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साल 2023 लगभग मुकम्मल होने को है और लोगों की जिंदगी में 2024 दस्तक देने वाला है. साल 2023 में दुनिया (World) भर में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिसका असर सभी तरह के नागरिकों पर पड़ा है. दुनिया के कई देश तमाम तरह के संघर्षों से जूझ रहे हैं. इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी (IRC) ने टॉप 10 ऐसे देशों की लिस्ट जारी है, जहां पैदा हुए मानवीय संकटों ने सारी दुनिया की नजर अपनी तरफ खींची. आइए जानते हैं कि इन देशों में अपने परिवारों और बच्चों के साथ रहने वाले आम नागरिक किस तरह से जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. मौजूदा हालात पर नजर डालते हुए, यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि आने वाले दिनों में किस तरह के हालात पैदा होने की आशंका है.
पिछले कई सालों से जिंदगी जीने की जद्दोजहद कर रहे, फिलिस्तीन के नागरिकों के लिए साल 2023 कयामत जैसा रहा. 7 अक्टूबर को हमास के द्वारा इजरायल पर किए गए हमले के बाद से गाजा पर लगातार जवाबी हवाई हमले हो रहे हैं. इजरायल की सेना ने फिलिस्तीन के स्कूलों, अस्पतालों और रिहायशी इलाकों...हर जगह हमले किए.
गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ अल-कुद्रा के एक बयान के मुताबिक
गाजा में मानवीय तबाही लगातार बढ़ती जा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 20 लाख लोग (गाजा की 85% आबादी) विस्थापित हो गए हैं. जिन नागरिकों ने फिलिस्तीन में रहने का फैसला किया है, उनको पर्याप्त खाद्य पदार्थ नहीं मिल रहे हैं.
गाजा के अंदर हवाई हमलों और लड़ाई का नागरिकों पर सीधा और विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. साल 2024 में भी इन खतरों के कम होने की उम्मीद नहीं जताई जा रही है.
स्वास्थ्य, पानी और स्वच्छता के बुनियादी ढांचे का खात्मा होने से गाजा का हेल्थ सिस्टम पूरी तरह से बर्बाद हो गया है. इसके बारे में कोई नहीं जानता कि आने वाले वक्त में कब तक सुधार होगा और चीजें सामान्य होंगी.
गाजा में रहने वाले लोग लड़ाई खत्म होने के बाद लंबे वक्त तक उबरने और जिंदगी पटरी पर लाने के लिए लंबा संघर्ष करेंगे.
इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में बढ़ती हिंसा से मानवीय जरूरतें बढ़ेंगी. गाजा में संघर्ष की वजह से लेबनान के साथ इजरायल की सीमा पर भी तनाव पैदा हो गया है.
सूडानी सशस्त्र बलों और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज के बीच चल रही जंग ने सूडान को इमरजेंसी वॉचलिस्ट लिस्ट में टॉप पर पहुंचा दिया है और देश को पतन के कगार पर धकेल दिया है. एक साल से भी कम वक्त की जंग में मानवीय मदद की जरूरत वाले लोगों की तादाद दोगुनी से ज्यादा हो गई है.
Catholic Relief Services के मुताबिक जंग शुरू होने के बाद से अब तक सूडान में लगभग 50 लाख लोग अपने घरों से भागने के लिए मजबूर हो गए हैं. देश की लगभग आधी आबादी (25 मिलियन लोग) को मानवीय मदद की जरूरत है क्योंकि संघर्ष ने घरों, व्यवसायों और स्कूलों को खत्म कर दिया है. नागरिकों को साफ पानी और हेल्थकेयर तक सही तरह से नहीं मिल पा रहा है. कई किसान अपनी जमीनों तक पहुंचने में असमर्थ हैं, जिससे मौजूदा सीजन की फसलें खराब हो सकती हैं.
सूडान में पैदा हुए इस संकट को लेकर आशंका जताई गई है कि यह 2024 में और ज्यादा बिगड़ सकता है. इससे लाखों लोगों को पर्याप्त भोजन और स्वास्थ्य सेवाएं ना मिलने का संकट पैदा हो सकता है क्योंकि संघर्ष खत्म होने की उम्मीद नहीं नजर आ रही है.
सशस्त्र बलों और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज के बीच चल रही लड़ाई खार्तूम और दारफुर में सबसे ज्यादा हो रही है. यह तेजी से देश के अन्य हिस्सों में फैल रही है और बढ़ती संख्या में सशस्त्र समूहों को अपनी तरफ खींच रही है.
