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स्वेज नहर में एक जहाज के फंस जाने से पूरी दुनिया के व्यापार पर असर पड़ गया है. Suez canal crisis के कारण हर घंटे 2900 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. यानी जब रास्ता खुला था तो अरबों का फायदा हो रहा था. स्वेज नहर प्राकृतिक नहीं है. इंसानों ने खोदा है इसे. तो फिर कौन था वो शख्स जिसे स्वेज नहर का आइडिया आया. कैसे बनी ये नहर? सबसे पहले इसका ख्वाब देखने वाले शख्स का नाम है नेपोलियन. नहर के कारण एक युद्ध भी छिड़ने वाला था.
स्वेज नहर के बारे में सबसे पहले नेपोलियन बोनापार्ट ने सोचा था. 1798 में मिस्र पर हमले के बाद नेपोलियन ने भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने वाली एक नहर का सपना देखा था. इस काम के लिए उसने सर्वेयर की एक टीम भेजी थी, लेकिन उनकी गलत कैलकुलेशन की वजह से नेपोलियन ने इस पर काम नहीं किया.
दशकों बाद 1854 में फ्रांस के एक राजनयिक फर्डिनांड डि लेसेप्स ने स्वेज नहर की योजना बनानी शुरू की. लेसेप्स ने फ्रेंच सरकार से इसके लिए वित्तीय मदद ली और मिस्र में ऑटोमन साम्राज्य के वाइसराय से इजाजत ली.
1859 में उन्होंने स्वेज नहर कंपनी का निर्माण किया. स्वेज नहर बनाने के लिए बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत थी और इसके लिए मिस्र की सरकार ने गरीब मजदूरों को कम मजदूरी और हिंसा का डर दिखाकर जबरन काम करवाया.
लाखों-लाख मजदूरों को इस प्रोजेक्ट में लगाया गया था और ऐसा कहा जाता है कि हजारों मजदूर कॉलरा जैसी बीमारियों की वजह से मर भी गए थे.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि इस नहर को बनाने में 100 मिलियन डॉलर का खर्च आया था. आज की कीमत के हिसाब से ये लागत लगभग 1.9 बिलियन डॉलर बैठेगी.
स्वेज नहर से रोजाना 30 फीसदी वैश्विक कंटेनर जहाज का आवागमन होता है. अगर 'एवर गिवेन' को जल्दी नहीं निकाला जाता है तो दुनिया का धंधा मंदा पड़ सकता है. इतना ही नहीं तेल बाजार, शिपिंग और कंटेनर की दरें प्रभावित हो सकती हैं और रोजमर्रा के सामान महंगे हो सकते हैं.
स्वेज नहर का सबसे ज्यादा महत्त्व उसकी लोकेशन की वजह से है. ये ही एक जगह है जो यूरोप के समंदर को अरब सागर, हिंद महासागर और एशिया-पैसिफिक के देशों से जोड़ती है.
अगर स्वेज नहर न हो तो जहाजों को पूरे अफ्रीकी महाद्वीप की यात्रा कर उसे पार करना पड़ेगा. इससे ट्रांसपोर्ट की लागत तो बढ़ेगी ही, साथ ही यात्रा का समय भी काफी बढ़ जाएगा.
ये नहर एशिया और यूरोप के बीच तेल और कंज्यूमर गुड्स की आवाजाही के लिए दुनिया के सबसे व्यस्त रास्तों में से एक है.
स्वेज नहर 1956 में एक ऐसे संकट का केंद्र बिंदु बनी थी, जिसकी वजह से मिस्र पर हमला हो गया था. 1956 में मिस्र के करिश्माई राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. स्वेज नहर कंपनी में ज्यादातर शेयर ब्रिटिश और फ्रेंच सरकार के थे. ऐसे में नासिर के राष्ट्रीयकरण कदम से दोनों देशों में बवाल मच गया था.
इस संकट का असर ये हुआ था कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एंथनी इडन को इस्तीफा देना पड़ा था. पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने किसी देश में पीसकीपिंग सेना भेजी थी. 1957 में स्वेज संकट खत्म होने के बाद नहर को मिस्र के नियंत्रण में छोड़ दिया था.
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