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तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा तो आसानी से कर लिया लेकिन क्या शासन चलाना भी उतना ही आसान होगा? ये सवाल आज नहीं तो कल पूछा जाएगा क्योंकि युद्ध पीड़ित देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर है और अब खबर है कि अफगान केंद्रीय बैंक की 9.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति अमेरिका रोक रहा है. साथ ही अमेरिका ने अफगानिस्तान का कैश शिपमेंट भी रोक दिया है. हालांकि, तालिबान को पैसे का मोहताज बनाने की योजना का सफल होना इतना आसान भी नहीं है.
अमेरिका का संपत्ति फ्रीज करना ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन और ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट कंट्रोल के अफगान सरकार के फॉरेन रिजर्व को रोकने के फैसले के बाद आया है. अमेरिकी बैंकों में मौजूद अफगान सरकार का फॉरेन रिजर्व अब तालिबान नहीं ले सकेगा.
18 अगस्त को अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक दा अफगान बैंक (DAB) के गवर्नर अजमल अहमदी नई ट्विटर पर बताया कि देश का 9 बिलियन डॉलर विदेश में फॉरेन रिजर्व के तौर पर पड़ा है लेकिन अफगानिस्तान में फिजिकल कैश नहीं है.
अहमदी ने बताया, "इसमें से लगभग 7 बिलियन डॉलर यूएस फेडरल रिजर्व बॉन्ड, एसेट और गोल्ड के रूप में है. अमेरिकी डॉलर लगभग शून्य है क्योंकि अमेरिका से कैश शिपमेंट नहीं आ पाया."
अहमदी का कहना है कि अमेरिकी डॉलर की कमी से अफगानी (अफगानिस्तान की मुद्रा) का मूल्य गिर जाएगा और महंगाई बढ़ेगी. गवर्नर ने लिखा, "तालिबान सैन्य रूप से जीत गए हैं लेकिन अब उन्हें शासन चलाना है. ये आसान नहीं है."
क्या अजमल अहमदी सही कह रहे हैं कि पैसे का मोहताज बनकर तालिबान के लिए शासन चलाना बहुत मुश्किल होने वाला है? इसे समझने के लिए NATO की दो साल पहले की एक विश्वसनीय रिपोर्ट के बारे में जानना जरूरी है. रिपोर्ट में कहा गया था कि तालिबान ने 'या तो सैन्य और वित्तीय आजादी पा ली है या फिर वो उसे पाने के बहुत नजदीक है.' इसमें कहा गया कि 'तालिबान अपने विद्रोह को खुद ही फंड कर सकता है और उसे दूसरे देशों या उसके नागरिकों से पैसे की जरूरत नहीं पड़ेगी.'
ये साफ है कि तालिबान अगर खुद अपनी फंडिंग करने में योग्य हो भी गया है, तब भी अफगानिस्तान को चलाने के लिए इससे कहीं ज्यादा पैसे की जरूरत पड़ेगी. पर ऐसा नहीं है कि अमेरिका में संपत्ति जब्त होने या कैश शिपमेंट रुकने से तालिबान पैसे का मोहताज हो जाएगा. आगे देखिए कहां से तालिबान को मिल सकता है पैसा-
तालिबान के पास अफीम व्यापार का विकल्प हमेशा है. काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने इस व्यापार को खत्म करने का वादा किया है. लेकिन सच्चाई ये है कि 2020 में अफीम के ग्लोबल प्रोडक्शन का 84 फीसदी अफगानिस्तान से आ रहा था. इसमें से ज्यादातर तालिबान नियंत्रित इलाके से आता है और संगठन को 10 फीसदी प्रोडक्शन टैक्स के रूप में इससे पैसा मिलता है. अफीम के अलावा मेथएम्फेटामीन ड्रग प्रोडक्शन भी अफगानिस्तान में बढ़ रहा है.
तालिबान अब अपने 1996-2001 के शासन से भी ज्यादा क्षेत्र पर कब्जा करके बैठा है. इससे उसके नियंत्रण में कस्टम और बॉर्डर क्रॉसिंग भी आते हैं. मतलब कि अफगानिस्तान से होने वाले व्यापार पर तालिबान का नियंत्रण होगा.
संगठन अफगानिस्तान के 'वास्तव में' बैंकिंग सिस्टम हवाला सिस्टम पर टैक्स लगाकर भी पैसा कमा सकता है.
इसके अलावा अफगान सैन्य बलों से छीने गए अमेरिकी हथियार भी पैसा कमाने का जरिया बन सकते हैं. अमेरिकी आधुनिक हथियारों को अवैध बाजार में बेचकर संगठन अच्छी खासी फंडिंग जमा कर सकता है.
अमेरिका के तालिबान को वित्तीय रूप से पंगु बना देने की योजना को खराब करने के लिए चीन हमेशा तैयार है. चीन पहले ही कह चुका है कि वो तालिबान के साथ 'दोस्ताना रिश्ते' चाहता है. अमेरिका की अफगानिस्तान से 'अराजक वापसी' का फायदा चीन उठाने से चूकेगा नहीं.
तालिबान का सत्ता में आना पाकिस्तान के लिए इस क्षेत्र में बड़ी कूटनीतिक जीत है. पाकिस्तान और चीन के करीबी रिश्तों का फायदा अफगानिस्तान के नए शासकों को मिलने के पूरे आसार हैं.
दक्षिण एशिया से अमेरिका जैसी सुपरपावर के जाने की पूर्ति रूस भी कर सकता है. रूस उन कुछ देशों में से है, जिन्होंने तालिबानी कब्जे के बाद भी काबुल में दूतावास बंद नहीं किया है. मिडिल ईस्ट में सीरिया, लीबिया जैसे देशों में अमेरिका को बराबरी का खेल खेलने के बाद व्लादिमीर पुतिन अब अफगानिस्तान में अपनी विदेश नीति और कूटनीति का करिश्मा दिखा सकते हैं.
अमेरिका और पश्चिमी देशों का अफगानिस्तान को भेजी जाने वाली वित्तीय मदद रोकने का फैसला उनके खिलाफ भी जा सकता है. ऐसा करने से अफगानिस्तान में महंगाई और वित्तीय संकट पैदा होगा. रेस्क्यू के लिए चीन और रूस मदद तो देंगे ही साथ में ये नैरेटिव भी बन सकता है कि पश्चिमी देशों ने अफगानों को संकट में धकेला और फिर जूझने के लिए भी अकेला छोड़ दिया.
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