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US Taliban Talks: अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने पर राजी हुआ अमेरिका

अगस्त के अंत में अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान और अमेरिका के बीच ये पहली सीधी बातचीत है.

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<div class="paragraphs"><p>US Taliban Talks : सांकेतिक तस्वीर&nbsp;</p></div>
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US Taliban Talks : सांकेतिक तस्वीर 

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10 अक्टूबर को अफगानिस्तान (Afghanistan) में शासन संभाल रहे तालिबान और अमेरिका (US Taliban Talks) के बीच दोहा में हुई बातचीत के बाद अमेरिका अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने के लिए तैयार हो गया है.

तालिबान ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका बेहद गरीब अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने करने के लिए सहमत हो गया है, लेकिन देश के नए शासकों को राजनीतिक मान्यता देने से इनकार कर दिया है.

अमेरिका-तालिबान के बीच दोहा में वार्ता

अगस्त के अंत में अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान और अमेरिका के बीच ये पहली सीधी बातचीत है.

दोहा में हुई इस बातचीत के बाद अमेरिकी बयान में सिर्फ इतना कहा गया कि "दोनों पक्षों ने अमेरिका के मजबूत मानवीय सहायता के प्रावधान पर सीधे अफगान लोगों को चर्चा की."

वार्ता तब हुई जब अमेरिका और ब्रिटेन ने 10 अक्टूबर की रात अपने नागरिकों को राजधानी काबुल के होटलों से खासकर सेरेना होटल से दूर रहने की चेतावनी दी.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने काबुल में सुरक्षा खतरों का हवाला देते हुए कहा, "अमेरिकी नागरिक जो सेरेना होटल में या उसके पास हैं, उन्हें तुरंत जाना वहां से चले जाना चाहिए."

ब्रिटेन ने भी अफगानिस्तान में अपने नागरिकों के जाने पर ट्रेवल एडवाइजरी अपडेट करते हुए कहा "बढ़े हुए जोखिमों के चलते आपको होटलों में नहीं रहने की सलाह दी जाती है, खासकर काबुल के सेरेना होटल में."

सेरेना काबुल में सबसे प्रसिद्ध लक्जरी होटल है, जो आठ हफ्ते पहले तालिबान के शहर पर कब्जा करने से पहले विदेशी यात्रियों के बीच सबसे लोकप्रिय था.

तालिबान - अमेरिका ने क्या कहा ?

तालिबान ने कहा कि दोहा, कतर में हुई वार्ता, "अच्छी तरह से हुई", वाशिंगटन ने तालिबान की औपचारिक मान्यता देने से इनकार किया है लेकिन मानवीय आर्थिक सहायता देने का भरोसा दिलाया है.

अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया कि बातचीत किसी भी तरह से तालिबान की मान्यता को लेकर नहीं की गई थी, जो 15 अगस्त को अफगानिस्तान की सरकार के पतन के बाद से सत्ता में है.
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अमेरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने चर्चा को "स्पष्ट और पेशेवर" कहा. अमेरिका ने इस बात को दोहराया कि तालिबान को उनके शब्दों के बजाय उनके काम के आधार पर आंका जाएगा.

प्राइस ने आगे कहा कि, "अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने सुरक्षा और आतंकवाद की चिंताओं और अमेरिकी नागरिकों के साथ-साथ बाकी विदेशी नागरिकों और अफगान भागीदारों के मानव अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया. इसमें अफगान समाज के सभी पहलुओं में महिलाओं और लड़कियों की सार्थक भागीदारी शामिल है. तालिबान के राजनीतिक प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि ,

"हमने अमेरिका को आश्वासन दिया है कि चरमपंथियों द्वारा अन्य देशों के खिलाफ हमले के लिए अफगान धरती का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा."

हालांकि, तालिबान ने अफगानिस्तान में तेजी से सक्रिय इस्लामिक स्टेट (IS) ग्रुप को कंट्रोल करने के लिए अमेरिका का सहयोग करने से इनकार किया.

आपको बता दें कि इस्लामिक स्टेट ने हाल के कई हमलों की जिम्मेदारी ली है. इसमें कुछ दिन पहले हुई आत्मघाती बमबारी भी शामिल है जिसमें 46 अल्पसंख्यक शिया मुस्लिम मारे गए थे. वाशिंगटन इस्लामिक स्टेट को अफगानिस्तान से निकलने वाला अपना सबसे बड़ा आतंकवादी खतरा मानता है.

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