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एक प्रतिष्ठित अमेरिकी विश्वविद्यालय के बाहर इजरायल समर्थक प्रदर्शनकारियों द्वारा एक भारतीय मुस्लिम छात्र पत्रकार को "आतंकवादी रिपोर्टर" कहे जाने से लेकर अपने माता-पिता की सलाह न मानते हुए गाजा के साथ एकजुटता में विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले एक अन्य स्नातक के छात्रा तक, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों ने विरोध करना बंद नहीं किया है. यहां तक कि उन्होंने जमीन से रिपोर्टिंग भी बंद नहीं की है.
क्विंट हिंदी ने कई भारतीय नागरिकों से बात की है कि इस समय अमेरिका में एक अंतरराष्ट्रीय छात्र होने पर कैसा महसूस होता है? खासकर अगर वो गिरफ्तारी और निलंबन के डर के बावजूद अपने कैंपस और उसके आसपास हो रहे विरोध प्रदर्शनों का दौरा करने या रिपोर्टिंग करने में शामिल रहे हों.
नबीला (पहचान जाहिर न करने की वजह से नाम बदला गया है) एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में एक भारतीय मुस्लिम महिला है, जिसने फिलिस्तीन और इजरायल समर्थक दोनों विरोध प्रदर्शन देखे हैं.
एक छात्र पत्रकार के तौर पर वह नियमित रूप से कैंपस में हो रहे विरोध प्रदर्शन को कवर करती रही हैं.
हाल ही की एक शाम को जब एक बड़ा इजरायल समर्थक विरोध प्रदर्शन उनके विश्वविद्यालय के गेट के ठीक बाहर शुरू हुआ तब नबीला अपने कैमरे के साथ वहां मौजूद थीं. लेकिन जब वह एक छात्र पत्रकार के तौर पर अपना काम कर रही थीं तब उन्होंने आरोप लगाया कि कई इजरायल समर्थक प्रदर्शनकारियों ने उन्हें निशाना बनाया.
एक इजरायल समर्थक प्रदर्शनकारी की बात को याद करते हुए नबीला कहती हैं कि उन पर भी 'यौन टिप्पणियां' भी की गई थी. एक तीसरे इजरायल समर्थक प्रदर्शनकारी ने उन्हें कहा था, "तुम, हमास समर्थक, आओ और इसकी तस्वीर लो."
उसी शाम अलग-अलग घटनाओं को लेकर वह कहती हैं कि कम से कम चार अलग-अलग प्रदर्शनकारियों ने उनका इस तरह से अपमान किया.
उन्होंने आरोप लगाया कि वह जानती हैं कि उन्हें उन अपशब्दों का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि वह मुस्लिम हैं और हिजाब पहनती हैं.
कुछ साथी छात्र पत्रकार जो पास में थे, उनके पास आए और उन्हें गले लगा लिया. इस पर नबीला कहती हैं, "मैं वास्तव में आभारी हूं (इसके लिए). मुझे लगा कि मेरे साथ कुछ लोग हैं. मुझे सच में उस पल किसी की जरूरत थी.
उनके दोस्तों ने उन्हें उस जगह को छोड़ने की सलाह दी. उन्होंने उनकी सलाह मानी और वैसा ही किया.
हालांकि वह उस दिन वहां से वापस चली गई थी. लेकिन इसके बाद से नबीला ने यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शन को कवर करना जारी रखा है. वह कहती है, "ये घटनाएं रिपोर्ट करनी चाहिए, यह कहानी सबके सामने आनी चाहिए और ये सब उस बारे में ही है."
नबीला कहती हैं, "एक पत्रकार के तौर पर ये मेरे लिए सबसे बेहतर काम है जो मैं कर सकती हूं. मेरा मकसद उन आवाजों को सबके सामने लाना है जो दूसरे लोग सुन नहीं पाते हैं. इसके अलावा ऐसे नजरिये को सामने लाना मेरा काम है जो दूसरे लोग देख नहीं पाते हैं."
नबीला ने जब अपने पिता से बात की और उन्हें बताया कि उनके साथ क्या हुआ, तब उनके पिता ने उनके काम को सराहा और कहा कि वह जो कर रही हैं वह काबिल-ए-तारीफ है और बहुत जरूरी है.
