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Pegasus नाम के पचड़े की जड़ इजरायल का NSO ग्रुप कठघरे में, मिलेगी सजा?

NSO Group पर चर्चा बढ़ने के साथ ही इजरायली सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है

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<div class="paragraphs"><p>NSO Group पर चर्चा बढ़ने के साथ ही इजरायली सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है</p></div>
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NSO Group पर चर्चा बढ़ने के साथ ही इजरायली सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है

(फोटो: Quint)

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इजरायली कंपनी NSO ग्रुप एक बार फिर खबरों में है. वजह उसके स्पाइवेयर पेगासस (Pegasus) के जरिए दुनियाभर में 50,000 से ज्यादा लोगों की जासूसी या संभावित सर्विलांस की योजना है. फ्रांस की संस्था Forbidden Stories और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने साथ मिलकर ये जानकारी जुटाई और फिर पत्रकारों के इंटरनेशनल कंसोर्टियम के सहयोग से 'पेगासस प्रोजेक्ट' (Pegasus Project) को अंजाम दिया है. NSO Group का इतिहास हमेशा से विवादित रहा है. इतना विवादित कि कंपनी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है और वो समय-समय पर अपना नाम तक बदल लेती है.

जिन लोगों की जासूसी हुई है या योजना बनाई गई थी, उनमें पत्रकार, नेता, मानवाधिकार कार्यकर्त्ता जैसे लोग शामिल हैं. दस देशों में पेगासस का इस्तेमाल हुआ है. वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की मौत से पहले उनकी करीबी महिलाओं पर पेगासस के इस्तेमाल की खबरें हैं.

NSO ग्रुप पर चर्चा बढ़ने के साथ ही इजरायली सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है. सरकार की आलोचना हो रही है कि वो कंपनी को सत्तावादी सरकारों के साथ व्यापार करने से नहीं रोक रही है. इन सरकारों पर कंपनी का पेगासस सॉफ्टवेयर अपने विरोधियों पर इस्तेमाल करने का आरोप है.

NSO ग्रुप क्या है?

ये इजरायल स्थित एक कंपनी है जो सरकारी एजेंसियों को सर्विलांस सॉफ्टवेयर बेचती है. कंपनी पेगासस नाम का स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर बनाती है, जिसका मकसद कंपनी खुद अपराधी और आतंकियों को पकड़ने में मदद का बताती है.

ये सॉफ्टवेयर चुपचाप स्मार्टफोन पर चलता रहता है और एजेंसियों को यूजर की सभी डिटेल मिलती रहती है.

NSO को शालेव हूलियो ने ओमरी लावी के साथ 2010 में शुरू किया था. इससे पहले लावी और हूलियो साथ में एक-दो कंपनियां और खोल चुके थे लेकिन वो सफल नहीं हुई थीं. लावी और हूलियो साइबर-इंटेलिजेंस के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे और जैसा कि हूलियो दावा करते हैं, उन्हें इंटेलिजेंस एजेंसियों ने संपर्क किया था और मेसेज एन्क्रिप्शन को बाईपास करने की उनकी तकनीक में दिलचस्पी दिखाई थी.

साइबर-इंटेलिजेंस में कदम रखने के लिए लावी और हूलियो ने इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद नीव कार्मी से हाथ मिलाया. और इस तरह तैयार हुआ था NSO ग्रुप.

पेगासस क्या है?

पेगासस NSO ग्रुप का सबसे सफल और लोकप्रिय सॉफ्टवेयर है. ये एक स्पाईवेयर है, जिसके जरिए हैकर फोन के कैमरे, माइक्रोफोन, फाइल, फोटो और यहां तक कि एन्क्रिप्टेड मैसेज और ईमेल तक पहुंच सकता है.

पेगासस पूरे फोन तक पहुंच सकता है और ये एंड्रॉयड और आईओएस दोनों तरह के डिवाइस को हैक कर सकता है. पैगेसस डिवाइस के अंदर रहता है और चुपचाप हैकर को जानकारी भेजता रहता है. ईमेल और टेक्स्ट मैसेज के जरिए भी पैगेसस को किसी के फोन में भेज सकते हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाया है कि NSO पेगासस स्पाइवेयर को एक लिंक के जरिए किसी फोन तक भेज सकते हैं. इस लिंक को खोलने या नहीं भी खोलने से पेगासस फोन को संक्रमित कर सकता है. इसे 'जीरो क्लिक' हमला कहा जाता है. हमले के इसी तरीके ने NSO ग्रुप को अपने प्रतिद्वंदियों पर बढ़त दी थी.
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ऊंची है NSO की पहुंच

मिडिल ईस्ट में इजरायल टेक जायंट है, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता और न ही इस पर कोई विवाद है. समय के साथ इस क्षेत्र के मुद्दे बदले और रिश्ते भी. 2020 में कई अरब देशों ने इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य किए थे लेकिन उससे पहले तक सऊदी अरब और UAE जैसे देशों के लिए इजरायल एक क्षेत्रीय दुश्मन था.

