Asthma Prevention Tips: बदलते मौसम के दौरान अस्थमा के मरीजों को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. मौसम में बदलाव के अलावा प्रदूषण और धुआं, पॉल्यूशन एलर्जी जैसे कई कारण हैं, जो अस्थमा मरीजों में अटैक की समस्या पैदा कर सकते हैं. इसलिए अस्थमा के मरीजों को हमेशा अपने साथ इनहेलर रखने की सलाह और कुछ जरुरी टिप्स फॉलो करने की हिदायत दी जाती है. फिट हिंदी ने दिल्ली के अस्थमा चेस्ट एलर्जी सेंटर के फाउंडर और डायरेक्टर, पल्मोनोलॉजिस्ट- डॉ. विक्रम जग्गी से बदलते मौसम में अस्थमा के मरीजों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, के बारे में जाना.

<div class="paragraphs"><p>(फोटो:iStock)</p></div>

क्रोनिक एंड इंफ्लेमेटरी कंडीशन- अस्थमा एक क्रोनिक इंफ्लेमेटरी कंडीशन है, जिसमें फेफड़ों के वायुमार्ग (airways) में सूजन उत्पन्न हो जाती हैं, जो एलर्जन (allergens) और उत्तेजकों (irritants) के संपर्क में आने पर सेंसिटिव हो जाते हैं. इसलिए, पहले से सेंसिटिव रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट जब किसी मौसम की शुरुआत में धूल या दूसरे कीटाणुओं के संपर्क में आता है, तो यह फेफड़ों के मार्ग के मांसपेशियों में ऐंठन पैदा कर देता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है.  मौसम के बदलने के समय अस्थमा के लक्षण बढ़ना एक सामान्य घटना है.

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ट्रिगर्स से बचें- कुछ मौसमी ट्रिगर्स अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं. जैसे स्प्रिंग के मौसम के पोलन, गर्मी के दौरान धूल और प्रदूषण, सर्दी और मानसून के दौरान मोल्ड. ये एलर्जी फेफड़ों में जाती हैं और एयरवेज (airways) को इरिटेट करती हैं, जिससे व्हीज़िंग (wheezing) और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण ट्रिगर होते हैं.

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डॉक्टर से कंसल्टेशन- अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना जरूरी है. रेगुलर चेकअप और डॉक्टर की सलाह पर अस्थमा मरीज को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए जैसी बातों पर अमल करने से अस्थमा अटैक के जोखिम को कम किया जा सकता है.

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रेस्क्यू इनहेलर साथ में रखना- डॉक्टर सभी अस्थमा मरीज को उनकी बीमारी के आधार पर इनहेलर इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. शार्ट टर्म राहत के लिए एक रेस्क्यू इनहेलर हमेशा पास रखें और जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह अचानक होने वाले अस्थमा लक्षणों को बढ़ने से बचाता है. हालांकि, ज्यादातर मामलों में, इसके इलाज में अस्थमा से बचाव और मेंटेनेंस मेडिकेशन्स का कॉम्बिनेशन शामिल हो सकता है. मेंटेनेंस थेरेपी, रोज ली जाती है और अस्थमा के लक्षणों को बढ़ने से रोकती है. यह अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए अब तक का सबसे महत्वपूर्ण इलाज है.

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इनहेलेशन थेरेपी- अस्थमा का आधारशिला (cornerstone) इलाज, इनहेलेशन थेरेपी है.  यह ओरल दवाओं की तुलना में जल्दी राहत देता है और दवा को सीधे फेफड़ों तक पहुंचने में मदद करता है. इनहेलेशन थेरेपी डॉक्टर द्वारा तय की गई खुराक को सीधे वायुमार्ग तक पहुंचाने में सहायता करता है. इनमें ओरल मेडिकेशन्स की तुलना में साइड इफेक्ट की आशंका कम रहती है. यह डॉक्टर द्वारा निर्धारित नियमित उपयोग के माध्यम से अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है.

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निवारक उपाय (preventive measures)- सालाना फ्लू शॉट्स लेना, घर पर एयर प्यूरिफायर का उपयोग करना, हाथों को साफ और चेहरे से दूर रखना, बाहर जाते समय मास्क पहनना, अधिक प्रदूषित क्षेत्रों से बचना, सांस लेने की तकनीक का अभ्यास करना ये कुछ निवारक उपाय हैं, जिन्हें सीजनल चेंज के दौरान अस्थमा फ्लेयर अप से बचने के लिए फॉलो करना चाहिए.

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मॉनिटरिंग लंग फंक्शन-  फेफड़ों  के कार्य की निगरानी करने और स्थिति को बेहतर ढंग से मैनेज करने के लिए एक पीक फ्लो मीटर (peak flow metre) का उपयोग किया जा सकता है. पीक फ्लो मीटर एक छोटा हैंड हेल्ड डिवाइस होता है, जो यह मेजर (measure) कर सकता है कि कोई व्यक्ति कितनी तेजी से सांस छोड़ते हुए अपने फेफड़ों से हवा को बाहर निकाल सकता है. यह फेफड़ों की ताकत और वायुमार्ग के खुलेपन को समझने में मदद करता है. लोअर (lower) पीक फ्लो वैल्यू खराब फेफड़ों के कार्य (poor lung function) को दर्शाता है और हाई वैल्यू अच्छे फेफड़ों को.

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अच्छी लाइफ क्वालिटी बनाए रखें- अस्थमा एक क्रोनिक बीमारी है लेकिन इसका किसी के जीवन की गुणवत्ता पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है. इनहेलर्स, क्विक रिलीफ मेडिकेशंस और डॉक्टरों के सलाह के साथ अस्थमा को प्रभावी ढंग से मैनेज किया जा सकता है. अस्थमा के लक्षणों को समझते ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. सावधानी के साथ हर दिन एक्सरसाइज और दूसरी एक्टिविटीज करते रहना चाहिए.

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