advertisement
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के सऊदी अरब के गुप्त दौरे की रिपोर्ट्स दुनियाभर के मीडिया में चल रही हैं और ऐसा हो भी क्यों न. ये ऐतिहसिक है और UAE, बहरीन और सूडान के इजरायल से संबंध सुधारने के बाद अब सबकी नजरें सऊदी पर हैं. पर मिडिल ईस्ट में सबकुछ साफ-सीधा नहीं होता है और इस बार भी ऐसा ही हो रहा है. इजरायल के मंत्री दौरे की बात को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन सऊदी के मंत्री इनकार कर रहे हैं. बहरहाल, ये दौरा महत्वपूर्ण क्यों हैं, और सऊदी और इजरायल ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये भी दिलचस्प है.
मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की मौजूदगी में नेओम शहर में नेतन्याहू से मुलाकात की. इजरायली इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद के चीफ योस्सी कोहेन भी इस मीटिंग में मौजूद रहे.
कुछ ही समय पहले तीन अरब देशों UAE, बहरीन और सूडान ने इजरायल के साथ अपने संबंध सुधार लिए थे और सामान्य कर लिए थे. तीनों ही समझौतों की मध्यस्थता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की थी. ट्रंप प्रशासन चाहता है कि सऊदी अरब भी ऐसा ही करे. पर सऊदी के लिए ऐसा करना आसान नहीं है.
जानकारों का मानना है कि इजरायल और सऊदी अरब के बीच बैकडोर बातचीत काफी समय से चल रही है. लेकिन नेतन्याहू के सऊदी दौरे की जानकारी का सार्वजानिक हो जाना बड़ी बात है.
भले ही सऊदी अरब ने मीटिंग से इनकार कर दिया है, लेकिन मिडिल ईस्ट की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि मोहम्मद बिन सलमान इसके खिलाफ नहीं हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल को तीन सऊदी एडवाइजर ने पुष्टि भी की है कि ये मीटिंग हुई है.
सऊदी अरब के रक्षा मंत्री MBS का अपने पिता किंग सलमान की तरह फलीस्तीन मुद्दे की तरफ झुकाव नहीं है. वो इजरायल के साथ मिलकर ईरान की ताकत पर नियंत्रण रखना चाहते हैं. ऐसे में अगर नेतन्याहू और मोहम्मद बिन सलमान की मीटिंग हुई है, तो ये दोनों देशों के लिए आगे बढ़ने के तौर पर देखा जाएगा.
मिडिल ईस्ट के मुद्दों की पेचीदगी इस बात से समझ आ सकती है कि इजरायल के शिक्षा मंत्री ने इस मीटिंग की बात को स्वीकार किया है, जबकि सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने इससे इनकार कर दिया है.
इजरायल के शिक्षा मंत्री योएव गैलेंट ने आर्मी रेडियो से इंटरव्यू में कहा कि नेतन्याहू और मोहम्मद बिन सलमान के बीच हुई मीटिंग एक 'शानदार उपलब्धि' है. वहीं, सऊदी विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान ने कहा, "ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई है. सिर्फ सऊदी और अमेरिकी अधिकारी मिले थे."
सऊदी अरब की स्थिति थोड़ी जटिल है. मिडिल ईस्ट में वो इस्लामिक लीडर कहलाता है और इजरायल के प्रधानमंत्री से क्राउन प्रिंस की मुलाकात को स्वीकार कर लेने से क्षेत्रीय राजनीति प्रभावित हो सकती है. बिना फलीस्तीन स्टेटहुड के समझौते के इजरायल से बातचीत आगे बढ़ाने के लिए तुर्की और ईरान सऊदी अरब को घेर सकते हैं.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)