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अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) का कब्जा हो गया है. हाल ही में तालिबान ने जब पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो उसने कहा कि हम शरिया कानून (Sharia law) के तहत महिलाओं के हक तय करने को प्रतिबद्ध हैं. इससे साफ हो गया है कि तालिबान शरिया कानून के अनुसार अफगानिस्तान पर शासन करेगा. ऐसे में आइए जानते हैं आखिर शरिया कानून क्या कुछ कहता है और ये कहां-कहां लागू है...
शरिया के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका मतलब "पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता" होता है. वहीं शरिया कानून इस्लामिक कानूनी व्यवस्था है. इसे कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों यानी फतवों को मिलाकर तैयार किया गया है.
शरिया कानून जीवन जीने का रास्ता बताता है. सभी मुसलमानों से इसका पालन करने की उम्मीद की जाती है. इसमें प्रार्थना, उपवास और गरीबों को दान करने का निर्देश दिया गया है. एक मुसलमान के दैनिक जीवन के हर पहलू, यानी उसे कब क्या करना है और क्या नहीं करना है का रास्ता शरिया कानून है. किसी समस्या के आने पर वह सलाह के लिए शरिया विद्वान से मदद ले सकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अपने धर्म के कानूनी ढांचे के भीतर वह क्या करे? इसके अलावा दैनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में जहां मुसलमानों को मार्गदर्शन की जरूरत हो, वह शरिया कानून से ले सकते हैं. इसमें पारिवारिक कानून, वित्त और व्यवसाय सभी शामिल हैं.
शरिया कानून अपराधों को दो श्रेणियों में विभाजित करता है. पहली श्रेणी 'हद' है. इसमें गंभीर अपराध आते हैं और इसके लिए कठोर सजा तय की गई हैं और अपराध की दूसरी श्रेणी 'तज़ीर' है. इसमें न्यायाधीश के विवेक पर सजा छोड़ दी जाती है.
हालांकि सभी मुस्लिम देश 'हद' अपराधों के लिए ऐसी सजा नहीं देते हैं. ऐसे अपराधों के लिए कठोर दंड देने को लेकर मुसलमानों की राय बहुत बंटी हुई है.
कुछ इस्लामी संगठनों ने तर्क दिया है कि 'हद' की सजा से बचने के लिए कई तरह के सुरक्षा उपाय भी हैं, साथ ही अपराध साबित करने के लिए काफी सबूतों की जरूरत होती है.
वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने पत्थर मारकर मौत की सजा देने का विरोध किया है. उसके अनुसार "यह दंड यातना या क्रूरता, अमानवीय या अपमानजनक सजा है. इसलिए यह स्पष्ट तौर पर प्रतिबंधित है."
शरिया कानून प्रणाली भी अन्य कानून प्रणाली की तरह ही काफी जटिल है. इस कानून का लागू होना इस बात पर पूरी तरह से निर्भर करता है कि जानकारों के गुण और उनकी शिक्षा कैसी है?इस्लामी कानूनों के न्यायधीश मार्गदर्शन और निर्णय जारी करते हैं. मार्गदर्शन को फतवा कहा जाता है. इसे औपचारिक तौर पर कानूनी निर्णय माना जाता है.
वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू डॉट कॉम के मुताबिक शरिया कानून का पालन करने वाले देशों की इसको लेकर अपनी-अपनी व्याख्याएं हैं. इसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जरूरी नहीं है कि दो मुल्कों के शरिया कानून एक जैसे हों. जिन देशों में शरिया कानून लागू हैं वे धर्म निरपेक्ष नहीं हैं. कुछ ऐसे देश जहां सभी जगह शरिया कानून लागू हैं वे इस प्रकार से हैं :-
अफगानिस्तान
मिस्र
इंडोनेशिया
ईरान
इराक
मलेशिया
मालदीव
मॉरिटानिया
नाइजीरिया
पाकिस्तान
कतर
सऊदी अरब
संयुक्त अरब अमीरात
यमन
बहरीन
ब्रूनेई
अफ्रीका के कई देश शरिया कानून का पालन करते हैं, जिनमें नाइजीरिया, केन्या और इथियोपिया शामिल हैं. सूडान ने सितंबर 2020 में लगभग 30 साल शरिया कानून का पालन करने के बाद इसको समाप्त कर दिया, सूडान ने ऐसा तब किया जब वह आधिकारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गया.
तालिबान ने 1996 से 2001 के बीच अपने शासन की शुरुआत में अफगान को सुरक्षा तो दी थी, लेकिन शरिया कानून लागू करने की आड़ में उसकी क्रूरता से दुनिया दहल गई थी. हत्या और बलात्कार के दोषियों को सरेआम फांसी और चोरी जैसे अपराधों पर पत्थर से मारने जैसी सजाएं सुनाई गईं. उस दौर में तालिबानी शासन से अफगानी महिलाओं की आजादी पर सबसे गहरी चोट पहुंची थी. टीवी, संगीत और सिनेमा हराम हो गया. 10 साल से बड़ी लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लग गई थी.
‘द हिंदू’ के असोसिएट एडिटर जिया उस सलाम ने एक इंटरव्यू में कहा है कि “पिछली बार तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों का बहुत उल्लंघन किया था. उनका इस्लाम का वो इंटरप्रेटेशन था, जिसे किसी भी इस्लामिक स्कूल ने मंज़ूरी नहीं दी थी. उसे आप सही नहीं बता सकते. जैसे लड़कियों को पढ़ने, काम करने से मना करना… इन सारी बातों की इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं है."
वे आगे कहते हैं कि "अगर तालिबान कहता है कि शरिया कानून वो लागू कर रहा है, तो उसे वो अधिकार देने होंगे. सबसे पहली बात तो ये है कि पैदायशी तौर पर औरत को इस्लाम ने रहमत करार दिया है. इज्ज़त दी है. फिर ये कहा गया है कि हर मुसलमान, चाहे औरत हो या मर्द, सबको तालीम हासिल करनी है. अरबों में असल में ये होता था कि वो अपनी लड़कियों को बुरा मानते हुए ज़िंदा दफन कर दिया करते थे. प्रोफेट मोहम्मद ने इसके खिलाफ ज़बरदस्त अभियान चलाया. कुरान में कहा गया है कि जो व्यक्ति लड़का औऱ लड़की में कोई फर्क नहीं करे, बराबर का अधिकार दे, ऐसे ही लोग जन्नत में जाएंगे. अगर तालिबान लड़कियों को पढ़ने का अधिकार न दे, तो ये शरिया के खिलाफ है.”
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Published: 19 Aug 2021,03:27 PM IST