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Sri Lanka में 'गदर' के लिए जिम्मेदार- दो किरदार और एक परिवार

Sri Lanka Crisis: गोटाबाया राजपक्षे बिना इस्तीफा दिए मालदीव भागे, विक्रमसिंघे के PM ऑफिस पर विद्रोहियों का कब्जा

आशुतोष कुमार सिंह
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Sri Lanka: पीएम ऑफिस पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा</p></div>
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Sri Lanka: पीएम ऑफिस पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा

(फोटो- पीटीआई)

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भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में अराजकता (Sri Lanka Crisis) चरम पर है. अपने आजाद इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजरता श्रीलंका अब राजनीतिक संकट के बीच है. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) बिना इस्तीफा दिए मालदीव भाग गए हैं, जहां से वो सिंगापुर जाने की तैयारी में हैं. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री और अब कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) के ऑफिस पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया है. रानिल विक्रमसिंघे ने सेना को "लॉ-ऑर्डर बहाल करने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है" वह करने का आदेश दिया है.

आर्थिक संकट ऐसी कि जनता अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही है. ऐसी स्थिति में उसका पूरा गुस्सा श्रीलंका की राजनीति की इन दो धुरी- राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के ऊपर है.

जहां प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है वहीं रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास में आग लगायी गयी और उनके पीएम ऑफिस पर कब्जा कर लिया गया है.

आपको बताते हैं कि श्रीलंका को आर्थिक और राजनीतिक संकट के जिम्मेदार बताए जा रहे ये दोनों किरदार कौन हैं? साथ ही इस हालात के लिए श्रीलंका की राजनीति में हावी परिवारवाद को क्यों जिम्मेदार माना जा रहा है?

राष्ट्रपति Gotabaya Rajapaksa: राजपक्षे परिवार अर्श से फर्श पर

श्रीलंका में दशकों तक शक्तिशाली भू-स्वामी राजपक्षे परिवार ने अपने ग्रामीण दक्षिणी जिले में स्थानीय राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा था. लेकिन राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में परिवार की पारी 2005 में शुरू हुई जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति चुने गए. श्रीलंका के बौद्ध-सिंहली बहुल जनता की राष्ट्रवादी भावना के बल पर, महिंदा राजपक्षे ने 2009 में तमिल विद्रोहियों पर विजयी जीत में श्रीलंका का नेतृत्व किया, और 26 साल के गृहयुद्ध को समाप्त कर दिया.

इस दौरान महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई, गोटाबाया राजपक्षे रक्षा मंत्रालय में एक शक्तिशाली अधिकारी और सैन्य रणनीतिकार थे.

महिंदा राजपक्षे 2015 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहे, लेकिन फिर वो अपने पूर्व सहयोगी मैत्रीपाला सिरिसेना के नेतृत्व वाले विपक्ष से हार गए. राजपक्षे परिवार ने 2019 में फिर वापसी की, जब गोटाबाया ने राष्ट्रपति चुनाव जीता. सिरिसेना की सरकार की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह थी 2019 में हुए ईस्टर संडे टेररिस्ट अटैक- इसमने इस्लामिक चरमपंथियों ने सुसाइड हमलों में ईसाई चर्चों और लक्जरी होटलों को निशाना बनाया था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए.

गोटाबाया ने राष्ट्रपति बनने के लिए उस ताकतवर राष्ट्रवाद को वापस लाने की कसम खाई, जिसने उनके परिवार को बौद्ध बहुसंख्यकों के बीच लोकप्रिय बना दिया था. साथ ही गोटाबाया ने राजनीतिक स्थिरता और विकास के संदेश के साथ देश को आर्थिक मंदी से बाहर निकालने की कसम खाई थी.

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इसके विपरीत नीतिगत मोर्चे पर गोटाबाया राजपक्षे ने कई घातक गलतियां कीं जिससे एक अभूतपूर्व संकट पैदा हुआ. ईस्टर संडे टेररिस्ट अटैक के कारण पहले से प्रभावित टूरिज्म को कोरोना महामारी ने और चोट पहुंचाई. आलोचकों का मानना है कि राजपक्षे ने आर्थिक सलाहकारों की सलाह नहीं मानी और देश के इतिहास में सबसे बड़ी टैक्स कटौती की. गोटाबाया राजपक्षे ने ऐसा मांग बढ़ाने के लिए किया था, लेकिन आलोचकों ने चेतावनी दी कि यह सरकार के खजाने को कम कर देगा.

इसके अलावा गोटाबाया राजपक्षे सरकार का फर्टिलाइजर को बैन कर बिना पर्याप्त तैयारी के ऑर्गेनिक फार्मिक शुरू करना भी घातक सिद्ध हुआ.

सरकार का खजाना खाली हुआ, विदेशी मुद्रा भंडार को बड़ा नुकसान हुआ. मूलभूत जरूरतों के आयात के लिए भी विदेशी मुद्रा कम पड़ने लगे और भोजन, रसोई गैस, फ्यूल और दवा की कमी पर लोगों का गुस्सा फूटा.

ऐसी स्थिति में राजपक्षे परिवार की उलटी गिनती शुरू हुई. अप्रैल में बढ़ते विरोध ने राजपक्षे परिवार के तीन मंत्रियों को अपने कैबिनेट पदों को छोड़ने के लिए मजबूर किया.

मई में जब सरकार के समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया तो हिंसा भड़की और नौ लोग मारे गए. अब प्रदर्शनकारियों का गुस्सा महिंदा राजपक्षे की ओर मुड़ गया और दबाव में उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया. अब प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे बने थे.

रानिल विक्रमसिंघे

छह बार प्रधान मंत्री रहे विक्रमसिंघे ने जब मई 2022 में कार्यकाल संभाला तो यह यकीनन सबसे चुनौतीपूर्ण था. राजपक्षे द्वारा मई में नियुक्त किए गए विक्रमसिंघे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रीलंका के प्रति विश्वास बहाल करने में मदद करने के लिए लाया गया था.

विक्रमसिंघे पीएम के साथ वित्त मंत्री भी थे. उन्होंने संसद में साप्ताहिक भाषण देते हुए वित्तीय संस्थानों, उधारदाताओं और सहयोगियों के साथ कठिन बातचीत शुरू की ताकि खजाने को भरा जा सके और जूझते नागरिकों को कुछ राहत दी जा सके.

लेकिन हालात नहीं बदलें. फ्यूल, भोजन और दवा के लिए कतार में खड़े लोगों को कोई राहत नहीं मिलने से विक्रमसिंघे तेजी से अलोकप्रिय हो गए. कई प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनकी नियुक्ति ने राजपक्षे पर इस्तीफा देने का दबाव बना दिया. कोलंबो में स्थित विक्रमसिंघे के निजी आवास में भी प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दिया. विक्रमसिंघे ने इसके बाद एक ट्वीट में इस्तीफे की पेशकश की लेकिन अभी तक उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है. इसके उलट राष्ट्रपति ने खुद देश से फरार होने के बाद विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया है.

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