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G7 सात देशों का एक अनौपचारिक समूह है. अनौपचारिक कहने का मतलब है कि NATO की तरह इसका कोई कानूनी या वैधानिक आधार नहीं है. इस समूह के सातों देश मिल कर दुनिया की लगभग 40 फीसदी जीडीपी और 10 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये सात देश हैं- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, कनाडा और यूएस.
चीन की इकनॉमी अमेरिका के बाद सबसे बड़ी है और आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा, लेकिन फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसकी वजह प्रति व्यक्ति कम संपत्ति का होना है. चीन को उन मायनों में आधुनिक अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता, जैसे बाकी G7 देश हैं.
G7 देश हर साल एक समिट करते हैं. इसमें इंटरनेशनल सिक्योरिटी से लेकर वैश्विक इकनॉमी सरीखे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाती है. इस साल के समिट में कोरोनावायरस महामारी और वैक्सीन का मुद्दा प्रमुख रहा.
पूरे साल G7 देशों के मंत्री और अधिकारी आपस में मिलते हैं, बैठकें करते हैं, समझौतों पर साइन करते हैं और साझा बयान भी देते हैं.
इस समूह का कोई कानूनी आधार नहीं है. G7 समिट में होने वाले वादों और समझौतों को उसके सदस्य देशों की सांसदों को पास करना होता है.
G7 कोई कानून नहीं बना सकते क्योंकि इसके सभी देशों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया अलग-अलग है और एक साझा कानून सब पर लागू नहीं हो सकता है.
इसकी शुरुआत 1975 में हुई थी, जब कनाडा के अलावा समूह के बाकी देशों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई मंदी के दौरान बैठक की थी. मंदी की स्थिति OPEC के तेल उत्पादन में कमी लाने की वजह से हुई थी.
G7 की बैठकों में यूरोपियन यूनियन को भी आमंत्रित किया जाता है. हर साल कई देशों को भी हिस्सा लेने के लिए निमंत्रण भेजा जाता है. हालांकि, इस समूह को अप्रासंगिक कहा जाने लगा है क्योंकि इसमें चीन और भारत जैसे बड़े देश शामिल नहीं हैं.
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