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स्वीडन (Sweden) और फिनलैंड (Finland) , इन दो नॉर्डिक देशों ने दशकों के अपने न्यूट्रल स्टैंड को बदलते हुए आखिरकार सैन्य गठबंधन NATO में शामिल होने का फैसला कर लिया है. यूक्रेन पर रूस के हिंसक आक्रमण ने दोनों देशों को दहशत में डाल दिया है और उन्होंने अमेरिका के नेतृत्व वाले NATO में शामिल होने के लिए आवेदन दे दिया है. लेकिन NATO में शामिल होने के उनके रास्ते में एक बड़ी बाधा है- तुर्की (Turkey) .
निरंकुश और अलोकतांत्रिक नेता के रूप में तेजी से इमेज बनाते तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने कहा है कि वह इन दोनों देशों के NATO में शामिल होने से सहमत नहीं हैं.
इस आर्टिकल में हम इन सवालों का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे:
तुर्की स्वीडन और फिनलैंड के NATO सदस्यता के खिलाफ क्यों है ?
स्वीडन और फिनलैंड के सामने तुर्की ने क्या शर्तें रखी हैं?
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान क्या अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश कर रहे हैं ?
क्या तुर्की का यह स्टैंड NATO के लिए खतरनाक है?
स्वीडन और फिनलैंड के NATO सदस्यता पर तुर्की के राष्ट्रपति का विरोध उनके इस विचार पर आधारित है कि फिनलैंड और स्वीडन "आतंकवादियों" का समर्थन करते हैं. दोनों देशों ने कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) के सदस्यों को सुरक्षा और पनाह दे रखी है. PKK एक प्रमुख सशस्त्र समूह है जो तुर्की द्वारा लाखों कुर्द नागरिकों के ऊपर कथित अत्याचार का प्रतिरोध कर रहा है.
फिनलैंड और स्वीडन के खिलाफ राष्ट्रपति एर्दोगान का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि दोनों देशों ने तुर्की विद्वान और मौलवी फेतुल्लाह गुलेन के फॉलोवर्स को पनाह दे रखी है.
तुर्की के राष्ट्रपति ने गुलेनवादियों पर 2016 में उनकी सरकार के खिलाफ असफल तख्तापलट करने का आरोप लगाया था.
इतना ही नहीं दोनों देशों ने सीरिया में तुर्की की 2019 की घुसपैठ का भी विरोध किया था.
तुर्की के राष्ट्रपति ने बुधवार, 18 मई को स्वीडन और फिनलैंड के सामने NATO सदस्यता पर वोट के बदले 10 मांगे रखीं. आलोचकों का दावा है कि वह दोनों देशों को सुरक्षा मुद्दे पर ब्लैकमेल कर रहे हैं क्योंकि सोमवार तक उन्होंने केवल 2 मांग ही सामने रही थी.
फिनलैंड और स्वीडन कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) के लिए अपना समर्थन समाप्त कर दें, जिसे तुर्की एक आतंकवादी संगठन मानता है.
उत्तरी सीरिया में तुर्की की घुसपैठ के बाद अक्टूबर 2019 में लगाए गए हथियारों के निर्यात पर से फिनलैंड और स्वीडन अपना बैन हटा लें.
देशों की विदेश नीति अधिकांशतः सत्ता में मौजूद सरकार के घरेलू हितों से जुड़ी होती है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान का एक बड़ा डर यह है कि कुर्द तुर्की की सत्ता पर काबिज हो जाएंगे. साथ ही एर्दोगान की सरकार इस समूह के दमन के लिए अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना कर रही है.
आलोचकों का आरोप है कि राष्ट्रपति एर्दोगान NATO सदस्यता के मुद्दे पर स्वीडन और फिनलैंड को ब्लैकमेल करके कुर्दों और उनके संगठन PKK को अलग-थलग करना चाहते हैं.
इस सैन्य गठबंधन में किसी नए देश को शामिल करने के नियमों के अनुसार सभी वर्तमान सदस्यों के सहमति की आवश्यकता होती है. यही कारण है कि तुर्की फिनलैंड और स्वीडन के आवेदन पर प्रभावी रूप से वीटो लगा सकता है.
दूसरी ओर फिनलैंड और स्वीडन NATO की सदस्यता के मौजूदा मापदंडों पर गठबंधन के कई मौजूदा सदस्यों की तुलना में अधिक खड़ा उतरते हैं.
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