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दिल्ली: घर में पानी भरने से हाईवे पर ठिकाना, तस्वीरों में बाढ़ पीड़ितों की कहानी
Delhi-Meerut Highway के किनारे एक अस्थायी आश्रय में जीवन काट लोगों से द क्विंट ने बात करके उनका हाल जाना.
आकृति हांडा & आकृति सांघी
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Delhi FLood: घर में पानी भरने से हाईवे पर ठिकाना, तस्वीरों में बाढ़ पीड़ितों की कहानी
(फोटो: आकृति हांडा)
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सुषमा देवी भीगी आंखे लेकर बात करते हुए कहा कि “मैंने पिछले साल निमोनिया के कारण अपने सबसे बड़े बेटे को खो दिया क्योंकि हम ठंड में बाहर थे और हमारे पास कोई पक्का घर नहीं था. अब बारिश की वजह से हम एक बार फिर घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं.
सुषमा उत्तर प्रदेश के बदायूं की रहने वाली हैं. दो साल से वह दिल्ली के निजामुद्दीन पुल के नीचे रह रही हैं. उनके पति एक रिक्शा चालक हैं और उनके पांच बच्चे हैं.
(फोटो: आकृति हांडा)
सुषमा जब दिल्ली-मेरठ हाईवे के किनारे एक फुटपाथ पर तिरपाल से बने घर में रखे सामान को देख रही थीं, उस वक्त उन्होंने कहा कि “उस रात हम जो कुछ भी ले सकते थे, हमने उठाया और ऊंची जमीन तलाशते हुए यहां पर आ गए. मैं अपनी यह चारपाई, कुछ पैसे और कपड़े लेकर आ पाई, बाकी सब कुछ पानी में बह गया.
(फोटो: आकृति हांडा)
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भारी बारिश के बाद, गुरुवार, 13 जुलाई को यमुना में पानी खतरे के निशान 205.33 मीटर से ऊपर पहुंच गया. इसके कारण दिल्ली में निजामुद्दीन पुल के नीचे नदी के किनारे झुग्गियों में रहने वाले 150 से अधिक परिवारों को वहां से भागना पड़ा.
(फोटो: आकृति सांघी)
गुरुवार सुबह यमुना का जलस्तर अपने उच्चतम स्तर पर था, जो एक दिन पहले के 207.49 मीटर से बढ़कर 208.46 मीटर हो गया. नदी में पानी के उच्चतम स्तर का पिछला रिकॉर्ड 1978 में 207.49 मीटर था.
(फोटो: आकृति सांघी)
द क्विंट ने उन लोगों से बात की, जिन्हें 13 जुलाई को निकाला गया और दिल्ली-मेरठ राजमार्ग के किनारे एक अस्थायी आश्रय में ले जाया गया.
(फोटो: आकृति हांडा)
बाढ़ पीड़ित चंपा देवी ने कहा कि एक बार पानी कम हो जाए, तो मैं वहीं वापस चली जाऊंगी, जहां मेरा घर था. चंपा देवी आजीविका चलाने और अपने चार लोगों के परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सड़क पर झाड़ू लगाती हैं. बिहार के लखीसराय की रहने वाली चंपा देवी 10 साल से ज्यादा वक्त से दिल्ली में रह रही हैं. उनका ज्यादातर सामान - कपड़े और जमा अनाज यमुना के पानी के साथ बह गया.
(फोटो: आकृति हांडा)
जब चंपा देवी से पूछा गया कि क्या वह तेज रफ्तार कारों के साथ राजमार्ग के किनारे रहने में सुरक्षित महसूस करती हैं, तो उन्होंने कहा, "वहां हर समय पुलिस वाले होते हैं. सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है."
(फोटो: आकृति हांडा)
चंपा कहती हैं कि “हमें खाने के लिए अच्छा खाना और पीने के लिए पानी मिल रहा है. प्लास्टिक शीट में छेद होते हैं और जब भी बारिश होती है, तो सब कुछ गीला हो जाता है. भोजन उप जिला मजिस्ट्रेट (एसडीएम) कार्यालय, प्रीत विहार के साथ-साथ कई गैर सरकारी संगठनों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है. बाढ़ की भयावह स्थिति के बीच दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने गुरुवार को सभी गैर-जरूरी सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों को रविवार तक बंद रखने को कहा है.
