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रूस ने 15 नवंबर को एक एंटीसैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण (Russian anti-satellite test) किया और अपने ही एक पुराने सैटेलाइट Kosmos 1408 को नष्ट कर दिया है. रूस के इस स्पेस एडवेंचर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश पैदा हो गया है, क्योंकि सैटेलाइट के टूटने के सामने आये मलबे (debris) से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद सैटेलाइट्स के लिए खतरा पैदा हो गया है.
रूस के इस एंटीसैटेलाइट मिसाइल टेस्ट के कारण क्या हुआ, एंटीसैटेलाइट मिसाइल होता क्या है, किन देशों के पास है यह तकनीक और स्पेस को कचरापेटी समझने की गलती हम पर कैसे भारी पड़ सकती है- आपके ऐसे तमाम सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं.
सोवियत रूस कालीन जासूसी सैटेलाइट के मलबे का कुछ हिस्सा खतरनाक रूप से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के करीब गया, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर लौटने में सक्षम 2 अंतरिक्ष यानों - एक SpaceX क्रू ड्रैगन कैप्सूल और एक रूसी सोयुज कैप्सूल- के अंदर घंटों तक आश्रय लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.
NASA के प्रशासक बिल नेल्सन ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उसके पास यह "विश्वास करने का कारण" है कि Roscosmos के अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि रूस का रक्षा मंत्रालय एक एंटीसैटेलाइट मिसाइल लॉन्च करने की योजना बना रहा था.
गौरतलब है की Roscosmos रूस की स्पेस एजेंसी है और वो NASA के साथ संयुक्त रूप से अंतरिक्ष स्टेशन का प्रबंधन करते हैं और अंदर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों की रक्षा करते हैं. इन दोनों के बीच संबंध बड़े पैमाने पर वाशिंगटन और मॉस्को के बीच सैन्य तनाव से अछूता रहा है.
एंटी-सैटेलाइट हथियार (Anti-satellite weapon) को आमतौर पर ASATs के रूप में जाना जाता है और वह कोई भी हथियार है जो अपने ऑर्बिट में परिक्रमा करते सैटेलाइट को अस्थायी रूप से खराब या स्थायी रूप से नष्ट कर सकता है.
एंटी-सैटेलाइट हथियार 3 तरह के होते हैं-
रूस ने 15 नवंबर को जिस मिसाइल का परीक्षण किया है उसे ascent kinetic anti-satellite weapon के रूप में जाना जाता है. इन्हे आमतौर पर जमीन से या हवाई जहाज से लॉन्च किया जाता है और ये तेज गति से सैटेलाइट्स को मारकर नष्ट कर देते हैं.
दूसरा प्रकार के एंटी-सैटेलाइट हथियार को co-orbital anti-satellite weapons कहा जाता है. इनको पहले ऑर्बिट में लॉन्च किया जाता है और फिर स्पेस में मौजूद सैटेलाइट से टकराने के लिए दिशा बदल दी जाती है.
तीसरा प्रकार है non-kinetic anti-satellite weapons. इसमें सैटेलाइट्स से भौतिक रूप से टकराए बिना उन्हें बाधित करने या नष्ट करने के लिए लेजर जैसी तकनीक का उपयोग करते हैं.
अंतरिक्ष एजेंसियां 1960 के दशक से एंटी-सैटेलाइट हथियारों का विकास और परीक्षण कर रही हैं. आज तक दुनिया के केवल 4 देशों के पास यह क्षमता आ सकी है. इसमें अमेरिका, रूस, चीन और भारत शामिल हैं जिन्होंने ऑर्बिट में मौजूद सैटेलाइट पर हमला करने की क्षमता का प्रदर्शन किया.
2019 में मिशन शक्ति नामक एक ऑपरेशन के दौरान भारत ने अपने एंटी-सैटेलाइट हथियार का परीक्षण किया था. इस मिसाइल ने मॉस्को या बीजिंग की तुलना में निचली कक्षा में एक परीक्षण सैटेलाइट को मार गिराया था, जिससे 200 से अधिक ट्रैक करने योग्य मलबे का निर्माण हुआ.
एंटी-सैटेलाइट तकनीक स्पेस प्रदूषण का एक कारण बनता जा रहा है. तमाम काबिल देश चाहे जिस कारण से इनका परिक्षण करें, इसके कारण उत्पन्न अंतरिक्ष का मलबा एक गंभीर समस्या है.
इसकी वजह है कि अंतरिक्ष का मलबा अक्सर पृथ्वी के चारों ओर 17,000 मील प्रति घंटे से अधिक तेजी से चक्कर काटता है. इस गति से मलबे का टुकड़ा भी किसी भी अंतरिक्ष यान या सैटेलाइट से टकराकर नष्ट करने की क्षमता रखता है. इसका उदहारण 1980 के दशक में दुनिया देख चुकी है जब एक मलबे से टकराने के परिणामस्वरूप एक सोवियत रूस का सैटेलाइट टूट गया.
इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि मलबे से अंतरिक्ष मिशनों के लिए खतरा पैदा हो गया है. जुलाई 2021 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के रोबोटिक आर्म्स में से एक मलबे के एक टुकड़े से टकरा गया. इससे रोबोटिक आर्म में 0.2-इंच (0.5 सेमी) का छेद हो गया.
अंतरिक्ष का मलबा पृथ्वी पर भी लोगों के लिए एक बड़ा खतरा है. GPS, संचार और मौसम संबंधित डेटा के माध्यम से सैटेलाइट वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यदि इस तरह की सेवाओं को बाधित किया गया तो हमें इसका बड़ा आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
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