Iran Israel Tension: ईरान और इजरायल के बीच हाल ही में हुए तनाव के कारण खाड़ी में चीन के लिए संतुलन मुश्किल हो रहा है. 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से दोनों देशों के बीच दशकों के बाद टकराव के बावजूद 14 अप्रैल को इजरायल पर हुआ हमला देश पर पहला सैन्य हमला था.
ईरान की सरकारी इस्लामिक रिपब्लिक न्यूज एजेंसी (IRNA) समाचार एजेंसी ने जायोनिस्ट शासन पर ड्रोन और मिसाइल हमले करने को स्वीकार किया और इसे दमिश्क में अपने दूतावास पर कथित इजरायली हमलों के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया बताई. इजरायली हमलों ने पश्चिम एशिया को संघर्ष क्षेत्र से युद्ध क्षेत्र में धकेल दिया है.
जबकि ईरान में राज्य समाचार एजेंसियों ने अनुमान लगाया है कि चीन इजरायल पर हमले के बाद ईरान की स्थिति का समर्थन कर रहा है, पर बीजिंग अपनी स्थिति के बारे में बहुत सतर्क दिख रहा है. ईरानी हमले को 'प्रतीकात्मक' बताते हुए, चीन ने पश्चिम एशिया में चल रहे तनाव से किनारा कर लिया है.
चीन मध्य पूर्व देश पर अपना स्टैंड बेहद सतर्कता से तय कर रहा है
हमले के तुरंत बाद, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन को फोन कर कहा कि यह कार्रवाई सीमित थी और इसे आत्मरक्षा के लिए उठाए कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.
दमिश्क पर दूतावास हमले के प्रति आवश्यक प्रतिक्रिया देने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की असमर्थता का हवाला देते हुए, अमीर अब्दुल्लाहियान ने वांग को ईरान की स्थिति के बारे में जानकारी दी. वांग यी ने दमिश्क में दूतावास के राजनयिक अनुभाग पर हमले की कड़ी निंदा करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन बताया. उन्होंने कहा कि चीन क्षेत्र में तनाव से बचने के साथ-साथ ईरान के प्रति अपने समर्थन और सहयोग का साथ निरंतर बनाए रखना चाहता है.
मामले में चीन की प्रतिक्रिया का अहम पहलू और मध्य पूर्व के साथ इसके असल इरादे .
चीन मुख्य रूप से खाड़ी से चार चीजें चाहता हैः
1.तेल की आपूर्ति
2. संयुक्त राज्य अमेरिका को गैर-अधिकृत करना
3. क्षेत्रीय संबंधों का निर्माण करना और अंत में
4. GDI (ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव) और GSI (ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव) के जरिए से शी की प्रमुख महत्वाकांक्षाओं के लिए रास्ता साफ करना.
ऐसा करने के पीछे, चीन की क्षेत्र में एक सफल राजनयिक खिलाड़ी होने की सर्वोपरि धारणा महत्वपूर्ण है. यह हालिया संघर्ष इस धारणा पर एक सेंध है, जहां ईरान और सऊदी अरब के बीच बहुप्रशंसित शांति समझौते को बनाए रखने के लिए चीन की विश्वसनीयता खतरे में बनी हुई है.
ईरान-सऊदी सौदे में हिस्सेदारी
महज छोटे-मोटे टकराव से सीधे युद्ध में तब्दील होने की ईरान की हरकतें उसकी रणनीति में बदलाव को दर्शाती हैं. इसी तरह,जवाबी कार्रवाई करने वाले ईरान के बारे में इजरायल का रिएक्शन मौजूदा हालात में एक के बाद एक मामले की वजह बनेगी, जो खाड़ी क्षेत्र को भी अपने लपेटे में ले सकता है.
बीजिंग के लिए अभी सबसे बड़ा जोखिम यह है कि वर्तमान परिदृश्य में खाड़ी देश लापरवाह ईरान के साथ अपनी सुरक्षा स्थिति को फिर से निर्धारित करने के लिए आगे आ सकता है. विशेष रूप से सऊदी अरब के मामले में, और ऐसा होने का मतलब होगा कि चीन की मध्यस्थता में ईरान के राजनयिक संबंध खाई में चले गए.
तेहरान और रियाद के बीच 2023 के समझौते के बावजूद, रियाद कभी भी सऊदी-अमेरिका की निकटता के साथ सहज नहीं रहा है. हालांकि, गाजा युद्ध में दोनों देशों के वैचारिक मतभेदों के बावजूद उनके रिश्तों पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ लेकिन मौजूदा वक्त में प्रतिक्रियावादी ईरान राजनयिक व्यवस्था को चुनौती दे सकता है.
इस क्षेत्र में चीनी हित ऊर्जा सुरक्षा के मामलों से परे है, लेकिन यह क्षेत्र में एक सकारात्मक संतुलन बनाने में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA) देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को दर्शाता है.
