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कोरोना वायरस महामारी की वजह से दुनिया के ज्यादातर देशों में पिछले काफी समय से लॉकडाउन जारी है. हालांकि अब कई देश लॉकडाउन की पाबंदियों में छूट देना शुरू कर रहे हैं. एक देश ऐसा भी है, जिसने लॉकडाउन किया ही नहीं और महामारी की स्थिति को भी अच्छे से संभाला. ये देश स्वीडन है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जो देश लॉकडाउन से निकल रहे हैं, उन्हें स्वीडन के मॉडल को समझना चाहिए.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए स्वीडन ने लॉकडाउन नहीं किया. देश में जनजीवन सामान्य रखा गया. सिर्फ बड़ी भीड़ इकट्ठा होने पर रोक लगाई गई. यहां तक कि रेस्टोरेंट और स्कूल भी खुले रखे गए.
9 मई की देश की राजधानी स्टॉकहोम की इन तस्वीरों में पार्कों में सोशल डिस्टेंसिंग का ये नजारा देखने को मिला. स्वीडन की सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग के लिए लोगों से अपील की थी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसे पुलिसिया आदेश से लागू नहीं किया गया क्योंकि लोगों और सरकार के बीच एक भरोसे का माहौल है. सरकार वहां लोगों पर भरोसा करती है तो लोग भी सरकार के साथ पूरा सहयोग करते हैं. यही कारण है कि वहां लोग सार्वजनिक जगहों पर नजर तो आते हैं, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जाता है.
स्वीडन के विशेषज्ञ बताते हैं कि शुरू में एक गलती हुई थी. देश में ओल्ड एज केयर होम में काफी मरीज थे और यहां परिवार के लोग, मेडिकल अधिकारी और स्वास्थ्य कर्मी आ-जा रहे थे. इससे इंफेक्शन की संख्या बढ़ी. लेकिन जैसे ही ये बात समझ में आई, तब से इन केयर होम में आवाजाही पर पाबंदियां लगा दी गई. उसके बाद से नए केस और मौत के आंकड़े, दोनों पर काफी हद तक काबू पाया जा सका है.
ये सभी तस्वीरें अप्रैल महीने की हैं, जब दुनिया के लगभग हर देश में सख्त लॉकडाउन लागू था. उस समय भी स्वीडन में लोगों को पार्क, रेस्टोरेंट, एम्यूजमेंट सेंटर जाने की आजादी थी. सिर्फ बुजुर्ग लोगों से घर पर रहने की अपील की गई थी.
लॉकडाउन खोलना या जारी रखना किसी भी देश के लिए बेहद कठिन फैसला है. लेकिन स्वीडन के मॉडल से सबसे जरूरी सीख ये मिलती है कि सोशल डिस्टेंसिंग लॉकडाउन खोलने की सबसे बड़ी और जरूरी शर्त है.
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