संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने गुरुवार 07 अप्रैल को यूक्रेन (Ukraine) में रूसी (Russian) सैनिकों पर हमला करके "मानव अधिकारों के घोर और व्यवस्थित उल्लंघन और हनन" की रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human Rights Council) से रूस को निलंबित कर दिया है.
यह उन आरोपों के बीच हुआ है कि रूस के सैनिकों ने यूक्रेन की राजधानी के आसपास के इलाको से पीछे हटने के दौरान वहां के आम नागरिकों को बड़ी तादात में मार डाला.
यू.एस. के नेतृत्व वाले पुश ने इसके पक्ष में 93 वोट हासिल किए, जबकि 24 देशों ने वोट ना में किया और 58 देशों ने मतदान नहीं किया. रूस को 47-सदस्यीय परिषद से निलंबित करने के लिए मतदान सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की जरुरत थी.
इस संक्षिप्त प्रस्ताव ने "यूक्रेन में चल रहे मानवाधिकारों और मानवीय संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से मानवाधिकारों के उल्लंघन और रूसी संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के उल्लंघन की रिपोर्ट पर, जिसमें घोर और व्यवस्थित उल्लंघन और मानवाधिकारों का दुरुपयोग शामिल है."
यह रूस को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पहला ऐसा स्थायी सदस्य बनाता है जिसकी सदस्यता किसी भी संयुक्त राष्ट्र बॉडी से रद्द कर दी गई है.
इसके बाद यूक्रेन की ओर से बयान भी आया है, "मानव अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र निकायों में युद्ध अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है. यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने ट्विटर पर कहा, सभी सदस्य देशों का आभारी हूं जिन्होंने यूएनजीए के प्रासंगिक प्रस्ताव का समर्थन किया और इतिहास के सही पक्ष को चुना.
वोटिंग से पहले, यूक्रेन के संयुक्त राष्ट्र के राजदूत, सर्गेई किस्लिट्स्या ने यूएनजीए के सदस्यों से "यस' का बटन दबाने और मानवाधिकार परिषद और दुनिया भर में और यूक्रेन में कई लोगों की जान बचाने का आग्रह किया था."
रूस ने ज्यादातर देशों से "नो" में वोट करने का आह्वान किया था. यह कहते हुए कि मतदान न करना या ना में करना एक अमित्र कार्य माना जाएगा और द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगा. भारत ने इस बार भी वोटिंग से खुद को अलग रखा और वोट नहीं करने का फैसला किया.
ऐसे निलंबन दुर्लभ हैं. लीबिया को 2011 में तत्कालीन नेता मुअम्मर गद्दाफी के प्रति वफादार बलों द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा के कारण निलंबित कर दिया गया था.
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