लेकिन ये सब शायद बाहर-बाहर का खेल था. अंदर कुछ और ही चल रहा था. UAE और सऊदी अरब दोनों ही 2020 से पहले पेगासस सॉफ्टवेयर की डील कर चुके थे. मतलब इजरायल से रिश्ते सुधरने से पहले ही UAE और इजरायली कंपनी के बीच ट्रेड चल रहा था. सऊदी ने रिश्ते अभी भी नहीं सुधारे हैं लेकिन उसे इजरायल के साथ व्यापार करने में कोई दिक्कत नहीं थी.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, NSO और सऊदी के बीच 55 मिलियन डॉलर की डील हुई थी. कहा जाता है कि तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने टेक्नोलॉजी को पड़ोसी देशों से रिश्ते बनाने के लिए इस्तेमाल किया था.

क्योंकि पेगासस एक स्पाइवेयर है, जिसका गलत इस्तेमाल निजता के हनन के साथ-साथ भयानक हो सकता है, इसलिए इसके एक्सपोर्ट के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है. ये लाइसेंस इजरायल का रक्षा मंत्रालय देता है. तो इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि NSO के संबंध इजरायली सरकार में किस स्तर के हैं कि वो UAE और सऊदी अरब के साथ डील कर पा रहा था.

क्या NSO को जवाबदेह ठहराया जा सकता है?

साल 2019 में WhatsaApp ने बताया था कि पेगासस ने प्लेटफॉर्म की एक कमी का फायदा उठाकर दुनियाभर में 1400 पत्रकार, एक्टिविस्ट और वकीलों के फोन को हैक किया है. इनमें से 121 नाम भारतीय थे.

WhatsApp ने NSO ग्रुप पर अमेरिका में केस किया था. वो केस अभी भी चल रहा है. NSO ने इसे रद्द कराने की कोशिश की थी लेकिन फैसला उसके हक में नहीं हुआ है. NSO का तर्क था कि उसके कस्टमर विदेशी संप्रभु सरकारें हैं और विदेश की एक निजी संस्था को अमेरिकी कोर्ट में सजा नहीं हो सकती.

इस पर कोर्ट ने कहा था कि सजा नहीं मिलने का नियम सिर्फ अमेरिकी नागरिकों पर लागू होता है और NSO खुद में विदेशी सरकार नहीं है. NSO का एक और तर्क था कि वो टेक्नोलॉजी का सप्लायर है, ऑपरेटर नहीं. कोर्ट का जवाब था कि कंपनी ने तकनीकी सपोर्ट देकर 'जानबूझकर ये काम किया है.'

अगर NSO कोर्ट केस हार भी जाता है तो भी उसके पास कानूनी रूप से कई और विकल्प मौजूद रहेंगे. NSO ग्रुप की जवाबदेही को लेकर WhatsApp के सीईओ विल कैथकार्ट ने 2019 में कहा था कि 'ये काम सरकारों का है.'

इजरायल की सरकार से NSO ग्रुप को भरपूर समर्थन मिलता है, इसमें कोई शक नहीं है. ऐसे में अमेरिका या पश्चिम के शक्तिशाली देशों के हस्तक्षेप के बिना कुछ होना शायद मुश्किल है. पेगासस प्रोजेक्ट में सामने आया है कि जमाल खशोगी की पत्नी और मंगेतर के फोन पेगासस से संक्रमित हुए थे. खशोगी की हत्या के लिए अमेरिकी इंटेलिजेंस ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को दोषी ठहराया था. अब खशोगी की दो सबसे करीबी महिलाओं के फोन स्पाइवेयर से संक्रमित होना कई सवाल खड़े करता है.

NSO ग्रुप की जवाबदेही के लिए सरकारों को इजरायल पर दबाव बनाना पड़ेगा. नाजुक गठबंधन की नई इजरायली सरकार और अमेरिका में डेमोक्रेट शासन होने से ऐसा होने की संभावना बढ़ती हैं.

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