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हॉन्गकॉन्ग का मुद्दा हो, कोरोना वायरस का मुद्दा या ट्रेड का, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार चीन पर लगातार भड़कते दिख रहे हैं वो भी खुल्लमखुल्ला. 6 जुलाई को भी डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक ट्वीट में लिखा कि अमेरिका और पूरी दुनिया को चीन ने बहुत नुकसान पहुंचाया है.
चुनाव के ऐलान से कुछ महीने पहले से अबतक ट्रंप का चीन पर ऐसा सीधा हमला कई बार देखा जा चुका है. नीम जैसे कड़वे इन ‘ट्वीट’ की टाइमिंग पर भी कुछ लोग सवाल उठाते हैं और पूछ भी रहे हैं कि सिर्फ अमेरिकी जनता को दिखाने के लिए तो ऐसा नहीं किया जा रहा है. हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की किताब “दि रूम वेयर इट हैपेंड” रिलीज हुई थी, जिसमें ये आरोप है कि राजनीतिक फायदे के लिए चीन से सौदेबाजी पर फोकस किया गया.
ऐसे में आरोपों की बात बाद में करते हैं, पहले जान लेते हैं कि ट्रंप पिछले कुछ दिनों में कब-कब चीन पर भड़के. जब हॉन्गकॉन्ग में चीन ने राष्ट्र्रीय सुरक्षा कानून लागू करने का ऐलान किया था, तब ट्रंप काफी सक्रिय दिखे थे आलम ये था कि चीन पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए उन्होंने हॉन्गकॉन्ग के विशेष दर्जा खत्म करने का ऐलान कर दिया था. दूसरे छोटे बड़े फैसलों में अमेरिका चीन एयरलाइंस की उड़ान पर रोक लगा चुका है और जब भारत ने 59 चीनी ऐप पर पाबंदी लगाई थी तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से भारत के लिए सकारात्मक प्रक्रिया सामने आई थी.
कोरोना वायरस के बाद भी हालात ऐसे बने थे कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक टीवी चैनल इंटरव्यू में यहां तक कह दिया था कि अमेरिका, चीन से अपने सभी रिश्ते तोड़ लेगा. कोरोना वायरस के अमेरिका में सबसे ज्यादा केस हैं और इसकी पूरी जिम्मेदारी ट्रंप चीन पर ही डालते नजर आए हैं, वो यहां तक कह चुके हैं कि अमेरिका समेत 184 देशों को चीन ने नर्क सा बना डाला है.
लेकिन इन कोशिशों के बीच ट्रंप पर चीन से मिलीभगत के भी आरोप लगे हैं. जून के ही महीने में ही ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जॉन बोल्टन ने उन्हें लेकर एक बड़ा दावा किया है. एसोसिएटेड प्रेस (AP) की रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी किताब में बोल्टन ने कहा है कि ट्रंप ने 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से 'अपने दोबारा चुने जाने की कोशिशों में मदद मांगी थी.'
रिपोर्ट में बताया गया कि बोल्टन ने लिखा, "मैं दिमाग पर जोर डालकर अपने कार्यकाल के दौरान ट्रंप का कोई ऐसा महत्वपूर्ण फैसला भी याद नहीं कर सकता, जो उनके दोबारा चुने जाने के लक्ष्य से प्रेरित न हो."
बोल्टन की किताब की सबसे ज्यादा चर्चा चीन से जुड़ी घटनाओं पर हो रही है. वो इसलिए कि ट्रंप दोबारा चुनाव जीतने के लिए इस वक्त चीन के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं जबकि बोल्टन बताते हैं कि ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की खुशामद में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी.
शी को खुश करने के लिए ट्रंप अपने प्रशासन के लोगों से कई क्रिमिनल मामलों में नरमी बरतने या मामले को खत्म करने के लिए दबाव डालते थे. बोल्टन ने शी और ट्रम्प की मुलाकातों और टेलीफोन वार्ताओं का विस्तार से जिक्र किया है.
बता दें कि ये गंभीर आरोप लगाने वाले बोल्टन करीब 17 महीने के लिए NSA रहे थे. जॉन बोल्टन का कहना है कि ट्रंप की जिनपिंग से 2020 राष्ट्रपति चुनाव के बारे में बातचीत समेत कई चर्चा उनके लिए 'चिंताजनक' थीं. बोल्टन का कहना है कि कांग्रेस को इन घटनाओं पर इम्पीचमेंट इन्क्वायरी करते समय विचार करना चाहिए.
कुल मिलाकर यही है कि ट्रंप के चुनावी एजेंडे में चीन की अपनी जगह साफ दिख रही है, चीन पर नीम जैसे कड़वे ट्वीट तो वो कर ही रहे हैं, शहद जैसे रिश्तों के उनपर आरोप लग रहे हैं. लेकिन जो रुझान सामने आ रहे हैं, उनसे तो यही लगता है कि ट्रंप का नीम और शहद अमेरिका जनता खरीदने के लिए उत्साहित नहीं दिख रही.
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