सूडान में खसरा और हैजा का प्रकोप आ सकता है क्योंकि यहां का खराब हेल्थकेयर सिस्टम बढ़ते संकट को दूर करने में असमर्थ दिख रहा है.
सूडान के आर्थिक संकट का भी कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है. लगभग आधी आबादी बेरोजगार है. जनता मंहगाई और जरूरी चीजों की कमी से जूझ रही है.
आने वाले वक्त में विस्थापन अपने चरम पर रहेगा और इसका असर पूरे इलाके पर पड़ सकता है. पहले ही संघर्ष की वजह से सूडान के अंदर और बाहर करीब 6.6 मिलियन नागरिक विस्थापित हो चुके हैं.
साल 2011 में खार्तूम से आजादी के बाद से दक्षिण सूडान को असुरक्षा का सामना करना पड़ा है. लगभग एक दशक के संघर्ष और शांति समझौते को लागू करने की कोशिशों के बावजूद दक्षिण सूडान, हिंसा, खाद्य असुरक्षा और विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा है.
IRC की रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में दक्षिण सूडान के अंदर 90 लाख लोगों को मानवीय मदद की जरूरत है. यह वहां की जनसंख्या का 72 फीसदी है.
दिसंबर 2024 में होने वाले दक्षिण सूडान के पहले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तनाव की वजह से सामाजिक और राजनीतिक एकजुटता को खतरा हो सकता है. देश के उत्तर में सशस्त्र समूहों के बीच हिंसक झड़पें बढ़ गई हैं.
लगातार पांचवें साल बाढ़ से खाद्य उत्पादन प्रभावित हो सकता है और सैकड़ों हजारों लोग अपने घरों से बेघर हो सकते हैं.
पश्चिम अफ्रीकी मानकों के हिसाब से एक गरीब देश बुर्किना फासो, बार-बार सूखे और सैन्य तख्तापलट से पीड़ित रहा है. यह देश फ्रांसीसी उपनिवेश रहा है, जिसको 1960 में अपर वोल्टा (Upper Volta) के रूप में आजादी मिली. यहां सोने (Gold) का अहम भंडार है, लेकिन देश को अर्थव्यवस्था और मानवाधिकारों की स्थिति पर घरेलू और बाहरी चिंता का सामना करना पड़ा है.
इस्लामिक स्टेट इन ग्रेटर सहारा (ISGS) और जमात नुसरत अल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन (JNIM) सहित सशस्त्र समूह शहरों और कस्बों में कब्जा कर रहे हैं. इसके अलावा नागरिकों को बुनियादी चीजों तक पहुंचने से रोका जा रहा है.
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में बुर्किना फासो ने फ्रांस के साथ सैन्य संबंध तोड़ते हुए लगभग 400 फ्रांसीसी विशेष बलों को निष्कासित कर दिया. उसका कहना है कि वह जिहादियों से निपटने के लिए रूस के साथ सैन्य संबंध विकसित करेगा, लेकिन वैगनर भाड़े के सैनिकों को काम पर नहीं रखेगा.
सशस्त्र समूहों द्वारा शहरों की बढ़ती घेराबंदी से नागरिक को अपनी जरूरते पूरा करने के लिए ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
सरकार और सशस्त्र बलों के बीच बढ़ती हिंसा की वजह से नागरिकों में खतरा बढ़ेगा.
2023 में कम बारिश के बाद 2024 में फसलें कमजोर होने की आशंका है. इससे संघर्ष के प्रभाव बढ़ेंगे और खाद्य असुरक्षा में बढ़ोतरी आएगी.
साल 2021 में सेना द्वारा राजनीतिक वापसी के बाद म्यांमार (बर्मा) में संघर्ष काफी बढ़ गया है. अक्टूबर 2023 में, तीन प्रमुख सशस्त्र समूहों ने सरकार के साथ मिलकर फिर से रणनीति बनानी शुरू कर दी, जिससे देश के सैन्य बल काफी दबाव में आ गए और नागरिकों को नुकसान झेलना पड़ा. रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार में 18.6 मिलियन लोगों को अब मानवीय मदद की जरूरत है. यह मानवीय मदद की जरूरत सैन्य अधिग्रहण से पहले की तुलना में करीब 19 गुना ज्यादा हो गई है.
संघर्ष बढ़ने और सेना पर दबाव बढ़ने पर नागरिकों को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
देश के अंदर आर्थिक चुनौतियां, जलवायु के झटके और खराब सार्वजनिक सेवाएं मानवीय जरूरतों को बढ़ाएंगी.
