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कासिम सुलेमानी और कुद्स फोर्स ईरान में इतने ताकतवर कैसे बने?

कैसे वजूद में आई रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स?

नमन मिश्रा
दुनिया
Updated:
कैसे वजूद में आई रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स?
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कैसे वजूद में आई रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स?
(फाइल फोटो: Office of the Iranian Supreme Leader via AP)

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ईरान के कुद्स फोर्स के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की 3 जनवरी को बगदाद में अमेरिका एयरस्ट्राइक में मौत हो गई. सुलेमानी ईरान के टॉप मिलिट्री कमांडर्स में से एक थे और सुप्रीम लीडर के बेहद करीबी माने जाते थे. बगदाद एयरपोर्ट पर अमेरिकी हवाई हमले में सुलेमानी के साथ कताइब हिजबुल्लाह के कमांडर अबू महदी अल-मुहांदिस की भी मौत हो गई है. सुलेमानी जिस कुद्स फोर्स के प्रमुख थे, वो ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स की एक ब्रांच है. इस फोर्स का काम ईरान से बाहर चल रहे मिलिट्री मिशन को संभालना है.

यहां पर जहन में एक सवाल आ सकता है कि जब और देशों में ऐसे मिशन सीधे सेनाएं संभालती हैं तो ईरान में ऐसा क्यों नहीं है? क्यों एक रेगुलर मिलिट्री होने के बावजूद ईरान में रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स है? इनकी वजह कॉर्प्स के बनने की कहानी में छुपी है, जिसके लिए 1979 के ईरान में जाना होगा.

कैसे वजूद में आई रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स?

1970 के दशक में ईरान के शाह मुहम्मद रेजा पहलवी के खिलाफ देश में विरोध तेजी से पनप रहा था. इस विरोध ने 1979 में एक क्रांति का रूप ले लिया. इस क्रांति का नेतृत्व कर रहे थे रुहोल्लाह खोमैनी. शाह पहलवी पूरी तरह देश की सेना पर निर्भर थे. ईरान पर हुकूमत के लिए शाह के पास अमेरिका के साथ के अलावा सेना का समर्थन भी था. लेकिन जब खोमेनी के नेतृत्व में क्रांति अपने चरम पर पहुंची तो शाह को ईरान छोड़कर भागना पड़ा.

आयोतल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी(फाइल फोटो: AP)
रुहोल्लाह खोमेनी ईरान के सुप्रीम लीडर बन गए और आयोतल्लाह कहलाने लगे. उनके नेतृत्व में इस्लामिक हुकूमत जल्द ही समझ गई कि जैसे शाह को बने रहने के लिए सेना की जरूरत थी, वैसे ही एक समर्पित फोर्स उन्हें भी चाहिए होगी. इसी के साथ रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स एक ख्याल से असलियत बन गई. ईरान का नया संविधान बनाया गया और उसमें सेना को देश की सीमा और पब्लिक ऑर्डर की जिम्मेदारी दी गई और साथ ही जन्म हुआ इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स का. इस फोर्स को ईरान के इस्लामिक सिस्टम की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई.

रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स का रोल क्या है?

रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स में 150,000 से ज्यादा सक्रिय जवान हैं. वहीं ईरान की रेगुलर मिलिट्री में जवानों की संख्या 3.5 लाख से ज्यादा है. लेकिन फिर भी कॉर्प्स देश की प्रमुख और ज्यादा प्रभावी फोर्स है. कॉर्प्स की अपनी वायु सेना और नेवी है. मूल रूप से इसका काम ईरान के इस्लामिक सिस्टम की सुरक्षा था. लेकिन आयोतल्लाह से नजदीकी की वजह से कॉर्प्स का दखल पब्लिक ऑर्डर में भी बढ़ चुका है.

जैसे-जैसे कॉर्प्स का प्रभाव बढ़ा है, उसकी भूमिका में भी बदलाव देखने को मिला है. अब वो देश के रणनीतिक हथियारों की भी देखरेख करती है. इन हथियारों में देश से बाहर चलाए जा रहे मिशन, मिलिशिया और वो सिस्टम हैं, जिन्हे ईरान के प्रॉक्सी के रूप में देखा जाता है.