यहां तक कि जब वह यूनिवर्सिटी कैंपस में और उसके आसपास एक छात्र पत्रकार के तौर पर काम करना जारी रखती हैं, तब भी उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां बंद नहीं होती हैं.
एक रात जब वह रिपोर्ट नहीं कर रही थी और यूनिवर्सिटी कैंपस में टहल रही थी. यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर दो लोगों ने उन्हें "आतंकवादी" और "हमास" कहा.
हो सकता है कि उन्होंने अधिकारियों को अपने द्वारा सामना किए गए अपशब्दों की जानकारी न दी हो, लेकिन अपने काम के जरिए नबीला ने उन्हीं अधिकारियों पर रिपोर्टिंग जारी रखी है, उन्हें अपने यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की है.
अपने विश्वविद्यालयों और उसके बाहर हो रहे प्रदर्शन के डर से कई भारतीय छात्र जो अपने कैंपसों में विरोध स्थलों पर अक्सर आते थे और जिनका हमने इंटरव्यू किया था. उन्होंने गुजारिश की है कि उनकी पहचान गुप्त रखी जाए.
हर्षिता (बदला हुआ नाम) उनमें से एक हैं. वह एक भारतीय नागरिक हैं और कोलंबिया के बर्नार्ड कॉलेज में स्नातक फर्स्ट ईयर की छात्रा हैं.
वह कहती हैं कि यूनिवर्सिटी एक ऐसी जगह है जहां उन्होंने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के लोगों के अनुभवों के बारे में जाना है और इसमें फिलिस्तीन और वहां रहने वाले लोगों की स्थितियों के बारे में भी ज्यादा जानकारी हासिल करना शामिल है.
हर्षिता अपनी परिवार की बात याद करते हुए कहती हैं, "बाहर मत जाओ, इसमें मत पड़ो." उनकी दादी ने भी उनके विरोध प्रदर्शन में जाने पर मना कर दिया.
हर्षिता का कहना है कि वह अपने माता-पिता को फोन करने के तुरंत बाद रोने लगी. वह कहती हैं, "मैंने उनसे कहा कि मुझे बाहर (विरोध प्रदर्शन में) जाने की जरूरत है.
हर्षिता ने तर्क दिया कि वह "एक प्रभावशाली क्षेत्र में हैं, जिसे बहुत से लोगों द्वारा सुना जा रहा है इसलिए, मुझे बाहर जाना चाहिए."
वह कहती हैं,
लेकिन इसके बाद हर्षिता ने क्या किया? वह कहती हैं कि उन्होंने परिवार को बिना बताए विरोध प्रदर्शनों में जाना जारी रखा.
कोलंबिया विश्वविद्यालय में क्लासिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर जोसेफ हॉवले कहते हैं, "मैंने उन छात्रों से बात की है जिन्होंने विरोध आंदोलन में शामिल होने या शिविर में आने पर विचार किया है और वे वीजा पर यहां होने की वजह से डरते हैं."
हर्षिता कहती हैं, "मैं अपने माता-पिता की बात नहीं सुनना चाहती, लेकिन मैं यह भी समझती हूं कि वे क्या सोच रहे हैं."
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) के एक प्रवक्ता ने फॉक्स न्यूज को बताया, "यदि किसी छात्र को निलंबित किया जाना है, तो डीएचएस को यह विश्वास करने के लिए कारण की आवश्यकता होगी कि छात्र पढ़ाई ठीक से नहीं कर रहा है."
उन्होंने कहा, "और अगर यह मान लिया जाता कि निलंबन इस प्रकार के फैसले के योग्य है, तो निष्कासन की कार्यवाही शुरू करनी होगी, जो कि अमेरिकी इमीग्रेशन और कस्टम एनफोर्समेंट (ICE), प्रिंसिपल लीगल एडवाइजर के ऑफिस (OPLA) के साथ मिलकर केस-दर-केस के आधार पर की जाएगी."
कोलंबिया के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में 22 वर्षीय भारतीय छात्र अमन (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "वे मुझे देश से बाहर कर सकते हैं, वे मेरा बैग पैक करवा सकते हैं और मुझे वापस भारत भेज सकते हैं."
जोसेफ हॉवले विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों को ऐसी स्थिति में रखने के बारे में चिंतित हैं जिसमें डीएचएस शामिल हो सकता है.
