनियनों, छात्र संगठनों और अलग-अलग पेशों से जुड़े समूहों की मौजूदगी देखी जा रही है. AP की रिपोर्ट कहती है कि म्यांमार के सबसे बड़े शहर यांगून के निवासी रात में विरोध जताने के लिए बर्तन बजाते हैं.
बेशुमार खतरों के बावजूद रोजाना हो रहे प्रदर्शनों में म्यांमार की महिलाएं बहादुरी से सैन्य ताकत का सामना कर रही हैं. महिलाओं की हिस्सेदारी इन प्रदर्शनों में इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सेना ने जिस नेता से डर कर तख्तापलट किया है, वो भी एक महिला ही है. महिलाएं अब देश के भविष्य के लिए लड़ रही हैं.
म्यांमार का माहौल पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाला रहा है और ऐसे में आंग सान सू ची ने उसका नेतृत्व अपने हाथों में लेकर सालों के दमन को खत्म कर दिया था.
कन्फेडरशन ऑफ ट्रेड यूनियन म्यांमार की असिस्टेंट जनरल सेक्रेटार्ट मा संदर ने न्यू यॉर्क टाइम्स से कहा, "हम इस क्रांति में कुछ हीरो खो सकते हैं."
प्रदर्शन के शुरुआती हफ्तों में महिला मेडिकल वॉलंटियर के समूह सड़कों पर घूम-घूमकर घायलों का इलाज करते थे. महिलाओं ने सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट को मजबूत सहारा दिया है.
म्यांमार के जवान लोग इस आंदोलन का दूसरा मजबूत कंधा बनकर उभरे हैं. ये वो लोग हैं, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था और उदार राजनीति के साये में बड़े हुए हैं. इन लोगों ने निरंकुश सैन्य शासन नहीं देखा था, बस उसकी कहानियां सुनी थीं और अब जब वही समय दोबारा लाने की कोशिश की गईं, तो इन्होंने विद्रोह कर दिया.
20 से 30 साल की उम्र के जवानों का सत्तावादी शासकों और तंत्र के खिलाफ खड़े होने का इतिहास अब लंबा हो चला है. 2011 में अरब स्प्रिंग से लेकर हॉन्गकॉन्ग, रूस और बेलारूस तक में इसी वर्ग ने प्रदर्शनों में आगे खड़े होकर सत्ता से टक्कर ली है.
म्यांमार का आंदोलन सिर्फ महिलाओं और यूथ तक सीमित नहीं है. इस आंदोलन का कोई नेतृत्व नहीं कर रहा है, इसलिए हर गली-मोहल्ले से विद्रोह खड़ा हो रहा है.
म्यांमार के लोगों ने दशकों तक सैन्य शासन झेला है. लोकतांत्रिक व्यवस्था बनने के बाद लोगों में आजादी और रोजगार की उम्मीद जगी थी, जिसे सेना अब तोड़ना चाहती है. हालांकि, म्यांमार का लोकतंत्र महज 10 साल पुराना है और ये एक सपना लगता है, लेकिन लोग शायद इस सपने को खोना नहीं चाहते हैं. यही वो सपना है जो उन्हें हर दिन सड़कों पर जाने की ताकत दे रहा है.
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