छत्तीसगढ़(Chhattisgarh) के दक्षिण बस्तर(Bastar) के समीप स्थित ढोलकल पर्वत है, जिसपर 11वीं सदी की एक गणेश प्रतिमा(Ganesh Chaturthi 2022) है. ये करीब 3 हजार फीट ऊंची एवं ढाई फीट चौड़ी स्थापित की हुई है. जो ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है.

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समुद्रतल से 3,000 फीट ऊंचे पर्वत शिखर पर गणपति बप्पा की प्रतिमा है. पहुंचने के लिए रास्ता अति दुर्गम एवं पहाड़ी का है. इस ढोलकल पहाड़ के बारे में कहा जाता है कि यह क्षेत्र घने जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र में है. जहां जाने के लिए कुछ दूर तक सड़क है, लेकिन बाकी रास्ता जंगल और पहाड़ों से होकर जाता है. बताया जाता है कि, ढोलकल पहाड़ जिसकी दूरी दंतेवाड़ा से 22 किलोमीटर दूर है.

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वहां से कोतवाल पारा होकर जाम पारा तक आसानी से जाया जा सकता है. जहां गाड़ी को खड़ी कर ग्रामीणों की मदद से पर्वत शिखर तक जाना होता है. जाम पारा पहाड़ी के ठीक नीचे बसा हुआ है. वहां के बाद जंगल एवं पहाडी क्षेत्र लगता है, जिसे पार कर ढोलकल पहाड़ जाना होता है. लगभग 3 से 4 घंटे का वक्त लगता है. बारिश के दिनों में वहां जाना तकलीफ भरा होता है.

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कुछ साल पहले ही पुरातत्व विभाग ने इस पहाड़ एवं प्रतिमा कि खोज की थी. कहा जाता है कि स्थानीय भाषा में कल का मतलब पहाड़ होता है. इस लिए ढोलकल के दो मतलब निकाले जाते हैं. एक तो यह कि ढोलकल पहाड़ी कि वह चोटी है जहां प्रतिमा है. वह बिल्कुल बेलनाकार ढोल की तरह खड़ी है, दूसरी यह कि वहां पर ढोल बजाने से दूर तक उसकी आवाज सुनाई देती है. इसलिए इस जगह का नाम ढोलकल पड़ा.

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कहा जाता है यह प्रतिमा करीब तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है, जो कि ग्रेनाइट की बनी है. प्रतिमा के ऊपरी दाएं हाथ में फरसा एवं ऊपरी बाएं हाथ मे टूटा हुआ एक दांत है. निचले दाएं हाथ में वे माला धारण किये हुए हैं. जबकि बाएं हाथ में मोदक है. प्रतिमा को लेकर आज भी रहस्य बना हुआ है.

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एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह प्रतिमा 11वीं सदी की है. तब यहां नागवंशी राजाओं का शासन था. गणेश प्रतिमा के पेट पर नाग का चिन्ह अंकित है. इस आधार पर माना जाता है कि इसकी स्थापना नागवंशी राजाओं ने की होगी. यह प्रतिमा पूरी तरह सुरक्षित है. हालांकि इतनी ऊंचाई पर ले जाने या इसे बनाने में कौन सी तकनीक अपनाई गई होगी, यह आज भी रहस्यमय है. आर्कियोलाजिस्ट के मुताबिक पूरे बस्तर में ऐसी प्रतिमा और कहीं नहीं है.

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क्षेत्र में यह मान्यता है कि भगवान गणेश एवं परशुराम का युद्ध इसी पहाड़ पर हुआ था. युद्ध के दौरान परशुराम के फरसे से भगवान गणेश का एक दांत यहीं पर टूट कर गिरा था. इस घटना को चिरस्थायी बनाने के लिए नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापित की थी.

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