हॉवले बताते हैं, "मैं एक कॉलेज का छात्र था जब डीएचएस बनाया गया था, और मुझे लगता है, हमारे देश के इतिहास में यह 9/11 के मद्देनजर संस्थागत इस्लामोफोबिया के सबसे खराब दौर में बनाया गया था. और, मुझे छात्रों की सुरक्षा के लिए डीएचएस जैसी संस्था पर कोई भरोसा नहीं है."
उदाहरण के लिए, 29 अप्रैल को कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि जो कोई भी उस दिन दोपहर 2 बजे से ज्यादा वक्त तक शिविर में रहेगा उसे यूनिवर्सिटी से निलंबित कर दिया जाएगा.
प्रदर्शन आयोजकों ने घोषणा की कि अगर आप यहां एफ-1 या जे-1 वीजा पर हैं, यदि आप एक अंतर्राष्ट्रीय छात्र हैं तो आप इस बात पर जरूर विचार कर लें कि आपको इस विरोध में शामिल होना है या नहीं, आप इस शिविर में रुकना चाहते हैं या नहीं क्योंकि अगर आप लोगों को इन कारणों से निलंबित किया जाता है तो हमारे मुकाबले आप पर इसके अलग प्रभाव पड़ेगें.
अमेरिका में राजनेताओं के एक वर्ग की ओर से आने वाली टिप्पणियों से भी छात्र सतर्क हो गए हैं.
प्रियंका ( बदला हुआ नाम), एक भारतीय नागरिक और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में स्नातक छात्र जो अपने कैंपस में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में शामिल होती आयी हैं. उन्होंने कहा,
वास्तव में, रिपब्लिकन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ट्रम्प ने चेतावनी दी है कि अगर वह सत्ता में वापस आते हैं, तो वह हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कट्टरपंथी अमेरिकी विरोधी और यहूदी विरोधी विदेशियों के छात्र वीजा को रद्द कर देंगे.
और कोलंबिया में सामूहिक गिरफ्तारी के पहले दौर के तीन दिन बाद, रिपब्लिकन सीनेटर मार्शा ब्लैकबर्न ने ट्वीट किया, हमास का समर्थन करने वाले अमेरिका में पढ़ने वाले सभी विदेशी छात्रों को तुरंत देश से बाहर कर दें.
अमन कहते है, "मुझे लगता है कि हर वक्त की यह निगरानी मुझे घबराहट में डाल रही है." उन्होंने दिल्ली में अपनी स्नातक की पढ़ाई करते समय प्रसिद्ध फिलिस्तीनी-अमेरिकी विद्वान एडवर्ड सईद के के बारे में पढ़ा था.
अमन के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में शामिल होने के लगभग एक महीने बाद, जिस संस्थान जहां सईद ने चार दशकों तक पढ़ाया वहां इजरायल और फिलिस्तीनी में चल रहे युद्ध पर बवाल मच गया. अमन जल्द ही, फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की मांग करने और गाजा में युद्ध विराम का आह्वान करने वाले विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना शुरू कर देंगे.
एक रात जब कोलंबिया में छात्र प्रदर्शन कर रहे थे तो वो इस बात से खासा चिंतित थे कि शिविर को खाली करने के लिए पुलिस को परिसर में बुलाया जाएगा. अमन कहते हैं कि उनके कई दोस्तों ने उन्हें मैसेज किया और उन्हें कैंपस छोड़ने की सलाह दी. वे कहते हैं, "उस रात मैं बेहद ही बुरे परेशानी से गुजरा. मैंने बहुत असुरक्षित महसूस किया. मुझे लगा कि मैं अच्छा महसूस नहीं कर रहा था."
भले ही अमन और हर्षिता जैसे कई अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रदर्शनकारियों ने ऐसी स्थितियों से बचने की कोशिश की है, जिससे उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है और यूनिवर्सिटी द्वारा निलंबित किया जा सकता है. लेकिन इसने उन्हें साथी प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने से नहीं रोका है.
उदाहरण के लिए, हर्षिता के पड़ोसियों में से एक को न्यूयॉर्क शहर पुलिस विभाग ने 18 अप्रैल को कोलंबिया विश्वविद्यालय में सामूहिक गिरफ्तारी के पहले दौर में गिरफ्तार किया था. वह कैंपस में गाजा के समर्थन में लगे कैंप में था.
