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“जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है. मुझे सामान खरीदने के लिए ज्यादा पैसा देने या दूर तक जाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन मैं अपनी पसंदीदा खाने की चीजों के बिना नहीं रह सकता.” यह कहना है लंदन के साउथॉल ब्रॉडवे पर कपड़ों की एक दुकान में काम करने वाले 34 वर्षीय संदीप सिंह का.
ब्रिटेन में बहुत से भारतीयों के लिए अपने वतन से सबसे गहरा भावनात्मक जुड़ाव खाने की मेज पर होता है. भारतीय मूल के लोग सब-कॉन्टिनेंट से आयात की जाने वाली जानी-पहचानी सब्जियों और मसालों की मदद से पुश्तैनी नुस्खों से तैयार खाने में सुकून और पुरानी यादों से जुड़ाव ढूंढते हैं.
खाद्य पदार्थों की मौजूदा कमी के चलते एएसडीए (ASDA), लिडल (Lidl) और टेस्को (Tesco) जैसी बड़ी सुपरमार्केट चेन मांग को पूरा करने में नाकाम हैं, इसलिए हर प्रोडक्ट की एक बार में खरीदी जा सकने वाली मात्रा तय कर दी गई है.
UK में पिछले कुछ हफ्तों में जबरदस्त सर्दी के महीनों के दौरान गर्मी में उगने और आयात की जाने वाली बेमौसमी सब्जियों की सप्लाई में कमी आई है.
इसका मतलब यह है कि टमाटर, प्याज, शिमला मिर्च और खीरे जैसी सलाद वाली फसलों के साथ ही ब्रोकली और रसीले फल जो मोरक्को और स्पेन में खासतौर से UK के बाजार के लिए उगाए जाते हैं, सुपरमार्केट को सीमित आपूर्ति कर रहे हैं और बाहर के दुकानों पर बहुत महंगी मिल रही हैं. कभी जो बेहद आम सब्जियां थीं, बीते कुछ हफ्तों में अचानक दुर्लभ हो गई हैं.
साउथॉल में क्वालिटी फूड्स सुपरमार्केट के बाहर सब्जी की दुकान लगाने वाले 65 वर्षीय मोहिंदर सिंह बताते हैं, कुछ चीजों की कीमतों में तेज महंगाई को देख उन्हें झटका लगा था: “एक किलो टमाटर की कीमत 99 पेंस (₹80.87) हुआ करती थी, अब इतनी ही मात्रा के लिए 2.99 पाउंड (₹294.42) लग रहे हैं.” मोहिंदर सिंह का कहना है ग्राहकों की गिनती में कमी नहीं आई है, मगर लोग कम मात्रा खरीद रहे हैं.
फलों और सब्जियों की कमी के साथ-साथ ब्रिटेन के भारतीयों के लिए एक और झटका, शायद इससे भी ज्यादा करारा, रहन-सहन के खर्च (cost of living) का बढ़ना है.
साउथॉल में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा (Gurdwara Sri Guru Singh Sabha in Southall) के जनरल सेक्रेटरी 32 वर्षीय हरमीत सिंह गिल बताते हैं कि इधर कुछ महीनों में गुरुद्वारे में खाने के लिए आने वाले लोगों की गिनती काफी ज्यादा बढ़ी है. “इनमें परिवार, बड़े बच्चे, बुजुर्ग सभी तरह के लोग हैं– वे यहां आते हैं ताकि उन्हें घर पर खाना न पड़े. वे यहां गर्माहट में कुछ घंटे बिता सकते हैं. इसी तरह भारत से आए कई छात्र पूरी तरह गुरुद्वारे के भंडारे पर निर्भर हैं– वे खुद खाना बनाने का खर्च नहीं उठा सकते. दूसरी तरफ, लोगों से उतना ज्यादा गल्ला दान में नहीं मिलता है, इसलिए हमें सामान खरीदना पड़ रहा है.
सब्जियों की किल्लत के सवाल पर हरमीत सिंह गिल गुरुद्वारे में काफी पहले से डिब्बाबंद टमाटर के इस्तेमाल को ऐसे हालात का सामना करने में किस्मत की देन मानते हैं. “हम मौसमी सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अगर कोई चीज उपलब्ध नहीं है, तो हम इसकी जगह डिब्बाबंद या ड्राइड प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं. हमारे काम पर खाने की चीजों की किल्लत असर डाल सकती है, लेकिन हम विकल्प अपनाकर इसका सामना कर सकते हैं, जैसा कि हमेशा किया है. उदाहरण के लिए सब्जी से बनने वाले खाने के बजाय हम दाल के दूसरे खाने बनाएंगे.
