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रूस (Russia) को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद यानी UNHRC से बाहर कर दिया गया है. बूचा में हुए हमले के बाद गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक बुलाई गई जिसमें 93 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 24 सदस्यों ने रूस को बाहर निकालने के प्रस्ताव का विरोध किया और 58 सदस्यों ने मतदान नहीं किया जिसमें भारत भी शामिल हैं.
इसके बाद यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने ट्वीट किया, "मानव अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र के निकायों में युद्ध अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है."
अमेरिका ने भी संयुक्त राष्ट्र के इस फैसले की सराहना की है और इस कदम को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सार्थक कदम बताया. राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि अमेरिका ने इस वोट को आगे बढ़ाने के लिए दुनिया भर में अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ मिलकर काम किया क्योंकि रूस मानवाधिकारों का घोर और सिलसिलेवार उल्लंघन कर रहा है.
रूस के उप राजदूत गेन्नेडी कुजमिन ने मतदान के बाद कहा कि रूस इस कार्रवाई से पहले ही परिषद से हट गया था, जाहिर तौर पर इसी परिणाम की उम्मीद से.
यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख राजदूत ओलाफ स्कोग ने कहा, "इस असेंबली ने आज जो दुर्लभ निर्णय लिया है, वह जवाबदेही का एक मजबूत संकेत भेजता है और उम्मीद है कि मानवाधिकारों के अधिक उल्लंघन को रोकने और हतोत्साहित करने में मदद करेगा."
UNHRC से रूस को अलग करने से साफ तौर पर यूक्रेन के खिलाफ छिड़ी जंग में कोई रुकावट पैदा नहीं होगी. UNHRC से रूस का निलंबन केवल सांकेतिक रूप से महत्वपूर्ण है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मोहम्मद जीशान क्विंट हिंदी से बातचीत में कहते हैं, "यह एक बहुत ही असामान्य स्थिति है क्योंकि रूस यूएनएचआरसी से निलंबित होने वाला दूसरा देश है. इससे पहले लीबिया को साल 2011 में निलंबित किया गया था. अब क्योंकि रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थायी सदस्य है, इसलिए यह एक तरह से हाई प्रोफाइल निलंबन है."
मोहम्मद जीशान कहते हैं, "फिर भी, तथ्य यह है कि इतने सारे देशों ने रूस को यूएनएचआरसी से निलंबित करने के लिए मतदान किया है, यह वैश्विक मंच पर रूस के बढ़ते आइसोलेशन का संकेत है. लेकिन कई देशों ने इस वोटिंग से दूरी बनाई है, ये बताता है कि वैश्विक राजनीति अलग अलग धड़ों में विभाजित हो रही है."
इस निलंबन के बाद रूसी प्रतिनिधियों को यूएनएचआरसी की बैठकों में बोलने और मतदान करने का अधिकार नहीं होगा. हालांकि, रूस के राजनयिक अभी भी इसकी बहस में भाग ले सकेंगे.
दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्टडीज और फॉरेन पॉलिसी के वाइस प्रेसिडेंट प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया कि इस निलंबन का रूस की विदेश नीति पर क्या असर पड़ेगा ये कहना मुश्किल है लेकिन जब रूस अपने आप को ग्लोबल पावर की तरह प्रस्तुत करता है तो उसका इस तरह से निलंबित होना अच्छा अंदेशा नहीं है.
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