(फोटो: आकृति हांडा)
बाढ़ पीड़ित रामप्यारी ने कहा, “हम हर चीज से परेशान हैं पर क्या करें? रोने से घर वापस तो नहीं मिलेगा. 'इसिलिए मुस्कुरा ही लेते हैं."
रामप्यारी मूल रूप से यूपी के बदायूं की रहने वाली हैं. 12 लोगों का उनका परिवार लगभग 15 साल पहले दिल्ली आ गया था और यमुना के किनारे सब्जियां उगा रहा है. 11 जुलाई को दिल्ली नागरिक सुरक्षा के अधिकारियों और स्वयंसेवकों द्वारा उन्हें निजामुद्दीन पुल से निकाला गया. तब से फुटपाथ ही उनका अस्थायी घर है.
(फोटो: आकृति हांडा)
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रामप्यारी ने कहा कि “आप बस स्टॉप पर जितने भी मवेशी दिख रहे हैं, वे सभी मेरे हैं. जब मैंने सबको जाते देखा तो मैं अपने सभी मवेशियों को लेकर ऊंचे स्थान पर आ गई. मैं उन्हें पीछे नहीं छोड़ सकती थी. वे आजीविका का एक स्रोत हैं."
(फोटो: आकृति हांडा)
हालांकि, दिल्ली सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए भोजन और पानी की व्यवस्था से संतुष्ट होकर उन्होंने कहा कि भोजन कभी-कभी देर रात तक आता है. शुक्रवार की उमस भरी दोपहर में वह चारपाई पर चपाती सुखा रही थी ताकि बाद में खाया जा सके और बर्बाद न हो.
(फोटो: आकृति हांडा)
दिल्ली सिविल डिफेंस के स्वयंसेवक सतीश कुमार ने द क्विंट को बताया कि निकासी का प्रयास चार दिनों से चल रहा है. उन्होंने कहा कि निकाले गए लोगों को या तो हाईवे के किनारे अस्थायी आश्रय में रखा जाएगा या उन्हें मानसून खत्म होने तक पास के सरकारी स्कूल में ले जाया जाएगा.
(फोटो: आकृति हांडा)
सतीश कुमार कहते हैं कि अगर बहुत भारी बारिश होती है, तो पानी घुसना तय है और लोग और उनका सामान भीग जाएगा. उस स्थिति में, हम लोगों को एक स्कूल में ले जायेंगे. एसडीएम कार्यालय ने इस कार्रवाई की सिफारिश की है.
(फोटो: आकृति हांडा)
35 वर्षीय केसरिया ने कहा कि अब बताओ गायें, भैंस, भेड़, बकरी को स्कूल कैसे लेकर जायेंगे? केसरिया यूपी के अलीगढ़ से हैं. उनका पांच लोगों का परिवार 30 साल से यमुना के किनारे फ्लाईओवर के नीचे रह रहा है. वह पास की ही एक नर्सरी में मजदूरी करती थी.
(फोटो: आकृति हांडा)
7 साल की कुमकुम फुटपाथ पर एक अस्थायी आश्रय में रह रही है. अपने माता-पिता के बाहर रहने के दौरान उनकी बकरियों की देखभाल कर रही थी. कुमकुम बताती है कि "बारिश के कारण स्कूल बंद है. इसलिए मैं मदद कर रही हूं.
(फोटो: आकृति हांडा)
द क्विंट ने पीएसओ मनोज चंदेल से बात की. मनोज राजस्व विभाग, एसडीएम कार्यालय, प्रीत विहार में काम करते हैं और इलके में निकासी की कोशिशों को लीड कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमारे नाविक यहां चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं. वे बचाव के लिए कॉल पाने वाले पहले व्यक्ति हैं.
(फोटो: आकृति हांडा)
चंदेल ने बताया कि दूसरे दिन उन्होंने कुछ ऊंटों को बचाया. एक रात पहले उन्होंने एक शव को बहते हुए देखा था. नाविक कूद गया और उसे किनारे पर ले आया.
(फोटो: आकृति हांडा)
चंदेल ने कहा कि बैंकों के करीब रहने वाले कई लोगों ने वहां से जाने से इनकार कर दिया क्योंकि वे अपना सामान नहीं छोड़ना चाहते थे. चंदेल ने आगे कहा कि बताइये, जान से ज्यादा क्या कीमत हो सकती है.