नागरिकों को सहायता की पहुंच पर गंभीर बाधाएं जारी रहने की आशंका है. इस वजह से मानवीय सहायता कमजोर समुदायों नहीं पहुंच सकेंगी.
पश्चिमी अफ्रीका में स्थित देश माली के अंदर सुरक्षा और आर्थिक संकट की वजह से 6.2 मिलियन लोगों को मानवीय मदद की जरूरत है. संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की हालिया वापसी ने सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है. इसकी वजह खासकर उत्तरी माली में सरकार और तुआरेग सशस्त्र समूहों के बीच नए सिरे शुरू हुई लड़ाई है. पहले से ही, सशस्त्र समूह शहरों को घेर रहे हैं और मानवीय पहुंच को बंद कर रहे हैं. देश का आधा हिस्सा गरीबी में जिंदगी गुजार रहा है.
2012 के बाद से, उत्तर और मध्य दोनों इलाकों में विद्रोह में बढ़ोतरी हुई. 2020 और 2021 में दो तख्तापलट और चुनी हुई सरकार के गिरने के बाद पूर्व औपनिवेशिक शक्ति फ्रांस ने अपने सैनिकों को वापस ले लिया. माली ने देश में वैगनर समूह के भाड़े के सैनिकों को तैनात करके मास्को के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं.
देश में खाद्य असुरक्षा बढ़ने की आशंका है क्योंकि ज्यादातर शहरों को घेर लिया गया है या नाकाबंदी कर दी गई है. अगर मानवीय सहायता उन तक नहीं पहुंची तो दो लाख बच्चों को पहले से ही मौत का खतरा है.
अंतरराष्ट्रीय शांति सैनिकों के जाने और हिंसा बढ़ने से विशेष रूप से उत्तरी और मध्य माली में सहायता वितरण और अहम सेवाओं में बाधा आने की आशंका है.
2024 में सरकार, सशस्त्र समूहों और तुआरेग विपक्षी समूहों के बीच संघर्ष में बढ़ोतरी होने से नागरिकों को गंभीर नुकसान हो सकता है.
सोमालिया में संघर्ष और असुरक्षा ने हाल के वर्षों में विकास में बाधा उत्पन्न की है. देश में अकाल की वजह से लाखों नागरिक गंभीर कुपोषण, हैजा और खसरा जैसी बीमारियों के फैलने के खतरे में जिंदगी गुजार रहे हैं. पिछले पांच सालों की असमय बारिश के बाद देश बड़े पैमाने पर बाढ़ का सामना कर रहा है. बार-बार आने वाले इन जलवायु झटकों ने कृषि भूमि को बर्बाद कर दिया है और अहम बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया है.
सशस्त्र समूह अल-शबाब के खिलाफ चल रहे सरकारी हमले से नागरिकों के सामने बड़े पैमाने पर नुकसान और विस्थापन का खतरा है. सोमालिया में मौजूदा वक्त में मानवीय सहायता की जरूरत वाले 6.9 मिलियन नागरिकों की स्थिति और खराब हो गई है.
चार दशकों के सबसे लंबे और सबसे गंभीर सूखे से उबरने के लिए नागरिकों के सामने संघर्ष जैसी स्थिति बनी रहने की आशंका है.
बाढ़ की वजह से और विस्थापन ज्यादा हो सकता है. इसके अलावा फसल बर्बाद होने और जल-जनित बीमारी का खतरा बढ़ सकता है.
सशस्त्र समूह अल-शबाब के खिलाफ चल रहे सरकारी हमले से अभी के मुकाबले और ज्यादा नुकसान होने की संभावना जताई गई है क्योंकि मौजूदा वक्त में चल रहा राजनीतिक विवाद हिंसा का रूप ले सकता है.
मानवीय वित्त पोषण की कमी और सुरक्षा जोखिमों से ऐसी माहौल बन सकता है कि मानवतावादी लोगों को जरूरतमंद सोमालिया के नागरिकों तक पहुंचने में परेशानी का सामना करना पड़ेगा.
जुलाई 2023 में नाइजर में हुए तख्तापलट के बाद पड़ोसी देशों के साथ राजनीतिक तनाव पैदा हो गया है और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता वापस ले ली गई है. नए प्रतिबंधों और सीमा बंदी की वजह से देश में प्रवेश करने वाली मानवीय सहायता और चिकित्सा आपूर्ति में भी गंभीर रूप से कमी आ गई है. सार्वजनिक खर्च में 40 फीसदी की कमी आई है, जिससे प्रमुख सेवाओं में कमी आ गई है.