उसी प्रदर्शनकारी को बर्नार्ड ने भी निलंबित कर दिया था और कॉलेज प्रशासन ने कैंप का हिस्सा होने के कारण उसके कैंपस के हॉस्टल से बेदखल कर दिया था. उस समय, हर्षिता अपने दोस्त की पैकिंग में मदद करने गई थी.
मामले में अपने यूनिवर्सिटी के रूख से हर्षिता बेहद दुखी है और वह उस समय को याद करती हैं जब बर्नार्ड में एडमिशन होने पर उन्होंने इसके बारे में लिंक्डइन पर पोस्ट किया था.
उन्होंने अपने लिंक्डइन पर पोस्ट लिखा था कि, घर से दूर मैं एक घर ढूंढ लूंगी लेकिन अब ऐसा होता उन्हें नहीं दिख रहा है.
हर्षिता कहती हैं, मैंने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की कि किसी को पता न चले कि मैं वहां (शिविर में) हूं, सिवाय उन लोगों के जिन पर मुझे भरोसा है और जो लोग मेरे साथ हैं.
हर्षिता की तरह, कई छात्र प्रदर्शनकारी कैंप में रहते हुए मास्क पहनते थे या अपने चेहरे पर कपड़े लपेटते थे ताकि अधिकारियों द्वारा उनकी पहचान न की जा सके.
वह कोलंबिया में चलने वाले डॉक्सिंग ट्रकों पर फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों के नाम और तसवीर का जिक्र कर रही थीं.
(डॉक्सिंग का अर्थ है कि इंटरनेट पर किसी ने किसी और के बारे में निजी जानकारी पोस्ट की है. यह जानकारी व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य है और इसलिए संवेदनशील है. जैसे, कोई इसका उपयोग यह पता लगाने के लिए कर सकता है कि कोई वास्तव में कौन है, वो कहां रहते हैं और उनसे कैसे संपर्क किया जाए. डॉक्स किया जाना का एक रूप है.)
हर्षिता कहती हैं, मुझे डर है कि मेरे साथ ऐसा होने वाला है, और मुझे लगता है कि इससे इस स्कूल में मेरी जगह खतरे में पड़ जाएगी.
वह कहती है कि उसने अपने डर के बावजूद विरोध प्रदर्शनों में जाना जारी रखा क्योंकि “जिन लोगों के लिए हम लड़ रहे हैं- गाजा के लोगों - उनके लिए यह एक गंभीर ख़तरा है."
प्रियंका का कहना है कि यह देखना महत्वपूर्ण है कि लोग अधिक संख्या में विरोध प्रदर्शन में शामिल क्यों नहीं हो पा रहे हैं.
"हमने ऐसी घटनाएं देखी हैं जहां कैंपस के विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए पीपुल्स यूनिवर्सिटी हाउसिंग और यूनिवर्सिटी की नौकरियां छीन ली गई हैं". वह कहती है कि वह खुद गिरफ्तारी से डरती है.
उनका तर्क है कि विश्वविद्यालयों को यह स्वीकार करना चाहिए कि "विरोध और राजनीतिक सक्रियता यूनिवर्सिटी के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस देश के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
वह आगे कहते है, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए उन गतिविधियों में भाग लेना अधिक खतरनाक बनाने के बजाय, यूनिवर्सिटी को हमें कैंपस और इस देश में राजनीतिक सक्रियता में भाग लेने के लिए हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए.
हालांकि, लगातार हमारे पैर खिंचने के बावजूद यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शनों की संख्या केवल बढ़ी है.
रियांका का कहना है कि यह वैसा ही है, जैसा उन्होंने चार साल पहले भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ आंदोलन के दौरान देखा था.
बढ़ते जोखिम के बावजूद, एक ग्रुप के लोगों का एक साथ आकर यह साहस दिखाना दूसरे लोगों को भी प्रेरित करता है.
प्रियंका कहती हैं, उम्मीद है कि इतिहास में इसे एक ऐसे समय के रूप में याद किया जाएगा जब अत्याचार के खिलाफ जिम्मेदार लोगों का एक बड़ा समूह एक साथ खड़ा हुआ.
(मेघनाद बोस और फाहिमा देगिया कोलंबिया यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में पत्रकारिता के छात्र हैं. कोलंबिया में एक स्नातक छात्र तनुश साहनी ने इस कहानी पर रिपोर्टिंग करने में मदद की.)
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