कॉर्प्स की नेवी ऐसी जगह की निगेहबानी करती है जहां से विश्व की लगभग 20-25% ऑयल सप्लाई चलती है. ये जगह है स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज. पर्शियन गल्फ को गल्फ ऑफ ओमान से जोड़ता ये स्ट्रेट रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण रास्ता है. इसी रास्ते से ऑयल का ट्रांसपोर्ट पर्शियन गल्फ से खुले भारतीय महासागर में होता है.

नेवी और एयरफोर्स के अलावा कॉर्प्स की सबसे प्रभावी ब्रांच कुद्स फोर्स है. इसी फोर्स के जरिए कॉर्प्स अपने साथी देशों और समर्थित मिलिशिया को पैसा और साधन मुहैया कराती है.

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कुद्स फोर्स सबसे प्रभावशाली कैसे?

कुद्स फोर्स 1980 में ईरान-इराक युद्ध के समय वजूद में आई थी. इसकी स्थापना 'मुस्लिम जमीन' की रिहाई के लिए की गई थी और इसके नाम का अरबी मतलब 'जेरूसलम फोर्स' होता है. इसका काम अपरंपरागत युद्ध और ईरान के विदेशी मिशन को अंजाम देना है. ईरान-इराक युद्ध में सद्दाम हुसैन के खिलाफ कुर्दों को खड़ा करने से लेकर लेबनान में हिजबुल्लाह और सीरिया में बशर अल असद को मजबूत करने का काम कुद्स फोर्स बखूबी करती आई है.

ईरान के सुप्रीम लीडर खामनेई के साथ सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद(फाइल फोटो: Office of the Iranian Supreme Leader via AP)
सीरिया में जब असद की सेना इस्लामिक स्टेट के सुन्नी लड़ाकों के सामने कमजोर हो रही थी तो कुद्स फोर्स ने वहां शिया मिलिशिया तैयार की, जिसके समर्थन से असद इस्लामिक स्टेट को तिकरित जैसे महत्वपूर्ण इलाके से खदेड़ पाए. अपने बाकी मिशन के साथ ही फोर्स की इस सफलता ने जनरल सुलेमानी को ईरान में लोकप्रिय बना दिया था.

कासिम सुलेमानी इतने लोकप्रिय कैसे बने?

कासिम सुलेमानी ईरान-इराक युद्ध के हीरो थे. साधारण बैकग्राउंड के बावजूद सुलेमानी ने ईरान की मिलिट्री लीडरशिप में बहुत तेजी से सीढ़ियां चढ़ी थीं. 1998 में कुद्स फोर्स के प्रमुख बनने के बाद उनके नेतृत्व में फोर्स गैर-पारंपरिक युद्ध के तरीकों में, इंटेलिजेंस और इराक-लेबनान-सीरिया में ईरान की जरूरत के मुताबिक काम करने में सफलता पाती गई.

सुलेमानी को ईरान के सुप्रीम लीडर आयोतल्लाह अली खामनेई का करीबी माना जाता था. वो कई मौकों पर खामनेई और ईरान की शिया लीडरशिप के साथ पब्लिक में दिखाई देते थे. खामनेई ने एक मौके पर सुलेमानी को ‘अमर शहीद’ कहा था.
एक पब्लिक मीटिंग के दौरान आयोतल्लाह खामनेई के साथ सुलेमानी(फाइल फोटो: Office of the Iranian Supreme Leader via AP)

सुलेमानी को ईरान में आयोतल्लाह खामनेई के बाद सबसे ताकतवर शख्स माना जाता था. यूं तो सुलेमानी पब्लिक में बहुत नजर नहीं आते थे लेकिन पर्दे के पीछे रहकर उन्होंने मिडिल ईस्ट में जिस तरह ईरान की ताकत बढ़ाई थी, उनका ओहदा बढ़ना स्वाभाविक लगता है. 2013 में न्यू यॉर्कर मैगजीन के लिए डेक्सटर फिल्किंस के सुलेमानी पर लिखे लेख 'शैडो कमांडर' में सुलेमानी की ताकत और उनके पर्दे के पीछे रहने का जिक्र मिलता है. फिल्किंस ने जब CIA के पूर्व ऑफिसर जॉन मेगुआयर से सुलेमानी के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया था, "वो मिडिल ईस्ट में इस समय सबसे ताकतवर ऑपरेटिव हैं और उनका नाम किसी ने नहीं सुना है."

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Published: 04 Jan 2020,09:09 PM IST

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