पत्नी और दो जवान बच्चों के साथ लंदन के उत्तर पश्चिमी उपनगर में रहने वाले 66 वर्षीय व्यवसायी बलजीत खंबा को ब्रिटेन में फल और सब्जियों की मौजूदा किल्लत के चलते शाकाहारी पंजाबी खाने में कटौती करनी पड़ी है. “मैं इलाके के सुपरमार्केट से अपने परिवार के लिए हफ्ते की खरीदारी करता हूं और पिछले एक हफ्ते से टमाटर नहीं खरीदा है. हम इन दिनों टमाटर के इस्तेमाल वाले पंजाबी खाने नहीं पका पा रहे हैं, जो आमतौर पर खाते थे. फिलहाल तो हम वेस्टर्न डिशेज बना रहे हैं. जो खरीद सकते हैं, उसी से काम चलाया जा रहा है.
दूसरी ओर सेंट्रल लंदन में 34 वर्षीय यूनिवर्सिटी स्टूडेंट शुभोदीप चटर्जी को शहर के बीचो-बीच जगह-जगह खुली किराने की छोटी दुकानों में टमाटर या इन दिनों दुर्लभ हुईं दूसरी सब्जियां खरीदने में खास कठिनाई नहीं हो रही है, लेकिन यहां भी उसी तर्ज पर कीमतें बढ़ी हुई हैं. “मुझे पूरा यकीन है कि कीमत में यह तेजी मौजूदा किल्लत (vegetables shortage) की वजह से है. मैं कम सब्जियां खरीद रहा हूं और पेट भरने के लिए पास्ता और ब्रेड जैसे सस्ते कार्ब्स से काम चला रहा हूं.”
सब्जियों की किल्लत ने भारतीय रेस्तरां पर भी असर डाला है. खाना बनाने का खर्च बढ़ गया हैं और नियमित रूप से खाने वाले कम हैं. साउथॉल ब्रॉडवे में लोकप्रिय भारतीय रेस्तरां रीटा’ज करी हाउस (Rita’s Curry House) के 45 वर्षीय मैनेजर मनमोहन खेड़ा का कहना है कि पिछले कुछ हफ्तों में ग्राहकों की संख्या में कमी आई है. वह बताते हैं कि महंगाई और रोजमर्रा के बढ़े हुए खर्चों ने रेस्तरां पर भी असर डाला है. “हमें हाल ही में बढ़ती लागत की भरपाई के लिए कुछ डिशेज की कीमतों में 0.50 पेंस और कुछ में एक पाउंड तक की बढ़ोत्तरी करनी पड़ी.”
28 वर्षीय वेट्रेस इशरप्रीत कौर का कहना है कि साउथॉल ब्रॉडवे की बाकी दुकानों की तरह हफ्ते के कामकाजी दिनों में रेस्तरां बुरी तरह खाली रहता है, हालांकि शनिवार-रविवार को काफी भीड़ होती है. “लोग अब बार-बार नहीं आते, लेकिन वीकेंड में जरूर हाजिरी दर्ज कराते हैं. वे हमेशा तयशुदा आइटम चाहते हैं, इसलिए हम मेन्यू से कुछ हटा भी नहीं सकते.”
फिलहाल तो UK के भारतीयों को अगले कुछ महीनों कमर कस कर रहने की जरूरत है और पसंदीदा खाना पकाने के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी, या फिर खाने-पकाने की वैकल्पिक चीजों के लिए तैयार रहना होगा और मुश्किल दौर के गुजर जाने का इंतजार करना होगा.
(लेखिका अनिदा रामसामी लंदन में रहने वालीं एक फ्रीलांस राइटर और ओडिसी डांसर हैं. वो SOAS University of London की पूर्व छात्रा हैं, जहां उन्होंने साउथ एशियन एरिया स्टडीज में पॉलिटिक्स ऑफ कल्चर इन इंडिया एंड द डायस्पोरा पर केंद्रित अध्ययन किया.)
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