नाइजर का 40 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कृषि पर निर्भर है.
World Bank की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2023 तक, नाइजर से करीब सात लाख से ज्यादा नागरिक विस्थापित हुए थे. इन नागरिकों में शरणार्थी, शरण चाहने वाले और आंतरिक रूप से विस्थापित नागरिक शामिल थे.
आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध पहले से ही सार्वजनिक सेवाएं तनावपूर्ण हैं. आने वाले वक्त में सार्वजनिक सेवाओं में और ज्यादा बाधाएं उत्पन्न होने की आशंका है.
सशस्त्र समूह विदेशी सैन्य सहायता की वापसी के कारण बनी स्थिति फायदा उठाने के लिए तैयार हैं.
जलवायु परिवर्तन, संघर्ष और सीमा बंदी के आर्थिक प्रभावों की वजह से 7.3 मिलियन लोगों के गंभीर खाद्य असुरक्षा में पड़ने का खतरा है.
अफ्रीका के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले देश, इथियोपिया में हुए कई संघर्षों के साथ-साथ लगातार तीन सालों के सूखे की वजह से आजीविका लगभग खत्म हो गई है. मौजूदा वक्त में देश के अंदर बाढ़ का खतरा नजर आ रहा है.
इथियोपिया सरकार और टाइग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के बीच नवंबर 2022 का युद्धविराम उत्तरी इथियोपिया में जारी है, लेकिन अन्य संघर्ष, विशेष रूप से मध्य ओरोमिया इलाके और उत्तर-पश्चिम में अमहारा में ऐसी स्थितियां बन रही हैं कि नागरिकों में जोखिम और मदद की जरूरतें बढ़ रही हैं. देश में लगातार बढ़ रही महंगाई से नागरिकों के सामने गहरा संकट पैदा कर रही है.
इथियोपिया में कई सालों के सूखे की वजह से समुदाय पहले ही कमजोर स्थिति में पहुंच चुका है. इसी में अल नीनो बाढ़ की भी आशंका बनी हुई है, जिससे आजीविका के और खतरा हो सकता है. अल नीनो को एक प्राकृतिक घटना के रूप में समझा जा सकता है, जिसमें समुद्र का तापमान कुछ हिस्सों में बढ़ जाता है.
साल 2024 में मंहगाई के टॉप पर बने रहने की आशंका है, जिससे बुनियादी वस्तुएं कई इथियोपियाई नागरिकों की पहुंच से बाहर हो जाएंगी.
पड़ोसी देशों के साथ बढ़ती हिंसा और तनाव की वजह से देश में बड़ा संघर्ष शुरू होने की आशंका है.
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC), पश्चिमी यूरोप के आकार के बराबर, उप-सहारा अफ्रीका (SSA) में सबसे बड़ा देश है. DRC असाधारण प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है, जिसमें कोबाल्ट और तांबा जैसे खनिज, जलविद्युत क्षमता, महत्वपूर्ण कृषि योग्य भूमि, विशाल जैव विविधता और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वर्षावन शामिल है.
सरकार और सशस्त्र समूह M23 के बीच संघर्ष विराम के टूटने के बाद, 2023 में पूर्वी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) में बड़ी लड़ाई छिड़ गई. पहले से ही राजनीतिक तनाव, आर्थिक दबाव, जलवायु झटके और लगातार बीमारी के प्रकोप झेल रहे देश में, जंग छिड़ने से नागरिकों के सामने एक बड़ा संकट शुरू हो गया.
देश में पसरे संकट ने सेवाओं पर दबाव डाला है, जिससे उच्च स्तर की खाद्य असुरक्षा पैदा हुई है और बीमारी के फैलाव को बढ़ावा मिला है. इस बीच, मानवीय फंडिंग में कमी और बड़े पैमाने पर असुरक्षा ने मदद करने वालों की जरूरतमंद समुदायों तक पहुंच को सीमित कर दिया है.
देश के अंदर आने वाले वक्त में संघर्ष बढ़ सकता है. इसका मतलब होगा कि ज्यादा संख्या में नागरिक अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होंगे, जिससे आंतरिक विस्थापन और बढ़ेगा.
जलवायु पैटर्न अल नीनो से बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है, जलजनित बीमारियां फैल सकती हैं और कृषि उपज कम हो सकती है.
धन की कमी और पहुंच संबंधी बाधाओं की वजह से मानवीय सेवाएं कमजोर हो सकती हैं.
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