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पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) में फिर एक बार सत्ता परिवर्तन हुआ है और भारत की नजर उस ओर घूम गयी है. पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' (Pushpa Kamal Dahal) ने सोमवार, 26 दिसंबर को काठमांडू में नेपाल के नए प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली. 'प्रचंड' पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के समर्थन से ही तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं. 2020 में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में ही नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद सामने आया था. कहा गया कि ओली चीन की गोद में बैठ कर फैसले ले रहे थे.
सवाल है कि भारत के करीब दिखने वाले शेर बहादुर देउबा को हटाकर सत्ता संभालने वाले पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' का पीएम बनना भारत के लिए कैसी खबर है, उससे नेपाल-भारत संबंध पर क्या असर पड़ सकता है? इस सवाल के जवाब के पहले हम आपको बताते हैं कि पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' किन राजनीतिक समीकरणों को साधकर पीएम बने?
पिछले महीने हुए चुनावों में पूर्व पीएम देउबा की पार्टी- नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. हालांकि बहुमत के निशान से पीछे रहने के कारण उसे सरकार बनाने के लिए गठबंधन का सहारा जरूरी था.
हालांकि, जब देउबा को लगा कि उन्होंने पीएम बनने लायक बहुमत जुटा लिया है, प्रचंड ने अपना दांव चल दिया. उन्होंने देउबा से समर्थन वापस लेते हुए केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने का एलान कर दिया. कुछ अन्य पार्टियां भी इस नए गठबंधन में शामिल हो गईं. प्रचंड और ओली के बीच सहमति इस बात पर बनी है कि पहले ढाई साल पीएम प्रचंड रहेंगे और बाकी के ढाई साल ओली.
याद रहे कि पिछले साल तक पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और ओली एक ही पार्टी में थे और ओली पीएम थे. लेकिन मतभेद होने के बाद पार्टी टूटी और ओली की कुर्सी चली गयी. अब दोस्त से दुश्मन बने ये दोनों नेता फिर से 'दोस्त' बन गए थे.
पुष्पा कमल दहल "प्रचंड" उन माओवादी विद्रोहियों के पूर्व नेता हैं जिन्होंने नेपाल में राजशाही के खिलाफ गृहयुद्ध छेड़ दिया था. प्रचंड का जन्म 11 दिसंबर, 1954 को नेपाल के पोखरा के पास कास्की जिले के धीकुरपोखरी में हुआ था.
प्रचंड के प्रधान मंत्री बनने का भारत-नेपाल संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. इससे पहले ही प्रचंड और ओली का सीमा संबंधी विवाद पर नई दिल्ली के साथ अनबन हो चुकी है.
1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि भारत और नेपाल के बीच विशेष संबंधों का आधार है. हाल के सालों में प्रचंड ने कहा है कि भारत और नेपाल को द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए "इतिहास द्वारा छोड़े गए" कुछ मुद्दों को कूटनीतिक/डिप्लोमेटिक रूप से संबोधित करने की आवश्यकता है.
प्रचंड के समर्थक ओली भी चीन समर्थक रुख के लिए जाने जाते हैं. प्रधान मंत्री के रूप में ओली ने पिछले साल दावा किया था कि उनकी सरकार ने जब रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीन भारतीय क्षेत्रों को अपने मैप में शामिल किया तो उसके बाद से उन्हें सत्ता से बाहर करने के प्रयास किए गए.
बता दें कि भारत की संसद ने ने 2020 में सर्वसम्मति से लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों पर नेपाल के दावों को "अस्थिर" करने वाला "कृत्रिम विस्तार" बताया था.
प्रचंड को नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर बधाई दी है. याद रखें कि जब 2016 में प्रचंड दूसरी बार पीएम बने थे तो उन्होंने सबसे पहले भारत की ही यात्रा की थी. क्या इस बार प्रचंड भारत के साथ वो ही गर्मजोशी दिखाने की कोशिश करेंगे या चीन को नेपाल में अपना दोस्त मिल गया है? इसपर भारत की नजर रहेगी.
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