चीन ने अपनी व्यापक रणनीतिक साझेदारी के हिस्से के रूप में 2021 में ईरान के साथ 25 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किया था. इस एग्रीमेंट कि पश्चिम देशों ने मुखरता से आलोचना की थी, इसके बाद चीन ने क्षेत्र में 12 अन्य देशों के साथ भी इसी तरह की साझेदारी की.
मध्य पूर्वी राजनयिक क्षेत्र में कई लोग इस बात से सहमत हैं कि चीन सऊदी, कतर और मिस्र जैसे देशों की क्षेत्रीय विकास रणनीतियों के साथ अपने बेल्ट एंड रोड्स इनिशिएटिव (BRI) विजन को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है, यह एक ऐसा प्रोजेक्ट है, जिससे खुद के रोड लिंक का एक चेन तैयार हो सके.
क्षेत्र में चीन के विस्तार का लक्ष्य
हालांकि, चीनी अधिकारियों ने कभी भी जिबूती से परे क्षेत्रों में सैन्य ताकत मजबूत करने के अपने मंशा को स्वीकार नहीं किया लेकिन सऊदी अरब, ईरान, यमन, और बहरीन संभवत: ऐसे देश है, जो चीन के सैन्य विस्तार करने वाली जगहों की सूची में सबसे ऊपर हैं.
विश्व शांति बनाए रखने के लिए शी जिनपिंग का प्रमुख प्रस्ताव ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव (GSI) के विचार से शुरू होता है. चीन-जीसीसी शिखर सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान, शी ने क्षेत्रीय राज्यों को GSI में शामिल होने और 'साझा सुरक्षा' के विचार को अपनाने के लिए आमंत्रित किया.
जबकि इस रणनीति का उद्देश्य क्षेत्र की सुरक्षा संरचना के लिए नैतिक रूप से बेहतर विकल्प देना है, इसका उद्देश्य क्षेत्र की उलझी हुई स्थिति और पश्चिम के साथ इसकी शिकायतों का फायदा उठाना भी शामिल है.
हालांकि, मौजूदा स्थिति में जहां ईरान जैसे देश को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, यह क्षेत्र में चीन के रणनीतिक विचार के लीमिट को दर्शाता है.
ऐसा लगता है कि चीन यहां केवल एक सुविधा देने वाले के तौर पर है, न कि सऊदी अरब के साथ हस्ताक्षरित शांति समझौते के गारंटर की तरह.
ईरान के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिबंधों के फैसलों के बाद बीजिंग जो भी कदम उठाएगा, उसमें ईरान और सऊदी अरब के बीच एक संतुलन बनाए रखने के विचार शामिल होंगे और वह अपने बयानों से किसी भी तरिके के बैकफायरिंग से बचने की कोशिश करेगा.
यह स्थिति दुनिया के सामने चीन के रणनीतिक विरोधाभास को प्रस्तुत कर सकता है. जैसा कि यून सन ने विदेश नीति के मुद्दे पर चर्चा करते हुए लिखा है, चीन इस क्षेत्र में एक सिक्योरिटी प्रोवाइडर बनने की आकांक्षा रखता है लेकिन वह अमेरिका के सहारे मुख्य सुरक्षा गारंटर भी बनना चाहता है.
हालांकि, चीन मध्य पूर्व में सभी के साथ अच्छे संबंध रखना चाहता है, लेकिन ईरान को चुनने के कारण उसके बाकि देशों से संबंधों में खटास पड़ सकता है.
सऊदी-ईरान शांति समझौता एक दूसरे के खिलाफ सैन्य अभियान नहीं करने का है, लेकिन यह कहना नामुमकिन नहीं होगा कि मौजूदा तनाव दोनों तरफ चिंगारी पैदा नहीं करेगा. सऊदी विदेश मंत्रालय ने हाल ही में एक बयान जारी कर संयम बरतने और क्षेत्र को और अधिक संघर्षों से बचाने की आवश्यकता पर जोर दिया लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि सऊदी अरब के नेतृत्व में सुन्नी राजतंत्र अब तनाव को बढ़ता देख ईरान विरोधी गुट के लिए खड़ा होगा.
हालांकि, यह प्रतिक्रिया आगे भी तनाव बढ़ने के प्रति चेतावनी देने की बीजिंग की प्रतिक्रिया के अनुरूप है, लेकिन इस संघर्ष ने क्षेत्रीय आधिपत्य होने के बारे में चीनी आपत्तियों को महत्वपूर्ण रूप से उजागर किया है. जबकि यह पश्चिमी सुरक्षा व्यवस्था की आलोचना बनी हुई है.
(उपमान्यु बसु मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज, भारत में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं. वे वर्तमान में राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे हैं. यह एक राय है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उसका समर्थन करता है और न ही उसके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)